Friday, February 7, 2014


....... सलाहुद्दीन अय्यूबी - को इस्लाम का महानतम कर्णधार कहा जाता है। सामान्यतः धर्मयुद्धों (क्रूसेड वर्सेस जिहाद) की संख्या 7 से 9 बतलाई जाती है। इन युद्धों को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहला काल विजय काल कहलाता है, दूसरा मुस्लिम प्रतिक्रिया का काल है ः यह सुल्तान सलाहुद्दीन की शानदार विजय से समाप्त होता है। सलाहुद्दीन कुर्द परिवार में जन्मा होकर सीरियाई था। इसने मिस्त्र से शिया मत को निकालने और फ्रैंकों के विरुद्ध जिहाद करने के लिए खुद को अर्पित कर दिया था। इसीने 2 अक्टूबर 1187 को जेरुसलम को जीतकर अल्‌अक्सा की मस्जिद में गिरजे के घंटे का स्थान अजान को दे दिया था और पहाडी गुम्बद पर सोने के क्रॉस को टुकडे-टुकडे करवा दिया था।


अबू जुंदाल - को हुदैबिया के समझौते जो मक्का के मूर्तिपूजक कुरैशों और पैगंबर के बीच हुआ था। जिसे कुरान में महान विजय करार दिया गया है की शर्त नं 5 ः ''काफिरों का मुसलमानों में से अगर कोई शख्स मदीना चला जाए तो उसे वापस कर दिया जाए, लेकिन अगर कोई मुसलमान मक्का में जाए तो वह वापस नहीं किया जाएगा।"" यह समझौता हुआ ही था कि, सुहैल बिन अम्र (जो मक्का की ओर से समझौता कर रहा था) के सामने अबू जुंदाल (सुहैल बिन अम्र का बेटा - वह मक्का में ही मुसलमान बन चुका था) मक्के से भागकर वहां पहुंच गया। शर्त के अनुसार पैगंबर ने उसे कुरैशों के सुपुर्द कर दिया। कुरैशों ने मुसलमानों के कैम्प में जुंदाल की मुश्कें बांधी , पांवों में जंजीर डाली और खींचकर ले गए। अबू जुंदल की जिल्लत को मुसलमान गुस्से और अपमान के साथ देखते रहे किंतु कुछ कर न सके। पैगंबर ने फरमाया कि, 'मैं खुदा का पैगंबर हूं और उसके हुक्म की नाफरमानी नहीं कर सकता। खुदा मेरी मदद करेगा।"


अल्‌ फारुक (यानी सत्य और असत्य को अलग करनेवाला) - यह उपाधि है दूसरे खलीफा उमर की जो उन्हें पैगंबर ने बहाल की थी। पैगंबर उनकी सलाह पर गंभीरता से विचार करते थे। उनकी कुछ सलाहों को उन्होंने मान्य भी किया था। उनकी कुछ सलाहें संक्षेप में इस प्रकार से हैं - 1). इतिहास प्रसिद्ध बद्र युद्ध (सन्‌ 624) के दौरान मुसलमानों ने 70 लोगों को कैद किया था। मक्का के इन कैदियों का क्या किया जाए रिहाई के बदले कुछ लेकर छोड दिया जाए कि, कत्ल कर दिया जाए यह प्रश्न उपस्थित हुआ। पहले खलीफा अबूबकर ने कहा ः ''वे अपने रिश्तेदार हैं। उनमें मुस्लिमों के माता-पिता, भाई-बहन आदि हैं। उनकी रिहाई के बदले कुछ लेकर उन्हें छोड दिया जाए। शायद इससे अल्लाह उनके ह्रदय इस्लाम के लिए अनुकूल बनाएगा और श्रद्धाहीनों (गैरमुस्लिमों) के विरोध में अपनी ताकद बढ़ाएगा।"" इस संबंध में उमर ने अपना मत दिया ः ''हे पैगंबर! वे लोग अल्लाह के दुश्मन हैं। उनका सिर कलम करना चाहिए ... वे श्रद्धाहीन/मूर्तिपूजकों के नेता हैं ... ऐसा करने पर अल्लाह इस्लाम को मजबूत करेगा और मूर्तिपूजकों को नीचे लाएगा।"" इस पर विचार कर पैगंबर ने अबूबकर की सूचना को मान्य किया।


दूसरे दिन उमर पैगंबर से मिलने गए तब वहां पैगंबर और अबूबकर दुखी होकर बैठे हुए थे। इसका कारण पूछने पर पैगंबर ने कहा- ''हे उमर, अल्लाह ने तुम्हारी कैदियों संबंधी सूचना को मान्य किया है।"" इसके बाद पैगंबर ने हाल ही में अवतरित हुई आयत (8ः67) पढ़कर सुनाई। (इस संबंध में हदीस भी हैं) इस प्रकार से उमर की सूचना पर अल्लाह ने पुष्टि की मुहर लगाई। यह आयत इस प्रकार से है ः ''किसी नबी के लिए उचित नहीं कि उसके पास बंदी हों जब तक कि वह गलबा (प्रभुत्व) हासिल ना करले। तुम लोग दुनिया के फायदे चाहते हो और अल्लाह (तुम्हारे लिए) आखिरत चाहता है। अल्लाह प्रभुत्वशाली है, तत्त्वदर्शी है।""


