Thursday, January 2, 2014


  1. तिरस्कृत बहिष्कृत तालिबा

  2. पिछले दिनों पाकिस्तान के 50 मुस्लिम उलेमाओं (सुन्नी इत्तेहाद काउंसिल) ने संयुक्त रुप से एक फतवा जारी कर 'तालिबान" को इस्लाम से निष्कासित कर तालिबान को 'ख्वारिज" नाम दिया है। फतवे में तालिबान के खिलाफ कार्रवाई में सरकार की मदत करना हर नागरिक का धार्मिक कर्तव्य है का आह्वान किया गया है। इसे देवबंद के दारुल उलूम वक्फ मुफ्ती आरिफ कासमी ने जायज करार दिया है। यह फतवा अब ही क्यों दिया गया पहले क्यों नहीं दिया गया के विवाद में हम पडना नहीं चाहते क्योंकि इस बहस में पडने की बजाए इस 'ख्वारिज" शब्द के पीछे जो इतिहास छुपा हुआ है वह जानना अधिक महत्वपूर्ण है। 'ख्वारिज" 'खारिजी" जो कि एक अरबी शब्द है का बहुवचन होकर उर्दू-हिंदी शब्दकोश के अनुसार इसका अर्थ-बाहरी,  मुसलमानों का एक समूह जो मुस्लिमों के आदर्श खलिफाओं में से चौथे खलिफा अली को नहीं मानता है। और शिया, सुन्नी से इतर है। खारिजी द्योतक है उस समूह का जो 'उम्मा" (मुस्लिम एकता) का विघटन चाहता है और इस्लाम से निकला हुआ है। 

  3. सीरिया के शासक मुविया (पैगंबर की पत्नी उम्म हबीबा का भाई) और खलिफा अली (पैगंबर के दामाद) की खिलाफत (प्रतिनिधित्व, मुहम्मद साहब के बाद उनकी जानशीनी) के प्रश्न पर सिफीन के मैदान पर हुई लडाई में जिसमें दोनो पक्षों के मिलाकर 70 से 90,000 मुस्लिम मारे गए थे और भारी संख्या में लोग जख्मी हुए थे। जिनमें पैगंबर के अनेक सहयोगी होकर उनमें से 25 वो थे जो इस्लाम के इतिहास के प्रसिद्ध 'बद्र" युद्ध में भी भाग ले चूके थे। दोनो ही ओर से मारनेवाले और मरनेवाले सारे मुसलमान ही थे एवं दोनो ही पक्ष अल्लाह के कार्य के लिए, अल्लाह के नाम से और सत्य की विजय के लिए लड रहे थे।

  4. यह प्रचंड हानि देख अली का ह्रदय विदीर्ण हो गया वह कहने लगा इस तरह से तो सारे अरब ही नष्ट हो जाएंगे। पराजय अटल देख मुविया को भी लडाई रोकने की आवश्यकता महसूस हो रही थी। उसके सेनापति अमर ने एक उपाय सुझाया कि अली की सेना में फूट डालने के लिए ''...अपन भाले की नोंक पर पवित्र कुरान की प्रतियां लटकाएं और अली के सैनिकों को तलवार की बजाए अल्लाह के ग्रंथानुसार निर्णय लेने का आवाहन करें।"" ऐसा होने पर अपने को प्रतिसाद मिलेगा अली की सेना में फूट पड जाएगी। इस अनुसार दूसरे दिन कुरान की प्रतियां इकट्ठा की गई, केवल 5000 प्रतियां मिलने पर कुरान के पन्ने फाडकर सैनिकों को दिए गए।  कुछ ग्रंथों के अनुसार केवल सेना के अगले भाग के पांच लोगों ने अपने भालों की नोंक पर पांच प्रतियां खडी की। मुविया के सैनिक जोर-जोर से कहने लगे ''अब मुस्लिमों का रक्त बहाना रोको। अल्लाह के ग्रंथानुसार निर्णय लो। उसमें सारे नीतिमूल्य बतलाए गए हैं। उसमें मुस्लिमों के रक्त को बहाना प्रतिबंधित किया गया है।"" यह आवाहन सुनकर अली की सेना का 20,000 का एक गुट जिन्हें ही बाद में 'खारिजी" यानी 'छोडकर जानेवाले" कहा गया बाजू में हो गया। वे प्रतिपक्ष के सूर में सूर मिलाकर कहने लगे ''अब निर्णय अल्लाह के ग्रंथानुसार ही !""

