Friday, December 16, 2011

जसबीर नायक वर्सेस डॉ. जाकिर नाईक

 पर विश्व प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वान डॉ. जाकिर नाईक की एक भेंटवार्ता है। भेंटकर्ता ने डॉ. नाईक से कहा ''भारत के एक गैर-मुस्लिम ने एक प्रश्न पूछा है। इस्लामी राष्ट्रों में गैर-मुस्लिमों को अपने धर्म के प्रचार-प्रसार करने की, धार्मिक स्थल निर्मित करने की इजाजत है क्या? और यदि ऐसी इजाजत हो तो सऊदी अरब में मंदिर और चर्च निर्माण की इजाजत क्यों नहीं? मनाही क्यों है? लंडन और पेरिस जैसे शहरों में मुस्लिम लोग मस्जिदें खडी करते हैं और सऊदी अरब में भर मंदिर-चर्च निर्माण की अनुमति नहीं, ऐसा क्यों?

इस पर डॉ. नाईक का उत्तर ः''सऊदी अरब और तत्सम अन्य कुछ राष्ट्रों में अन्य धर्मों के प्रसार पर प्रतिबंध है। पूजास्थल (मंदिर-चर्च) खडे करने की मनाही है। हमारे देश में मुस्लिमों को धर्मप्रचार/प्रसार की प्रार्थनास्थलों (मस्जिदों) के निर्माण पूर्ण की पूर्ण स्वतंत्रता रहने पर भी इस्लामी राष्ट्रों में अन्य धर्मीयों के पूजास्थलों के निर्माण पर मनाही क्यों है? इस प्रकार के प्रश्न अनेक गैर-मुस्लिम पूछते हैं। इस पर मैं उन्हें प्रतिप्रश्न करना चाहता हूं कि, मानलो तुम एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक हो। तुम्हारे विद्यालय में गणित शिक्षक की आवश्यकता है। उसके लिए उम्मीदवारों के साक्षात्कार चल रहे हैं। दो और दो कितने? ऐसा प्रश्न तुमने उनसे पूछा। इस पर एक उम्मीदवार ने उत्तर दिया- 'तीन!" दूसरे उम्मीदवार ने- 'चार!" और तीसरे ने कहा- 'छः!" अब ऐसे उत्तर देनेवाले उम्मीदवारों को तुम गणित के शिक्षक के रुप में चुनोगे क्या? उत्तर- नकारार्थी ही होगा। जिसे गणित का पर्याप्त ज्ञान नहीं, उसे कैसे चुनें? ऐसा वे कहेंगे। धर्म के मामले में भी वैसा ही है। ईश्वर की दृष्टि में इस्लाम ही सच्चा धर्म है ऐसी हमारी अटल- अपार श्रद्धा है, भावना है। इस्लाम के अलावा अन्य कोई सा भी धर्म परमेश्वर को मान्य नहीं ऐसा पवित्र कुरान (3ः85) में स्पष्ट रुप से कहा हुआ है। अब दूसरा प्रश्न है वह मंदिर और चर्च निर्माण पर मनाही का! इस पर मैं कहता हूं कि, जिनका धर्म ही गलत है, जिनकी प्रार्थना, पूजा पद्धति गलत है; उन्हें धर्मस्थल खडे करने की अनुमति क्यों दें? इसीलिए इस्लामी राष्ट्रों में इस प्रकार की बातों के लिए हम अनुमति नहीं देते!""

भेंटकर्ता ः''अपना ही धर्म (इस्लाम) सत्य है ऐसा मुस्लिमों को लगता है और वैसा वे दावा करते भी हैं। गैर-मुस्लिम भर हमारा धर्म ही सत्य है का दावा नहीं करते।""