इस आयत पर कुरान भाष्य कहता है ः ''इस घटना का जो पहलू अनुचित था वह यह कि दुश्मन का अच्छी तरह सफाया करने के बजाए उन्होंने बंधक बनाना शुरु किया जिसमें यह मनोवृत्ति काम कर रही थी कि इनसे फिदयः (प्राणमूल्य) में अच्छी खासी रकम वसूल हो जाएगी। अल्लाह ने मुसलमानों की इसी मानसिकता पर और उनकी इसी कार्यशैली पर पकड की है। आयत का मतलब यह है कि एक नबी के नेतृत्व में लडी जानेवाली जंग में निगाहें उस उच्चतम उद्देश्य पर केंद्रित रहनी चाहिए जिसके लिए एक नबी जंग के मैदान में उतरता है न कि उन आर्थिक और भौतिक लाभों पर जो जंग के उपलाभ के तौर पर प्राप्त होते हैं। उद्देश्य का तकाजा यह था कि बद्र में जब दुश्मन पराजय का मजा चख रहा था तो उसको बिल्कूल से तोड दिया जाता। खास तौर से दुश्मन के किसी लीडर को तो जिन्दा ना रहने दिया जाता कि फिर उसे सिर उठाने का मौका मिले। मगर तुमने जल्दबाजी में समय से पहले गिरफ्तारी का सिलसिला शुरु किया मात्र इस कारण से कि तुमको फिदयः लेने का मौका मिलेगा। खूब सुन लो कि नबी इसलिए जंग करता है कि जमीन पर हक (सत्य) का गलबा (प्रभुत्व) हो न इसलिए कि दुश्मनों को बंधक बनाकर फिदयः (प्राणमूल्य) हासिल करे।"" (दअ्‌वतुल कुरान खंड 1 पृ. 602)


2). पैगंबर की पत्नियों का परदे में रहने और बुरका उपयोग में लाने का कुरान का आदेश (33ः53,9) उमर की सूचना से सुसंगत था।


3). दांभिक (मुनाफिक) मुस्लिमों का नेता अब्दुल्ला बिन उबय के अंतिम संस्कार के बाद उसके लिए प्रार्थना करने के लिए पैगंबर तैयार हो गए, तब उमर ने इसका विरोध दर्शाकर दांभिकों के लिए उनकी मृत्यु के बाद प्रार्थना ना की जाए का आग्रह किया। तथापि, पैगंबर ने उनकी ना सुनते प्रार्थना की। मगर बाद में अल्लाह का आदेश (9ः84) अवतरित हुआ। पैगंबर ने यह नया ईशसंदेश उमर को सुनाया। अल्लाह ने अपने मत की पुष्टि की इस पर उमर को अत्यानंद हुआ। मुस्लिम परंपरा के अनुसार उमर का स्थान पैगंबर के बाद पहले स्थान पर है। उमर इस्लामी साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्होंने पैगंबर की प्रेरणा एवं इच्छाएं ही अमल में लाई थी। उपर्युक्त आयत (9ः84) इस प्रकार से है -


''और उनमें से जो मरे उसकी नमाज (जनाजा) तुम हरगिज ना पढ़ना और न कभी उसकी कब्र पर खडे होना। क्योंकि उन्होंने अल्लाह के साथ कुफ्र (इंकार करना) किया और इस हाल में मरे कि वे फासिक (अवज्ञाकारी) थे।"" कुरान भाष्य कहता है ः ''कब्र पर खडे होने का मतलब कब्र पर जाकर क्षमा की प्रार्थना करना और दया की भावना को प्रकट करना है। यह मनाही जिस प्रकार मुनाफिकों (दांभिक मुसलमान) के लिए है उसी प्रकार काफिरों, मुश्रिकों (अनेकेश्वरवादी, मूर्तिपूजक), मुलहिदों (नास्तिक) के लिए भी है। क्योंकि, जो लोग मरते दम तक काफिर रहे वे अल्लाह के दुश्मन हैं और अल्लाह के दुश्मनों के लिए एक मोमिन के दिल में दयाभाव नहीं हो सकता है।"" (द.कु.खंड 1 पृ.657) दया भाव ना होने का प्रदर्शन करते हुए ही पाकिस्तानी सेना ने भारतीय कप्तान हुतात्मा सौरभ कालिया के शव को क्षत-विक्षत कर अपमानित किया था। भारतीय सैनिक हेमराज का सिर काटकर ले गए और बाद में उसके कटे सिर के विडियो क्लीप्स तक प्रदर्शित किए। ......

1 comment:

  1. musalman (pakistan) apna kam kar raha hai hindu samaj ko apna kam karna hoga-------!

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