Friday, November 11, 2011

लव जिहाद

आकर्षण; स्त्री-पुरुष, युवा लडका-लडकी के मध्य का आकर्षण, इनका एक-दूसरे के प्यार में पडना, प्यार परवान चढ़ना, इसमें कुछ भी नया नहीं है, की कथाएं-प्रसंग प्राचीनकाल से ही विद्यमान है और कई प्रेम कथाओं-प्रसंगों ने तो जनमानस में अपना एक अलग स्थान ही बना लिया है। यह विपरीत लिंग के प्रति का आकर्षण है जो प्रकृत्ति प्रदत्त है। इसमें कुछ भी अस्वभाविक नहीं है और जब तक स्त्री-पुरुष हैं तब तक इस प्रकार के प्रेम-प्रसंग घटित होते ही रहेंगे केवल पात्र बदलते रहेंगे और कोई इन्हें रोक नहीं सकता। आज आधुनिकीकरण-उदारीकरण के दौर में जब शिक्षा, नौकरी-व्यवसाय, जीवन के हर क्षेत्र में स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, उनमें निकटता के अवसर भी बडी तेजी से बढ़ रहे हैं ऐसे माहौल में अनेकानेक प्रेमकथाएं-प्रसंग जन्म लेंगे ही, सामने आएंगे ही। परंतु ये प्रेम-प्रसंग तब गंभीर रुप धारण कर लेते हैं जब स्त्री-पुरुष या लडका-लडकी भिन्न धर्मीय होते हैं। हमारा हिन्दू समाज इस दृष्टि से मुस्लिम समाज की बनिस्बत अधिक सहिष्णु-उदार विचारों वाला हैं। जितनी व्यक्तिगत-सामाजिक, वैचारिक स्वतंत्रता, जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर हम अपनी लडकियों को देते हैं उतनी मुस्लिम समाज अपनी लडकियों को नहीं देता। उनकी लडकियों को दी जानेवाली सीख, परिवेश, परवरिश निश्चय ही हमारी बनिस्बत अनुदार है, संकुचित है।

उदाहरणार्थ यदि कोई मुस्लिम लडकी हिंदू लडके से प्रेम विवाह कर ले तो लडके का परिवार उसके आयशा नामके रहने को बडी सहजता से स्वीकार लेगा और बडे गर्व से कहेगा कि हमें उसके मुस्लिम धर्म के पालन पर कोई एतराज नहीं क्योंकि, हमारी मान्यता ही यह है कि सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं। हम उसे पांच वक्त की नमाज पढ़ने की की अनुमति भी देते हैं। यह बात अलग है कि वह नमाज हमारे-अपने घर में ही पढ़ती है क्योंकि उसे मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति मिल नहीं सकती। उसकी होनेवाली संतति का मुस्लिम नाम यदि वह रखे तो वह भी हिंदू सहर्ष स्वीकार लेता है और इसके भी उदाहरण दिए जा सकते हैं, मौजूद हैं। इसके विपरीत, अगर कोई हिंदू लडकी किसी मुस्लिम लडके से विवाह कर ले तो उसे कलमा पढ़ना ही पढ़ेगा, इस्लाम का स्वीकार करना ही पडेगा अन्यथा वह विवाह इस्लाम की दृष्टि से जायज नहीं होगा और ऐसी मॉंओं से होनेवाली संतानों के नाम भी अमान-अयाज ही रखे जाते हैं। इसी कारण से तो अभी दो-ढ़ाई सौ वर्षों पूर्व अफगानिस्तान की हिंदू स्त्रियों-लडकियों की जो संतानें हुई उन्हें उनके हिंदू रक्त के होने का कोई गुमान तक नहीं। क्योंकि, उनकी हिंदू मॉंएं अफगानिस्तान की गिरी कंदराओं, पहाडी दर्रों में निकाह के बाद कहां गायब होती चली गई इसका कुछ अता-पता भी नहीं मिलता।

