Friday, February 7, 2014

पाकिस्तानी आक्रमकता के प्रेरणा पुरुष - 3

...... भारत ने जब अपना मिसाइल कार्यक्रम बनाया तो उसने अपनी मिसाइलों का नाम पंच महाभूतों पर से पृथ्वी, अग्नि, आकाश रखा। परंतु धर्मांध पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों के नाम रखे गोरी, गजनी, बाबर आदि। ये माना कि पाकिस्तान ने रखे इन नामों में एक समानता जरुर थी कि ये सबके सब भारत पर आक्रमण करनेवाले क्रूर मूर्तिभंजक योद्धा थे। परंतु, बाबर को इनके साथ रखना समझ के परे है। बाबर एक आक्रमणकारी होेने के साथ-साथ उस जमाने के आक्रमणकारियों से एकदम अलग था। यह हमें उसके 'बाबरनामा" जो उसके स्वरचित संस्मरणों के संग्रह से पता चलता है। जो मूलरुप से तुर्की में लिखे गए हैं। अंग्रेजी में अनुवादित संस्करण का हिंदी अनुवाद युगलजीत नवलपुरी ने किया होकर प्रकाशन साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने किया हुआ है। भूमिका में लिखा हुआ है ः ''ये संस्मरण अपनी कहानी स्वयं कहते हैं। विद्वानों ने इन्हें संत अगस्टीन और रुसो की स्वीकृतियों और गिबन और न्यूटन के संस्मरणों के समकक्ष स्थान दिया है। एशिया में तो ये अद्वितीय हैं।""


बाबरनामा पढ़ते समय हमें यह पता चलता है कि बाबर कितना खुले दिलो-दिमाग का व्यक्ति और स्पष्टवक्ता था इसका परिचय ग्रंथ के प्रास्ताविक से ही पता चलने लगता है। वह अपने शिष्टाचार शिक्षक के बारे में लिखता है ''अमीर शेख मजीद के कायदे करीने बहुत ही अच्छे थे। मेरे पिता की सरकार में उनकी सी इज्जत किसी और की न थी। लेकिन थे वह बडे लंपट और इसलिए गुलाम बहुत रखा करते थे।"" (पृ.11) बाबर आगे लिखता है ''मुल्कगीरी और मुल्कदारी में (देशविजय और अधिशासन) कुछेक काम ऐसे भी होते हैं जो ऊपर से उचित और सकारण जान पडने पर भी करने लायक नहीं होते। हर काम के लिए लाख तरह की ऊंच-नीच देखनी होती है।""(79) मुगलों के बारे में वह लिखता है ''मुगलों की जाति ने हमेशा बुराइयां और बगावतें की हैं। आज तक पांच बार तो मुझी से उखड चूकी हैं। यह नहीं कि मुझे पराया जानकर मुझसे ऐसा किया हो और बिगड खडी हुई हो। मुगल तो अपने खानों, सरदारों के साथ भी बार-बार ऐसा ही करते रहे हैं।"" (80) ग्रंथ में इस कथन पर टिप्पणी है ''इतिहास का कैसा व्यंग्य है! जिन मुगलों के प्रति बाबर के ऐसे कटु भाव थे, उन्हीं के नाम पर बाबर का स्थापित किया हुआ भारतीय साम्राज्य 'मुगल साम्राज्य" और खुद बाबर का वंश 'मुगल राजवंश" कहलाया और दोनो इतिहास में इसी नाम से रह गए।"" (82)


अपने प्रेमाकर्षण के बारे में वह बडी ही संजीदगी और ईमानदारी से लिखता है ''अभी नई-नई शादी हुई थी, आयशा सुलतान बेगम से (पत्नी) बहुत लगाव था। जी चाहता था कि हर घडी उसीके पास रहूं। मगर लाज के मारे दसवें, पंदरहवें या बीसवें ही कहीं उसके पास जा पाता था। बाद को जी में वह लगाव ही न रहा। न जाने कैसे वह जी से उतरने लगी। इधर लजीलापन भी और बढ़ चला। बात यहां तक आ पहुंची कि महीने-डेढ़ महीने पर मेरी मॉं मुझे बहुत ही धमका-धमकाकर और डॉंट-फटकार कर बडी कठिनाई से उसके पास भेजा करती थी।


