Sunday, March 30, 2014

31 मार्च नववर्ष विशेष -

 विविध प्रकार से नववर्ष मनाते हैं भारतीय 

पाश्चात्य देशों में जितने जोरशोर से नववर्ष के आगमन का स्वागत किया जाता है उतना उत्साह हमारे यहां प्रकट करते हुए लोग नजर नहीं आते। इसका प्रमुख कारण है हमारे देश में प्रचलित विभिन्न प्रकार के पंचांग और उससे भी अधिक सादगी से त्यौहार मनाए जाने की हमारी रीत। विभिन्न पंचागों के कारण पूरे देश में नववर्ष भिन्न-भिन्न माहों एवं तिथियों को मनाया जाता है। परंतु, पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण हममें से कई ईस्वी संवत्‌ को ही विश्व संवत समझ बैठे हैं और जनवरी माह की पहली तारीख को ही नववर्ष का प्रथम दिन । अंगे्रजों के आने के पूर्व भारत में कई संवत प्रचलित थे। उनमें विक्रम एवं शक संवत प्रमुख हैं। बौद्ध संवत्‌ भी प्रचलित था। यह भगवान बुद्ध के निर्वाण से आरंभ हुआ था। इस संवत को सन्‌ 110 ई. पू. लिच्छवियों ने नेपाल और भारत में प्रचलित किया था। परंतु, अंगे्रजों ने अपनी भाषा की तरह ही अपना संवत्‌ भी हम पर लाद दिया जिसे हम आज भी ढ़ो रहे हैं। भारत सरकार ने ईस्वी संवत्‌ के साथ शक संवत्‌ को भी मान्यता दे रखी है। परंतु, भूलेभटके ही चैत्र शुद्ध प्रतिपदा को कुछ ही लोग नववर्ष की शुभकामनाएं भेजते हैं।

वर्षप्रतिपदा का दिन सृष्टि की रचना का दिन है, भारत की गौरवमयी परंपराओं का द्योतक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार 'चैत्रे मासिक जगद्‌ ब्रह्मा ससजं प्रथमे हनि" अर्थात्‌ चैत्र मास की पहली तिथि को ब्रह्माजी ने सृष्टी की रचना की। इसी दिन भारत के समस्त ग्रहों, वारों, महीनों और संवत्सरों की वैज्ञानिक रचना की गई। मुगलकाल में हिजरी संवत्‌ का वर्चस्व रहा, राजभाषा फारसी तो कालगणना इस्लामी भले ही बनी रही परंतु, भारत के जनजीवन के कार्यों जैसेकि मंगल कार्य, व्यापारिक कामकाज, भवननिर्माण, यात्रा, आपसी पत्र व्यवहार आदि पर भारतीय संवत्‌ का प्रभाव बना रहा। परंतु, राजकीय सम्मान सम्राट पृथ्वीराज चौहान के काल तक ही रहा।

चैत्र शुद्ध प्रतिपदा अर्थात्‌ गुढ़ी पाडवा साढ़े तीन शुभ मुहुर्तों में से एक माना जाता है। इसलिए महाराष्ट्र में इस त्यौहार को अत्यंत महत्व प्राप्त हुआ है। कोई भी नया कार्य प्रारम्भ करना हो तो यह दिन शुभ माना जाता है। इसी दिन चौदह वर्ष वनवास और लंका विजय के पश्चात भगवान राम ने अयोध्या में प्रवेश किया था। महाराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। हिंदूधर्म एक होने पर भी नववर्ष लगभग प्रत्येक समाज के विभिन्न होकर उसे मनाने की विधियां भी उस-उस प्रदेश या समाज की भिन्न-भिन्न हैं। कश्मीर में नववर्षोत्सव का शुभारंभ चैत्र मास की पहली तिथि से मानते हैं। नववर्ष को कश्मीरी भाषा में 'ना वेरह" (नूतन वर्ष) कहते हैं। उस दिन थालियों में फल-फूल, नया अन्न  और आभूषण सजाकर मंदिरों में यह मानकर ले जाया जाता है कि इससे नववर्ष जीवन में सुख-समृद्धि लेकर आएगा। 

