Friday, January 24, 2014

गुलामी की जड में हम हैं - महात्मा गांधी

करोडों लोगों को अंगरेजी की शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी। उसने इसी इरादे से अपनी योजना बनाई थी, ऐसा मैं नहीं सुझाना चाहता, लेकिन उसके काम का नतीजा यही निकला है। कितने दुख की बात है कि हम स्वराज्य की बात परायी भाषा में करते हैं।


और हमारी दशा कैसी है? हम एक दूसरे को पत्र लिखते हैं, तब गलत अंगरेजी में लिखते हैं। एक एम. ए. पास आदमी भी ऐसी गलत अंगरेजी से बचा नहीं होता। हमारे अच्छे से अच्छे विचार प्रकट करने का जरिया है अंगरेजी। हमारी कांगे्रस का कारोबार भी अंगरेजी में चलता है। अगर ऐसा लंबे अरसे तक चला तो मेरा मानना है कि आनेवाली पीढ़ी हमारा तिरस्कार करेगी और उसका शाप हमारी आत्मा को लगेगा।


आपको समझना चाहिए कि अंगरेजी शिक्षा लेकर हमने अपने राष्ट्र को गुलाम बनाया है। अंगरेजी शिक्षा से दंभ, राग, जुल्म वगैरह बढ़े हैं। अंगरेजी शिक्षा पाए हुए लोगों ने प्रजा को ठगने में, उसे परेशान करने में कुछ भी उठा नहीं रखा है। अब अगर हम अंगरेजी शिक्षा पाए हुए लोग उसके लिए कुछ करते हैं तो उसका हम पर जो कर्ज चढ़ा हुआ है, उसका कुछ हिस्सा ही हम अदा करते हैं।


यह क्या कुछ कम जुल्म की बात है कि अपने देश में अगर मुझे इंसाफ पाना हो तो मुझे अंगरेजी भाषा का उपयोग करना चाहिए। बैरिस्टर होने पर मैं स्वभाषा में बोल ही नहीं सकता। दूसरे आदमी को मेरे लिए तरजुमा कर देना चाहिए, यह कुछ कम दंभ है? यह गुलामी की हद नहीं तो और क्या है? इसमें अंगरेजों का दोष निकालूं या अपना? हिंदुस्तान को गुलाम बनानेवाले तो हम अंगरेजी जाननेवाले लोग ही हैं। राष्ट्र की हाय अंगरेजों पर नहीं पडेगी, बल्कि हम पर पडेगी।


मुझे तो लगता है कि हमें अपनी सभी भाषाओं को उज्जवल, शानदार बनाना चाहिए। हमें अपनी भाषा में ही शिक्षा लेनी चाहिए। इसके क्या माने हैं, इसे ज्यादा समझाने का यह स्थान नहीं है। जो अंगरेजी पुस्तकें काम की हैं, उनका हमें अपनी भाषा में अनुवाद करना होगा। बहुत से शास्त्र सीखने का दंभ और वहम छोडना होगा। सबसे पहले तो धर्म की शिक्षा या नीति की शिक्षा दी जाना चाहिए। हर एक पढ़े लिखे हिंदुस्तानी को अपनी भाषा का, हिंदू को संस्कृत का, मुसलमानों को अरबी का, पारसी को फारसी का और सबको हिंदी का ज्ञान होना चाहिए। कुछ हिंदुओं को अरबी और कुछ मुसलमानों और पारसियों को संस्कृत सीखनी चाहिए। उत्तर और पश्चिमी हिंदुस्तान के लोगों को तमिल सीखनी चाहिए। सारे हिंदुस्तान के लिए जो भाषा चाहिए वह तो हिंदी ही होनी चाहिए .... और यह सब किसके लिए जरुरी है? हम जो गुलाम बन गए हैं उनके लिए। हमारी गुलामी की वजह से देश की प्रजा गुलाम बनी ैहै। अगर हम गुलामी से छूट जाएं तो प्रजा तो छूट ही जाएगी। ('हिंद स्वराज्य" से साभार)

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