और इस प्रकार के जो अंतर-धर्मीय हिंदू-मुस्लिम विवाह हो रहे हैं उनमें भी लडकियों का जो पलायन हो रहा है वह भी एकतर्फा ही है। जिस गति से हिंदू लडकियों का पलायन मुस्लिम लडकों से प्रेम पश्चात निकाह द्वारा हो रहा है उसका एक अल्प सा प्रतिशत भी दूसरी ओर से हो रहा है ऐसा दूर-दूर तक नजर नहीं आता यही सबसे बडी चिंता का विषय है। क्योंकि, इससे सामाजिक संतुलन बिगडता है, सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं; असंतोष पनपता है, खीज उठती है जो कभी-कभी कानून-व्यवस्था का रुप धारण कर लेती है। यदि पलायन की हुई लडकी मुस्लिम हुई और लडका हिंदू हुआ तो मुस्लिम समुदाय अत्यंत तीव्र प्रतिक्रिया कर उठता है और लडकी या लडका या दोनो को ही अधिकांश मामलों में जान से मार डालता है। जबकि ऐसी अत्यंत तीव्र हिंसक प्रतिक्रिया जिसमें लडका या लडकी की हत्या कर दी जाए हिंदू समाज द्वारा बहुत कम ही व्यक्त की जाती है। इसीलिए इस समस्या पर बोलना, लिखना, प्रतिक्रिया व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है।

यह एक बडी गंभीर-विचारणीय सामाजिक समस्या है जो दिनो-दिन बढ़ती ही जा रही है। इसकी गंभीरता इसलिए भी अधिक है क्योंकि, मुस्लिम समुदाय ने इस धर्मांतरण-मतातंरण का जरिया बना रखा है और इसके पीछे उनकी धार्मिक शिक्षा-सीख ही जिम्मेदार है। कुरान की 60वीं सूरह की 10वीं आयत में आज्ञा है ''ऐ ईमानवालों! जब तुम्हारे पास ईमानवाली औरतें हिजरत (पलायन) कर आवें तो वह औरतें काफिरों (गैरमुस्लिमों) को हलाल नहीं और न काफिर उन्हें जायज हैं और तुम पर पाप नहीं कि उन औरतों से निकाह (ब्याह) करो।"" अर्थात्‌ हाथ आई हुई औरत कोई भी हो उसे वापिस मत करो, जाने मत दो। और इसका उल्टा जब कोई मुस्लिम लडकी हाथ से निकल जाए अर्थात्‌ प्रेमविवाह कर किसी गैरमुस्लिम के साथ चली जाए तो कुरान की 60वीं सूरह की 11वीं आयत में आज्ञा है ''और अगर तुम्हारी औरतों में से कोई तुम्हारे हाथ से निकल कर काफिरों के साथ चली जावे फिर तुम उन (काफिरों) से जंग करो।""

मुस्लिमों द्वारा प्रेमविवाह के द्वारा धर्मांतरण की गंभीर-विचारणीय समस्या यह कोई भारत या केवल हिंदुओं तक की सीमित समस्या नहीं है इसने अंतर-राष्ट्रीय रुप ले रखा है। हमारे अलावा यूरोप और अमेरिका तक के लोग-ईसाईधर्मीय भी इसके शिकार हैं। इस संबंध में समाचार-लेख भी छप चूके हैं। बेल्जियम मूल के ईसाई पादरी कॉनरॉड एल्स्ट ने 3 वर्ष पूर्व मुंबई से प्रकाशित होनेवाले साप्ताहिक विवेक के 12-11-06 के अपने एक लेख 'मुस्लिम संख्या वृद्धि के लिए काफिर युवतियों का उपयोग" में लिखा हैं ''गैर-मुस्लिम युवतियों को बरगलाकर उनका उपयोग अपनी संख्यावृद्धि के अभियान के लिए खुल्लमखुल्ला करना और यह करते समय दुर्भागी काफिरों की खिल्ली उडाना यह संख्या वृद्धि के मुस्लिम युद्धतंत्र का अत्यंत वेदनादायी पहलू है। बांग्लादेश और भारत के मुस्लिम बहुल प्रदेशों में बेधडक युवतियों को भगाकर यह योजना अमल में लाई जाती है अथवा उनके परिजनों को धमकाकर ऐसी युवतियों का मुस्लिम युवकों के साथ निकाह कराया जाता है। पश्चिमी देशों में और पश्चिमी रुजहानवाले भारतीय समाज में सर्वसाधारणतया यह प्रेम से घटित करवाने के प्रयत्न चलते हैं। परंतु, अगर मुस्लिम युवती ने गैर-मुस्लिम युवक के साथ मित्रता की तो फिर उसके परिवार पर दबाव लाकर अथवा उस युवक को दहशत दिखाकर, आतंकित कर  तो कभी-कभी दोनो ही प्रकार से उन्हें परावृत्त करने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी जाती। इसके विपरीत यानी गैर-मुस्लिम युवती ने मुस्लिम युवक के साथ  संबंध बढ़ाए तो दूसरे पक्ष की ओर से ऐसा कुछ घटित होने की संभावना कम होने के कारण समग्र परिणाम गैर-मुस्लिम युवतियों का सतत प्रवाह मुस्लिम परिवारों की ओर बहता रहता है।""