केरल में नववर्ष को कोलल वर्ष कहते हैं, जो मलयाली कैलेण्डर के अनुसार अप्रैल के समानान्तर 'मेडम" माह की पहली तिथि को मनाया जाता है। इस प्रथम दिवस को 'विशु" कहते हैं जो बडे धूमधाम से मनाया जाता है। बीत गए वर्ष की अंतिम रात्री को सारी बहुमूल्य वस्तुएं और सामग्री सजाकर एक कमरे में बंद कर रख देते हैं और नववर्ष के पहले दिन पहली दृष्टि उन्हीं पर पडे यह सोच उस कमरे की ओर दौड पडते हैं। इसके पीछे सोच यह है कि जिस भी वस्तु पर पहली दृष्टि पडेगी वही चीज उन्हें वर्ष भर मिलती रहेगी। तमिलनाडु में नववर्ष तमिल पंचांग के अनुसार पौष महिने में शुरु होता है। तमिलनाडू में इसे पोंगल तो कर्नाटक में संक्रांती  कहते हैं। सूर्यदेवता का यह उत्सव तीन दिन तक मनाया जाता है।

तमिल पंचांग के अनुसार मार्गली या मार्गशीर्ष वर्ष का अंतिम महीना रोगकारी और अशुभ माना जाता है। इस कारण इस महीने में इन कष्टों के निवारणार्थ कुछ विधियां और व्रत किए जाते हैं। अंतिम दिन को भोगी कहते हैं। तमिल में भोगी मतलब इन्द्र। कंदस्वामी मंदिर से बडी रथयात्रा निकलती है। मदुराई, त्रिचनापल्ली और तंजावर क्षेत्र में 'जाल्लिक्कटू" यानी बैलों की शर्त लगाई जाती है। मस्त हो चूके बैलों के सिंगों पर पैसे बांधकर हाथ में लकडी वगैराह कुछ भी ना लेते पैसे हस्तगत करने का खेल खेला जाता है।  

असम में नववर्ष बैसाखी पर ही शुरु होता है उसे 'गौरबिहू" कहते हैं यानी पशुओं का मेला। पशुओं की पूजा की जाती है। बैलों का श्रंगार किया जाता है और उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। जिसमें लोग उमड पडते हैं, लोक संगीत की धुन पर नाचते-गाते चलते हैं। शोभा यात्रा के अंत में पशुओं को गुड खिलाते हैं। सिंधी समाज का नववर्ष यानी चेटीचांद। इस दिन मंदिर में जाकर भगवान झूलेलाल की आरती उतारी जाती है। झूलेलाल पानी का अवतार होने के कारण पानी में दिए छोडकर आराधना की जाती है।

पंजाब में बैसाखी के दिन से नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। इसका स्वागत समाज भांगडा नृत्य द्वारा करता है। महिलाएं और लडकियां 'गिद्दा" नृत्य करती हैं। बिहार में चैत्र में नववर्ष मनाया जाता है। नववर्ष के आगमन पर  दिन भर अबीर और रंगों से खेलते हैं। भांग घुटती है। नववर्ष के स्वागत में देर रात तक नाचते-गाते हैं। बंगाल में आषाढ़ी संवत्‌ प्रचलित है। आषाढ़ का पहला दिन नववर्ष होता है। उत्तरप्रदेश में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्षोत्सव मनाया जाता है। वाराणसी, विंध्याचल, पूर्णागिरी और अयोध्या में नवरात्री मेले में भाग लेने के लिए देश भर से श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। चैत्र सुदी प्रतिपदा को ही महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान में विशेष उत्साह के साथ नववर्ष मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन को गुढ़ीपडवा कहते हैं। इस प्रकार से विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न प्रकार से नववर्ष मनाते हुए हम इस राष्ट्र को विभिन्न छटाओं-परंपराओं के साथ एक सूत्र में पीरोए हुए हैं। 

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