  5. अली ने उन्हें समझाना चाहा परंतु उसका समझाना व्यर्थ गया है उलटे उन्हीं पर वे आरोप लगाने लगे और इतने आक्रमक तेवर अपना लिए कि असहाय होकर अली ने सेनापति को संदेश भेजकर युद्ध रोकने का आदेश भेजा परंतु उसने इंकार कर दिया और विद्रोही सैनिकों से कहने लगा जब विजयश्री हाथों में आने जा रही है तब तुम युद्धबंदी क्यों चाहते हो? परंतु विद्रोहियों ने अपना आग्रह न छोड कहना आरंभ किया कि, ''कल भी हम अल्लाह के कार्य के लिए लडे थे और आज भी हमने अल्लाह के कार्य के लिए लडाई रोकी है। हम खलिफा (शासक) के आज्ञाधारक ना होकर अल्लाह के आज्ञाधारक हैं।"" अंत में असहाय होकर अली ने अपने युद्धबंदी के निर्णय को अमल में लाया। 

  6. युद्धबंदी मान्य होने के बाद विद्रोहियों के एक नेता कैस ने खलिफा से कहा ''अल्लाह के ग्रंथ का निर्णय मानने का कौनसा अचूक अर्थ मुविया को अभिप्रेत है यह जानने के लिए मुझे उसके पास जाने की अनुमति दोगे क्या?"" अनुमति देना ही पडी। दमास्कस जाकर उसने मुविया से पूछा ''भालों पर कुरान की प्रतियां खडी करने के पीछे तुम्हारा उद्देश्य क्या था?"" मुविया ने उत्तर दिया ''यह कि दोनो पक्ष तलवार की बजाए अल्लाह के ग्रंथ के आधार पर लिए निर्णय को मान्य करें। यानी दोनो ही पक्ष रणभूमि से पीछे हटें, प्रत्येक पक्ष एक विश्वसनीय पंच को नियुक्त करे, वे दोनो पंच (पंचायत) शपथ लेकर अल्लाह के ग्रंथानुसार निर्णय दें कि, कुरान व पैगंबर के वचनों के अनुसार खलिफा पद का अधिकारी कौन है? इसका निर्णय सभी पर बंधनकारक हो।"" 

  7. कैस ने यह निर्णय आकर अली को बतलाया परंतु कैस ने बिना अली की अनुमति के पंचायत के प्रस्ताव को मान्यता दे डाली थी। अली को यह प्रस्ताव मान्य ना था। उसका दावा था कि खिलाफत का प्रश्न विवाद का मुद्दा ही नहीं है। वे कानूनन खलिफा हैं। परंतु विद्रोही सैनिकों ने उन्हें यह निर्णय मान्य करने के लिए बाध्य किया। परंतु, यह निर्णय स्वीकारने के लिए बाध्य करने के बारे में बाद में उन्होंने एक भाषण में कठोर प्रहार करते हुए कहा ''.... तुम्हें अब कभी भी सत्य प्राप्ति या सत्य के दर्शन नहीं होंगे।"" तालिबान के बारे में तो निश्चय ही अली के वचन फलीभूत हुए हैं। तालिबान की मार्गभ्रष्टता के कारण ही आज उन्हें न तो माफी के लायक ना ही उनके कृत्यों को जायज ठहराया जा रहा है और खवारिज का नाम दिया जा रहा है।

  8. अली ने इस पंचायत की जानकारी सैनिकों को देने का काम कैस को सौंपा। जब उसने सेना में जानकारी देना प्रारंभ किया तो  अनेक टोलियों ने आक्षेप लेना प्रारंभ कर दिया। उन सबका कहना था कि पंचायत का प्रस्ताव मान्य करना ही इस्लाम विरोधी है। ''निर्णय देने का अधिकार अल्लाह को है, मनुष्य को नहीं"" इस प्रकार की घोषणाएं शुरु हो गई। अरबी में यह घोषणा इस प्रकार थी ''ला हुकूम इलाहइल्लल्लाह""। अली ने उत्तर दिया ''यह अनुबंध करने के लिए तुम्हींने मुझे बाध्य किया है और अब मैंने वह मान्य करने पर तुम मुझे उसके विरुद्ध जाने के लिए कह रहे हो! क्या एक बार किया हुआ करार तोडा जा सकता है? नहीं, वह इस्लामानुसार अनुज्ञेय नहीं। दिया हुआ वचन अब मैं कैसे तोडूं? इसलिए अब लडाई ना करते पंचायत का निर्णय आने तक राह देखना पडेगी।""जैसे तैसे सैनिक शांत हुए और अली के साथ कुफा आने के लिए राजी हुए।

