Monday, February 3, 2014

वसंत पंचमी विशेष 
जापान में देवी सरस्वती
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जापान में देवी सरस्वती की उपासना चीन होते हुए 6ठी या 8वीं शताब्दी में पहुंची है। जापान में देवी सरस्वती 'बेनजाइतेन" के नाम से जानी और पूजी जाती है। जापानी चित्रलिपी में बेनजाइतेन तीन प्रतीकों में लिखा जाता है। बेन यानी वाणी, साइ-प्रतिभा, तेन-स्वर्ग। देवताबोधक शब्द संधि में 'साइ" का उच्चारण 'जाइ" हो जाता है। जाइ का अर्थ धन-संपत्ति भी होता है। इसी प्रतीक के कारण जापान में देवी सरस्वती को धन-संपत्ति की देवी भी माना जाता है। बेनजाइतेन के दो अर्थ इस प्रकार से भी निकलते हैं। पहला ः वाणी और प्रतिभा की देवी। दूसरा, वाणी और संपत्ति की देवी। परंतु, जापान में सरस्वती का धन एवं सौभाग्यदात्री वाला रुप ही अधिक मान्य है। 

चीनीयों ने सरस्वती के बहने के गुण विशेष को चुना तो जापानीयों ने वाक्‌चातुर्य को व इसको जलदेवता के रुप में संगीत, साहित्य तथा ज्ञान की देवता के रुप में जापान में मान्यता मिली। इस प्रकार यह एक शिंटो देवता के रुप में और बुद्ध के बोधिसत्व के गुणों के रुप में भी जानी जाती है। बेनजाइतेन को सर्प और ड्रेगन से भी जोडा जाता है। जो पूर्व व दक्षिण एशिया में जल जीव माने जाते हैं। बेनजाइतेन शक्ति एवं नियंत्रणकर्ता का मूर्त रुप है और उसका विवाह ड्रेगन से हुआ है यह भी मान्यता है। सरस्वती और उसके विभिन्न रुप जापान में पूजे जाते हैं। 

जापान में सर्प सौभाग्यमूलक माना जाता है। अतः सरस्वती के वाहन हंस का स्थान यहां सर्प ने ले लिया है और वह उसके मुकुट पर विराजमान है। भारत में सरस्वती के हाथ में वीणा है जबकि जापान में वीणा का स्थान बीवा नामके वाद्ययंत्र ने ले लिया है। 

जापान में एनोशिमा नामका एक द्वीप है जिसका कुल घेरा 4 चार कि.मी. है। जो 600 मीटर लंबे पुल द्वारा मुख्य भूमि से जुडा हुआ है। यहां प्राकृतिक रुप से बनी हुई गुफाओं की श्रंखला बनी हुई है जो आपस में एक दूसरे से जुडी हुई हैं। अंतिम गुफा की छत सिर को छुने जितनी ऊंची होकर वहां गहन अंधकार छाया रहता है। इसी गुफा में अवस्थित है जापान की प्रसिद्ध 'बेनजाइतेन" अर्थात्‌ सरस्वती। सरस्वती का वास यहीं माना जाता है। परंतु, साधारण यात्री यहां तक आ नहीं पाता। मंदिर द्वीप के प्रवेशमार्ग पर स्थित मंदिर मेंं मूल प्रतिमा प्रतिष्ठित है व अनुकृति कंदरा में है।

मंदिर के तोरणद्वार के सम्मुख एक बोर्ड पर अंकित है - नग्न बेनजाइतेन (अथवा सरस्वती) ''इस द्वीप में अधिष्ठित सौंदर्य और सौभाग्य की भारतीय देवी सरस्वती अथवा नग्न बेनजाइतेन (परंतु एनोशिमा में जाकर सरस्वती निर्वसना कैसे हो गई यह अनुत्तरित है) के नाम से विख्यात है। क्योंकि वह बीवा बजाने की मुद्रा में एक चट्टान पर नग्नावस्था में अवस्थित है। यह बेनजाइतेन इस देश की तीन सर्वप्रतिष्ठित सरस्वती प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है।""  फुजिसावा नगर कार्यपालिका

सरस्वती की लोकप्रियता इस पर से ही पता चलती है कि 1832 की जनगणना के अनुसार अकेले टोकियो में सरस्वती के 131 मंदिर हैं। लगभग इतने ही मंदिर क्योटो, ओसाका और नारा शहरों में भी हैं।

जापानी कलेंडर के अनुसार बारह वर्षों का एक वर्ष चक्र माना जाता है। इन बारह वर्षों के बारह प्रतीक इस प्रकार से हैं। चूहा, बैल, शेर, खरगोश, ड्रेगन, सर्प, घोडा, भेड, बंदर, चिडिया, कुत्ता और वराह। हरएक वर्ष इन्हीं प्रतीकों पर से जाना जाता है। चूंकि  सर्प को सरस्वती का संदेशवाहक भी माना जाता है।अतः प्रत्येक सर्प वर्ष के आगमन पर सरस्वती पूजा का विशेष महत्व रहता है और एनोशिमा में तो प्रत्येक सर्प वर्ष पर एक बहुत बडे महोत्सव का आयोजन किया जाता है। देशभर से सरस्वती के उपासक व  कृपा के आकांक्षी एनोशिमा में आकर धन-संपत्ति एवं ऐहिक समृद्धि की कामना करते हैं।  

श्रद्धालुओं में अधिकतर व्यापारी, सट्टेबाज और जुआरी ही होते हैं। एनोशिमा के निकट ही कामाकुरा में एक सरस्वती मंदिर है जिसमें एक जलकुंड भी है। जिसके बारे में यह विश्वास है कि उस जलकुंड के स्पर्श से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। इसलिए श्रद्धालु अपने सिक्कों, नोटों का स्पर्श उस जल से कराते हैं। सरस्वती से संबंधित अनेक रोचक कथाएं भी जापान के जनसामान्य में प्रचलित हैं तो, कुछ अंधविश्वास भी। 

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