Thursday, October 30, 2014

छोडें मोदी का अंधविरोध और अंधश्रद्धा भी

नरेंद्र मोदी इस समय भारतीय राजनीति का ऐसा चर्चित चेहरा हैं जिसका डंका ने केवल देश में अपितु विदेशों में भी बज रहा है।  जिन्होंने अपने तौर-तरीकों, सूझबूझ और कार्यपद्धति से स्थापित राजनीति की मान्यताओं को ही बदल दिया है। लोकसभा चुनाव की अभूतपूर्व विजय के बाद जब उन्होंने सत्ता संभाली तब कुछ समय तक वे और उनके मंत्रीमंडल के सदस्यों ने चुप्पी सी साध ली थी। तब उनका मजाक उडाया जाने लगा कि मनमोहन तो अकेले ही मौनी बाबा थे लेकिन अब तो मोदी से लेकर उनके सारे मंत्री भी मौनी बाबा बन गए हैं। और अब जब मोदी मुखर हो गए हैं तो आलोचना की जा रही है कि पहलेवाला प्रधानमंत्री तो बोलता ही नहीं था और यह प्रधानमंत्री है कि बोलता ही चला जा रहा है। एक चर्चा यह भी की जा रही है कि इस प्रधानमंत्री ने तो एक नया ही धंधा चालू कर दिया है पहले खुद विदेश जाना फिर विदेशी मेहमानों को देश में बुलाना और रोज भाषण ठोकते फिरना। मतलब यह कि मोदी कुछ भी करें या ना करें वे चर्चा में बने ही रहते हैं। वैसे यह भी एक बडी उपलब्धी ही है कि एक लंबे समय तक बिना कोई पत्रकार वार्ता किए ही वे हमेशा हॉट टॉपिक बने रहे हैं।

कुछ लोग उनके हर कार्य को ही शक की नजर से देखने के आदि हैं। वे कुछ भी करें वे आलोचना करने में ही लगे रहते हैं। तो, कुछ लोग इतना भी करने की जहमत उठाना नहीं चाहते। वे तो सिर्फ आलोचना करने में ही व्यस्त रहते हैं। कुछ लोग उन्हें मुस्लिम विरोधी बताने में ही अपनी सारी ऊर्जा खर्च करते रहते हैं इसके लिए उनके पास सबसे बडा आधार होता है गोधरा कांड का। अब उन्हें एक नया आधार और मिल गया है कश्मीर का कि वे वहां दीपावली पर ही क्यों गए? ईद पर क्यों नहीं? यह लोग इस बात को समझ ही नहीं रहे हैं कि इस समय कश्मीर के बाढ़ पीडितों को आवश्यकता है उसकी जो उनकी पीडा को समझें, उन्हें सांत्वना दे और यही तो प्रधानमंत्री मोदी ने किया है। ये शकी, रात-दिन आलोचना करने में लगे लोग यह समझ ही नहीं रहे हैं कि इन हरकतों से वे अपरोक्ष रुप से मोदी ही की सहायता कर रहे हैं, उन्हें लाभान्वित कर रहे हैं और स्वयं को हार के मार्ग पर ले जा रहे हैं।

यदि उन्हें मोदी से इतनी ही खुन्नस है तो उन्हें चाहिए कि वे निरी आलोचना करते बैठे रहने की बजाए मोदी के भाषणों-वक्तव्यों-कार्यों का तथ्यात्मक विश्लेषण करें। उसमें की कमजोरियों को उजागर करें। यदि उन्हें लगता है कि उनके भाषणों-वक्तव्यों में अतिरेक है, कोई असत्य है तो उन्हें जनता के सामने लाएं साथ ही योग्य विकल्प भी प्रस्तुत करें अन्यथा मोदी तो इसी प्रकार से बडी-बडी घोषणाएं, कार्ययोजनाएं बडे-बडे मेगा शो के माध्यम से करते ही रहेंगे और जनता में अपनी पैठ मजबूत करते ही रहेंगे और ये आलोचक अगली हार के लिए फिर से शापित रहेंगे।

इन उपर्युक्त के अलावा एक बहुत बडा वर्ग मोदी के अंधश्रद्धों का भी है जिनका एक सूत्री कार्यक्रम यही चलता रहता है कि मोदी के भाषणों की कैसेट इधर-उधर बजाते फिरना। इसके बाद जो समय बच जाता है उसका सदुपयोग ये लोग कांगे्रस की आलोचना में लगा देते हैं। उनकी आलोचना का रुख कुछ इस प्रकार का रहता है कि मानो कांग्रेस ने पूरे देश का सत्यानाश ही फेर दिया है और जो कुछ अच्छा दिख रहा है उसकी शुरुआत मानो मोदी के आने के बाद ही हुई है और जो कुछ भी कमीपेशी नजर आ रही है उसकी जिम्मेदार कांग्रेस ही है। इन दोनो ही पक्षों का हाल यह है कि ये दोनो ही आपको अपने पक्ष में ही देखना चाहते हैं, तटस्थता की कोई गुंजाईश ही नहीं छोडी जाती वर्ना .... यह सब देख सुनकर माथा पीट लेने का जी करता है। 

मेरा इन अंधश्रद्धों से कहना है कि अपनी सारी ऊर्जा उपर्युक्त कार्य में नष्ट करने की बजाए वे अपनी कुछ ऊर्जा मोदी के स्वच्छ भारत के अभियान में लगाएं। गांधीजी के तो कई अनुयायी आजीवन सार्वजनिक स्वच्छता के काम में जुडे रहे थे। मुझे तो अभी तक  केवल एक ही मोदी भक्त (जिनसे मैं परिचित भी हूं) नजर आया है जो टीव्ही पर आनेवाले विज्ञापन एकला चालो एकला चालो एकला चालो रे की तर्ज पर अपने घर के अंदर ही नहीं तो बाहर अपने घर के आसपास भी स्वच्छता करते नजर आता है। वह भी बिना किसी प्रचार या स्वार्थ के। 

वैसे भी इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर रहा है कि मोदी ने देशवासियों के मन में आशा की किरण जगाई है, वे देश से निराशा का वातावरण दूर करने में भी कुछ हद तक सफल रहे हैं। परंतु, यह भी सच है कि कृषि क्षेत्र के हालात बदतर हैं, बाजारों में सन्नाटा छाया हुआ है, आर्थिक हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं के समाचार छप रहे हैं, आगे की राह कठिन है। बेहतर होगा कि शांत रहकर संतुलित प्रतिक्रियाएं जाहिर करें, मोदी के कार्यों का मूल्यांकन करने का अभी समय आया नहीं है, कुछ राह देखिए, जो कुछ वे कर रहे हैं उनका परिणाम तो आने दीजिए - जिसमें समय लगना स्वाभाविक है।  

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