  9. युद्धभूमि से सभी सैनिक वापिस नहीं आए उनमें से लगभग 12,000 लोगों ने कुफा आने से इंकार कर दिया। इन टूटकर निकलनेवालों को 'खारिजी" कहते हैं। ये वही लोग थे जिन्होंने अली को युद्धबंदी के लिए बाध्य किया था। उन्होंने अपनी नीति घोषित की- ''केवल अल्लाह की आज्ञा पाली जाना चाहिए। निष्ठा केवल अल्लाह के प्रति रखी जाना चाहिए। लोगों को बतलाना हमारा कर्तव्य है कि, ... इस्लाम में खलिफा अथवा राज्यकर्ता नहीं होता। विजय के बाद सारी बातें मुसलमानों द्वारा परस्पर सलाह मशविरे से तय की जाना चाहिए और उसमें के बहुसंख्यों का ही निर्णय माना जाना चाहिए। अली और मुविया दोनो ही मार्गभ्रष्ट हो गए हैं।... हम पहले दोनो के विरुद्ध लडेंगे विजय प्राप्ति व सत्ता हाथों में आने के बाद अल्लाह के ग्रंथानुसार सारी बातें मुसलमानों से विचारविनिमय कर  सभी प्रश्नों पर निर्णय लेनेवाले हैं।"" इस प्रकार से अली और मुविया दोनो के ही विरोध में कट्टर धर्मनिष्ठ मुस्लिमों का तीसरा सशस्त्र गुट तैयार हुआ। ये खारिजी टोली-प्रजातंत्र वृत्ति के थे। किसी के हाथ की कठपुतली बनकर रहना उनके स्वभाव में नहीं था। परंतु, अली के साथ हुई चर्चा के बाद उन्होंने कुफा आकर फैसला आने तक शांत रहने की विनती को मान्य कर लिया।

  10. तय किए हुए अनुसार छः महीने बाद यानी जनवरी 658 में दोनो ही न्याय पंच एकत्रित हुए। परंतु यहां अली के साथ धोखा हुआ और अनपेक्षित रुप से मुविया को खलिफा घोषित कर दिया गया। इस निर्णय के बडे ही दूरगामी परिणाम हुए। यह निर्णय यानी मुविया की राजनैतिक जीत थी और अली के खलिफा पद को प्रचंड धक्का। अली ने यह निर्णय पंचों द्वारा धोखाधडी कर लिया गया होकर अल्लाह के ग्रंथानुसार नहीं है इसलिए मान्य करने से इंकार कर दिया। इस निर्णय के कारण मुस्लिम जगत में परस्पर विरोधी दो शत्रु गुट तैयार हो गए। इतिहास की दिशा ही बदल गई। खलिफा कौन हो, यह प्रश्न निरंतर वादग्रस्त हो गया। शांति की बजाए तलवार से तय किया जाने लगा। ''इस्लाम में खिलाफत के प्रश्न पर से जितना रक्तपात हुआ है उतना अन्य किसी पर भी नहीं हुआ है।''

  11. पंचायत को नकार कर अली ने मुविया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की और असंतुष्ट खारिजियों को भी उसमें शामिल होने का आवाहन किया। खारिजी पंचायत का निर्णय चाहते ही नहीं थे। उन्होंने उत्तर दिया ''तुम्हारी यह लडाई अल्लाह की प्रसन्नता के लिए ना होकर तुम्हारे स्वार्थ के लिए है। हम तुम्हें अल्लाह द्वारा तिरस्कृत धर्मत्यागी (काफिर) समझते हैं। अगर तुम जाहिर रुप से अपनी श्रद्धाहीनता की कुबूली देकर (अल्लाह के पास) पश्चाताप व्यक्त करो तो तुम्हें सहायता करने के बारे में विचार किया जाएगा अन्यथा हम तुमसे पराकाष्ठा की लडाई लडेंगे। अल्लाह तत्त्वहीन (श्रद्धाहीन) लोगों पर प्रेम नहीं करता।"" मैंने कोई सा भी अपराध नहीं किया है कहकर अली ने पश्चाताप व्यक्त करने से इंकार कर दिया। अंत में अली व खारिजियों में कोई समझौता हो ना सका।

