Friday, February 21, 2014

कणाद - वैशेषिक दर्शन के प्रणेता

आज हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक पदार्थ अतिसूक्ष्म कणों से बना हुआ होता है। परंतु, क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले यह प्रतिपादित किसने किया? ऋषि 'कणाद" ने। पृथ्वी, तेज, जल और वायु इनके अविभाज्य सूक्ष्म अंशों से यानी अणुओं से इस विश्व की निर्मिती हुई है। प्रत्येक अविभाज्य अणु उसीके समान अणु से अलग होता है। यह सिद्ध करनेवाला विलक्षण धर्म 'विशेष" प्रत्येक अणु में है। यह उन्होंने तर्क द्वारा सिद्ध किया। इसीलिए उन्हें वैशेषिक दर्शन का आद्य प्रवर्तक माना जाता है।

कणाद यह कोई उनका असली नाम नहीं, उनका असली नाम क्या है? यह भी किसीको मालूम नहीं। शायद कण (अणु) वाद का जोरदार समर्थन करने के कारण उनका नाम कणाद पडा हो। यह भी संभव है कि उनके द्वारा खेतों में पडे अनाज के कण एकत्रित कर अपनी उपजीविका चलाने के व्रत को आचरण में लाने के कारण उनको कणभक्ष, कणभुज एवं कणाद नाम प्राप्त हुआ हो। उनके पिता का नाम उलूक और गौत्र कश्यप था। कुछ लोगों के मतानुसार वे दिन भर तो ग्रंथ रचना करते और रात्री में भोजन प्राप्ति के लिए उल्लू के समान निकलते इसलिए उन्हें लोग उलूक कहते और उनके दर्शन को उलूक का तत्त्वज्ञान या औलूक्य दर्शन। बौद्धवाद पर उनके कणवाद का प्रभाव दिख पडता है। परंतु, उनके वैशेषिक सूत्र में कहीं भी बौद्धवाद का उल्लेख नहीं। उनके बुद्ध पूर्व होने की संभावना व्यक्त की जाती है।

कुछ लोगों का यह कहना है कि वर्तमान में अफगानिस्थान के कंदाहार प्रांत में 'उलूक" नाम की एक जाति थी। कणाद ऋषि का जन्म उसी जाति में हुआ होना चाहिए इसलिए उनका नाम उलूक पडा। कणाद के दो नाम और भी बतलाए जाते हैं - कश्यप और पाशुपत। कणाद कब हुए इसकी निश्चित कालावधि तो किसीको मालूम नहीं। परंतु, वह ईसा से छः शताब्दी पूर्व हुए, ऐसा माना जाता है। सौराष्ट्र (वर्तमान गुजरात) के सागर किनारे आश्रम बना उसमें वे निवास करते थे। प्रत्येक पदार्थ अतिसूक्ष्म कणों से बना है यह सर्वप्रथम प्रतिपादित करने का श्रेय डिमॉक्रिट्‌स को दिया जाता है। वह पांचवी शताब्दी में हुआ यानी कणाद उसके भी पूर्व हुए  और उन्होंने विज्ञानवाद पर भाष्य करना उस काल में प्रारंभ किया इसको अब मान्यता भी मिलने लगी है। 

वैशेषिक दर्शन इस ग्रंथ में कणाद ने अपने तर्कानुसार अणु का आकार कितना होता है यह बतलाया है। घर की खिडकी से आनेवाली सूर्य किरणों में जो कण दृष्टिगोचर होते हैं वे यानी 'त्र्यणुक" और एक त्र्यणुक का छठा भाग यानी अणु! सत्य तो यह है कि अणु इससे कई गुना छोटा होता है। प्रत्येक सूक्ष्म कण यानी पदार्थ को विभाजित करते चले जाएं तो मिलनेवाला अंतिम कण अथवा अणु। इससे आगे और छोटा कण मिल नहीं सकता, ऐसी समझ उस काल में ही नहीं तो 20वीं शताब्दी के आरंभ तक थी। (वैसे अब अणु से भी सूक्ष्म कण होता है यह सिद्ध हो चूका है) परंतु, उस काल में भी कणाद को अणु की सूक्ष्मता के विषय में ज्ञान था, उसकी कल्पना थी यह बात विशेष है।

आज के रसायन और भौतिक शास्त्र का आधार सिद्ध होनेवाली अनेक बातें कणाद ने बतलाई हुई हैं। उदाहरणार्थ अलग-अलग पदार्थों के अणुओं के स्वरुप भिन्न-भिन्न होते हैं, अणुओं में उस पदार्थ के सभी गुणधर्म मौजूद रहते हैं और अणुओं के संयोग से ही पदार्थों की निर्मिती होती है। उन्होंने अणुओं के आकार के बारे में भी बतलाया हुआ है। विशेष बात यह है कि कणाद का अणु सिद्धांत और 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश वैज्ञानिक जॉन डॉल्टन द्वारा प्रस्तुत अणु सिद्धांत में बहुत समानता है। 
विश्व निर्माण से संबंधित अनेक सिद्धांत आधुनिक शास्त्रज्ञों ने प्रतिपादित किए हैं। कणाद ने भी इस संबंध में अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया हुआ है। कणाद के अनुसार चार त्र्यणुकों से एक बडा कण तैयार होता है इस कण को 'चतुत्र्यणुक" कहते हैं और इसके बाद सृष्टि का निर्माण हुआ होना चाहिए। 

पूर्व के विद्वानों की यह उक्ति प्रसिद्ध है - काणादं पाणि नीयंच सर्वशास्त्रोपकारम्‌ अर्थात्‌ कणाद दर्शन और पाणिनी ऋषि का व्याकरण सभी शास्त्रों में उपकारक है। उनका यह कहना कितना सार्थ है यह इस पर से ही पता चलता है कि आज से 2500 वर्ष पूर्व कणाद का अणुवाद भारत विज्ञान के क्षेत्र में कितना आगे था इसका गवाह है।

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