उस समय उर्दू-बाजार में एक लडका था। उसका नाम था 'बाबरी"। हमनामी का यह लगाव भी क्या लगाव निकला! ....इससे पहले मैं किसी पर मुग्ध या आसक्त न हुआ था।... अब हाल यह हुआ कि फारसी में प्यार के एकाध शेर तक कहने लगा। उनमें से एक शेर यह है .... (हिंदी में) कोई आशिक, नंगे खुद, बरबाद मुझ जैसा न हो, और तुझ-सा बुत कोई बेरहम बेपरवा न हो।


लेकिन हाल यह था कि अगर कभी बाबरी मेरे सामने आ जाता था तो लाज और सकुचाहट के मारे मैं उसकी ओर आंख भर देख भी नहीं सकता था। .... आशिकी और दीवानगी के उन्हीं दिनों में एक बार ऐसा हुआ कि ... अचानक बाबरी से मेरा आमना-सामना हो गया। मेरी अजब हालत हो गई थी। ... बहुत झेंप और घबराहट के साथ मैं आगे बढ़ पाया। उस समय मुहम्मद सालिह की यह फारसी बैत बरबस याद आ गई ... गडा जाता हूं जब-जब यार का रु देखता हूं मैं। मुझे सब देखते हैं, और ही सू देखता हूं मैं।।


यह बैत मेरे हाल पर सोलहों आने सच थी। ... न अपने या पराये की ओर कोई शिष्टता रह गई थी और न अपनी या दूसरे की कोई परवा। इस तुरकी शेर के शब्दों में ... न था मालूम, यह गत आशिकी में मैं बना बैठा-सपरी चेहरों का आशिक बेखुदो-दीवाना होता है। कभी तो मैं पागलों की तरह जंगलों-पहाडों में मारा-मारा फिरता था और कभी बागों और महल्लों में गली-गली भटकता रहता था। न तो भटकते फिरने पर अपना बस था और न ही मन मारे बैठे रहने पर। न चलने में चैन मिलती थी न ठहरने में। ... जाऊं न वह कूवत रही, ठहरूँ नहीं वह ताब। क्या और तू ऐ दिल मुझे बेहाल करेगा।"" (87,88)


बाबर अंधश्रद्ध नहीं था यह इस वाकिये से पता चलता है - ''काबुल लेने के बाद मैं गजनी भी गया था। बताया गया कि यहां के एक गांव में एक ऐसा मजार है जो दुरुद (प्रार्थना) पढ़ने पर हिलता है। मैंने जाकर देखा। सचमुच हिलता जान पडा। पर भेद छिपा न रहा। मुजाविरों (दरगाह के पंडे) की चालाकी थी। एक चिलपा (मचानी जाफरी का फर्श जिस पर खडे होकर दर्शन करते हैं) बना था, जो चढ़ते ही हिलने लगता था। इससे कब्र भी हिलती लगती थी, जैसे नाव से किनारा चलता लगता है। मैंने चिलपा उखडवा दिया, गुंबद बनवा दिया और मुजाविरों को धमका दिया कि यह सब मत किया करो।"" (152)


'सन्‌ 925 हिजरी की घटनाएं" वाला अध्याय बाबर के पीने-पिलाने के किस्सों से भरा पडा है। 'अपने बेटे हिंदाल (हिंद विजय) का जन्मोत्सव में पीने का दौर चला अरक (ताडी) से जी भर गया तो माजनू (भांग) खाई। फिर माजूनी और शराबी उलझ पडे। जलसा मिट्टी हो गया। सब तीन तेरह हो गया। मकान पर आते ही मैंने कई बार कै की।" (281,2)


ऐसे बाबर के नाम पर मिसाईल या आतंकवादी टुकडी का नाम रखना नितांत हास्यास्पद ही है, पाकिस्तान के अपने ही मूल चरित्र व्यवहार के विपरीत है।

2 comments:

  1. पाकिस्तान कि सोच ठीक है उसका निर्माण ही इसी अधर पर हुआ है भारत और हिंदुओं को अपने बारे में विचार करना है यहाँ तो सेकुलर (देशद्रोही) बनाने का प्रयास हो रहा है.

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