परंतु, अब इस गंभीर-विचारणीय समस्या ने जो नया अत्यंत विकृत-घातक रुप इख्तियार कर लिया है। जिसका केरल-कर्नाटक के हाईकोर्ट तक संज्ञान ले चूके हैं और सरकारों को जांच के आदेश दे चूके हैं और कर्नाटक सरकार ने तो इसकी गंभीरता को जान सी.आई.डी. जांच के आदेश भी जारी कर दिए हैं। वह है 'लव-जिहाद", 'रोमिओ-जिहाद"। वैसे कुछ समय पूर्व उत्तर-भारत में इस संबंध में कुछ समाचार छपे थे। परंतु, उस समय किसीने उसे गंभीरता से नहीं लिया और बात आई-गई हो गई। जैसाकि हमेशा से ही होता है उसी प्रकार से प्रारंभ में सरकारें सुस्त और समाज सोया पडा रहता है और संबंधित प्रतिनिधि संस्थाएं भी निष्क्रिय सी ही बनी रहती है वैसा ही कुछ इस 'लव जिहाद" के मामले में भी हुआ। परंतु, अब जब यह 'लव जिहाद" अपने भयंकर-विकृत रुप में दक्षिण भारत में सामने आया तो सरकारों ने चौकन्ना होकर जांच आरंभ कर दी है और 14-10-09 के 'टाइम्स ऑफ इंडिया" के अनुसार प्रभावित हिंदू-ईसाई समाज की प्रतिनिधि संस्थाओं के रुप में 'विहिप" और 'चर्च" भी मुकाबले के लिए एकजुट हो रहे हैं।

पांचजन्य में छपे मुजफ्फर हुसैन के लेख 25-10-09 के अनुसार संक्षेप में 'लव जिहाद द्वारा जिहादी मुस्लिम युवक कॉलेज के प्रथमवर्ष में शिक्षा लेनेवाली  लडकियों को बहला-फुसलाकर अपनी और आकर्षित कर, प्रेमजाल में फंसाकर पहले तो उनसे निकाह पढ़ते हैं। कभी-कभी बजाए निकाह पढ़ने के उन्हें सीधे आतंकवादियों के हवाले कर दिया जाता है। तो, कभी केरल के तट पर तैयार खडी नौकाओं में उन्हें बिठलाकर जहाजों पर ले जाकर मध्यपूर्व के देशों में भेज दिया जाता है। कहने की बात नहीं कि इसके लिए धन का उपयोग किया जाता है, लडकियों को आकर्षित करने के लिए महंगे उपहार मोबाईल, वाहन, कपडों के रुप में तो, मुस्लिम युवकों को प्रति लडकी एक लाख रुपये। अब जांच का विषय यह है कि उक्त षड़यंत्र कौन संचालित कर रहा है? और इसके लिए धन कहां से आता है? केरल में पिछले छः माह में करीब 4000 युवतियों को इस तरह से फंसाने, उन्हें मतांतरित करने और फिर आतंकवादी संगठनों को सौंप देने के उदाहरण मिले हैं।"