  12. खारिजी इस्लाम में निर्मित हुआ आद्य पंथ है। उन्होंने खिलाफत की जो तात्त्विक प्रस्तुती की है इस कारण इस पंथ को बहुत महत्व है। वे इस्लाम के पहले मूलतत्त्ववादी माने जाते हैं। वे विशुद्ध इस्लाम के समर्थक थे। शिया पंथ राजनैतिक आधार पर निर्मित हुआ था तो, यह पंथ धार्मिक आधार पर निर्मित हुआ था। इनकी तात्त्विक भूमिका विस्तार भयावश यहां दे नहीं रहे हैं परंतु खारिजी कुरान की एक आयत (4ः100) से संबंधित है। 'खारिजी" यानी वे लोग जो श्रद्धाहीनों की बस्ती के अपने घर छोडकर अल्लाह के कार्य के लिए दूसरी ओर निकल जाते हैं। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ होकर मुस्लिम समाजांतर्गत सामाजिक समता उनका आदर्श था। 'सारे मुसलमान परस्पर बंधु हैं", इस सिद्धांत पर उनका विश्वास था। श्रद्धाहीन कौन इस संबंध में उनकी कुरानाधारित भूमिका बडी विशिष्ट थी- खारिजियों के अतिरिक्त अन्य मुसलमान मुसलमान न होकर श्रद्धाहीन हैं। ... यानी खारिजियों के अतिरिक्त अन्य मुस्लिमों के विरुद्ध लडना उनका धार्मिक कर्तव्य है। वे अल्लाह के राज्य के समर्थक थे। उस राज्य की उन्हें स्थापना करना थी मनुष्य का राज्य उन्हें मान्य नहीं था। इसी कारण से हमने तीसरे खलिफा उस्मान की हत्या की थी, ऐसा वे स्पष्ट रुप से कहते थे और अपनी कृति का समर्थन करते थे। अली ने पंचायत मान्य कर अल्लाह की आज्ञा तोडी है अतः उससे लडने व उसकी हत्या करने के लिए वे तैयार हो गए थे। ऐसे खलिफा के विरुद्ध लडना जनता का अधिकार है इसे ही वे 'अल्लाह का राज्य" कहते थे।

  13. अल्लाह के कार्य के लिए प्राण देना वे अपना जीवन कर्तव्य मानते थे। कुरान की (9ः111) आयत के आधार पर उन्हें 'स्वर्ग प्राप्ति के लिए प्राण बेचनेवाले" कहा जाता है। उनकी इस कट्टरता के कारण उन्हें इतिहासकारों ने 'अतिरेकी", 'धर्मांध" के विशेषण लगाए हैं। परंतु, कुछ लोग उन्हें 'पक्के धर्मनिष्ठ", 'धर्म की शुद्धता का पालन करनेवाले", 'मुहम्मद के सच्चे अनुयायी", 'प्रामाणिक  और एकनिष्ठ श्रद्धावान" कहते हैं। सतत नमाज पढ़ते रहने के कारण उनके माथे पर काले घट्ठे पड गए थे। उनके नेता अब्दुल बि. वहाब का कहना था अल्लाह ने कहा है ''जो अल्लाह के ग्रंथानुसार निर्णय नहीं लेते वे अत्याचारी और अन्यायी हैं।" (5ः44,5,7) उन्होंने अन्य मुसलमानों को जिनमें गर्भवती महिलाएं, बच्चे भी शामिल हैं मारना प्रारंभ कर दिया। पहले तो अली ने उन्हें समझाने की कोशिश की परंतु, अंततः खारिजियों से लडाई अटल समझ अपनी सेना को उन पर हमले करने का आदेश दे दिया।

  14. खारिजियों ने 'चलो स्वर्ग की ओर", 'जल्दी करो" की घोषणाओं के साथ युद्ध शुरु कर दिया। अली की प्रचंड सेना के सामने वे टिक ना सके और लगभग सभी मारे गए। उनकी सारी संपत्ति लूट ली गई। इस्लाम के स्वर्णयुग कहे जानेवाले उस युग में तो अली ने इन इस्लाम से निकलों का संपूर्ण नाश कर दिया परंतु आज के इस आधुनिक युग में इन नए इस्लाम से निकले 'तालिबानियों" का नाश कौन करेगा यह देखना है।

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