'इसके लिए इंटरनेट को भी माध्यम बनाया जाता है। मुस्लिम युवक सबसे पहले इंटरनेट के जरिए सुंदर और इज्जतदार लडकियों की जानकारी लेकर उनसे चेटिंग करते हैं फिर लडकी के आकर्षित होने पर इस्लाम कितना अच्छा है, आधुनिक मजहब है आदि बातें उसके दिमाग में भरकर प्रभाव में लेते हैं। इस प्रकार से इस्लाम और युवक दोनो से ही आकर्षित होकर जब युवती रोमियो से मेलजोल बढ़ाती है और अंत में ज्यों ही लडकी निकाह के लिए उतावली हो जाती है बस तभी उसे किसी आतंकवादी सरगना को सौंपकर मतांतरित कर मुसलमान बना दिया जाता है। कई बार उनका निकाह भी कर दिया जाता है। परंतु, अंततः उसका ठिकाना आतंकवादियों का अड्डा ही है। जहां उसे आतंकवादी बनाकर किसी आत्मघाती बम के रुप में उसका इस्तेमाल  कर लिया जाता है। आतंकवादियों का कहना है कि उनका जाल पूरे भारत में बिछा है। भारत में अनेक विदेशी आतंकवादी संगठन अपना आधार बनाने के लिए वर्षों से काम कर रहे हैं। स्थानीय लोग मिल जाते हैं तो उन पर खर्च कम करना पडता है और स्थानीय भाषा-संस्कृति से परिचित होने के कारण उनका काम भी आसान हो जाता है।"

अब सवाल यह उठता है कि चर्चित 'लव जिहाद" में 'लव" और 'जिहाद" में कैसा संबंध? क्योंकि, जिहाद मतलब तो जंग-युद्ध और मरने-मारने का प्यार-मोहब्बत से क्या-कैसा संबंध हो सकता है। लेकिन जिहाद की जो व्याख्या मुस्लिम विद्वान करते हैं उसके अनुसार जिहाद मतलब ''किसी ध्येय की सिद्धी के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देने और जान-तोड कोशिश करने को अरबी में 'जिहाद" कहते हैं। जिहाद केवल युद्ध करने का नाम नहीं है। जिहाद का अर्थ इससे अधिक विस्तृत और व्यापक है। जिहाद में सारी दौड-धूप और चेष्टाएं केवल अल्लाह की प्रसन्नता और उसके उतारे हुए दीन (इस्लाम) के समर्थन और स्थापना के लिए होगी।""(हदीस सौरभ-पृ. 568 वैसे ही कुरआन मजीद पृ.1231) और 'लव जिहाद" में ध्येय है किसी भी तरीके से प्यार के नाम पर गैर-मुस्लिम लडकी को पटाकर, प्रेम का नाटक रचकर इस्लाम में मतांतरित करना।क्योंकि अल्लाह की प्रसन्नता, इच्छापूर्ति के लिए आवश्यक है कि इस्लाम वृद्धिंगत हो, सर्वत्र इस्लाम की स्थापना हो। अल्लाह की इच्छा कुरान की सूर 'बकर" की आयत 193 में इस प्रकार से आई हुई है ''एक अल्लाह ही का दीन (इस्लाम) हो जाए""। और इसके लिए संपूर्ण शक्ति लगा देना, दौडधूप करना, धन खर्च करना अपनी वाणी, लेखनी आदि से प्रयत्नशील रहना हर मुस्लिम का आज्ञापित कर्तव्य है और जिहाद इसी के लिए है। और इसीको मद्देनजर रखकर 'लव जिहाद" की मुहिम चलाई जा रही है। क्योंकि, इस्लाम की फितरत (प्रकृति, स्वभाव) गलबा (प्रभुत्व) है। जिसको हासिल करने के एक मार्ग के रुप में 'लव जिहाद" को आतंकवादी संगठनों ने अपनाया है। क्योंकि, इस एक माध्यम से ही वे कई लाभ एक साथ उठा रहे हैं। एक, गैर-मुस्लिम लडकी को धर्मांतरित कर फिर उससे तीन-चार बच्चे पैदा करवाकर अपना यानी मुसलमानों का, इस्लाम का संख्या बल बढ़ाने के साथ मतांतरण का सवाब (पुण्य) कमाना, दूसरा, इन्हीं लडकियों के माध्यम से अन्य लडकियों को इसी जाल में फंसाने के काम में लाना, इसके भी उदाहरण मौजूद हैं। तीसरा, इन लडकियों को वे अपनी कामतृप्ति के लिए भी उपयोग में ले लेते हैं। और अंत में कभी-कभी आत्मघाती मानव बम बनने के लिए भी बाध्य कर देते हैं।

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