डॉ. नाईक ः'"दो और दो यानी तीन ऐसा पढ़ानेवाले शिक्षक गैर-मुस्लिमों को भी मान्य नहीं यह पहले ही ध्यान में लेना चाहिए। धर्म के संबंध में, धार्मिक बातों के संबंध में हम ही (मुस्लिम) सही हैं, हमारे विचार, और मार्ग योग्य, उचित हैं इसका हमें विश्वास है। गैर-मुस्लिम मगर इस मामले में स्थिर नहीं। अपनी भूमिका, विचार ही योग्य हैं ऐसा उन्हें स्वयं को ही विश्वास नहीं। इस्लाम ही एकमात्र सच्चा और उचित धर्म है ऐसा हमारा विश्वास होने के कारण मुस्लिम राष्ट्रों में हम अन्य धर्मों के प्रचार-प्रसार की अनुमति नहीं दे सकते। तथापि, इस्लामी राष्ट्र में रहकर एकाध गैर-मुस्लिम को उसके धर्मानुसार आचरण करना हो तो उस पर मनाही नहीं, विरोध नहीं। केवल एक शर्त है कि, वह उसके स्वयं के घर में करे! सार्वजनिक स्थानों पर, जाहिर रुप से वह कर नहीं सकता।

  धर्मप्रचार/प्रसार की इजाजत नहीं। आचरण की है, वह भी केवल घर की चारदीवारी के अंदर। दो और दो तीन होते हैं ऐसा कहनेवाले को उसके विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता है। परंतु, उसके गलत विचार, गलत भूमिका वह उसके तक ही मर्यादित रखे; नई पीढ़ी को, विद्यार्थियों को गलत न सीखाए। यही धर्म के मामले में भी है। इस्लाम, इस्लाम की सीख, विचार, भूमिका ही योग्य है। अन्यों की नहीं इसलिए इस्लामी राष्ट्रों में गैर-मुस्लिमों को धर्मप्रचार/प्रसार की अनुमति नहीं।""

इस भेंटवार्ता को पढ़कर जसबीर नायक मैदान में आ गए और उन्होंने डॉ. जाकिर नाईक को एक प्रश्न दाग दिया कि, बताएं आप सत्य किसे मानेंगे जसबीर नायक कोई बात आप से आकर कहे उस बात को या उनका कोई नौकर, मेसेंजर या दूत आकर कहे उसे! डॉ. नाईक जवाब देंगे - जसबीर नायक ने जो बात स्वयं आकर कही होगी वही सत्य मानी जाएगी। क्योंकि, नौकर- मेसेंजर या दूत द्वारा कहे गए सत्य में घालमेल हो सकता है, जरुरी नहीं कि वह शब्दशः वैसा का वैसा ही आकर कहे जैसाकि उसके 'आका" ने उसे कहने के लिए कहा हो।

 हमारी जानकारी के अनुसार मुहम्मद साहेब की भेंट और वार्तालाप अल्लाह से केवल एक बार ही 'मेराज यात्रा (17ः1)" के समय हुआ था। उसी में अल्लाह ने अपनी दयानतदारी दिखलाते हुए मुहम्मद साहेब की विनती पर पचास की जगह पांच नमाजें कुबूल फरमाई साथ ही फरमाया था कि 'पांच वक्त की (नमाजें) फर्ज रही और वह सवाब (पुण्य) में पचास के बराबर हैं, मेरे यहां हुक्म में तब्दीली नहीं होती है।" ऐसा दयालु अल्लाह इतना असहिष्णु भला कैसे हो सकता है कि फरमा दे कि ''जो शख्स अल्लाह के दीन (इस्लाम) के सिवा किसी और दीन (धर्म) को तलाश करेगा तो (अल्लाह के यहां) उसका वह दीन हरगिज कबूल नहीं।""(3ः85) स्पष्ट है कि वह अपने जिस दूत जिब्रिइल को भेजता था उसने संदेश लाने में गडबडी की है अन्यथा अल्लाह ने यह भी तो फरमाया है कि ''तुमको तुम्हारा दीन और मुझको मेरा दीन (मुबारक)।""(109ः6)

हम सीधे ईश्वर की बात को मानते हैं। क्योंकि, वह तो सीधे यहां भारत भूमि पर अवतार धारण कर आता है और कुरुक्षेत्र के मैदान में उपदेश देता है, अपनी बात कहता है। इसलिए जसबीर नायक आपसे सीधे फरमाता है कि क्यों हम जिब्रिइल जैसे किसी दूत की बात को मानें, हम तो नारद मुनि की भी इसी कारण से नहीं सुनते। क्योंकि, जब स्वयं परमात्मा भगवान कृष्ण के रुप में अवतार ग्रहण कर कह गए है कि 'मेरी शरण में आओ"। तो, क्यों नहीं आप इस तरह के कुतर्क देनेवाले धर्म को छोडकर भगवान कृष्ण की शरण में आते। क्योंकि, इस तरह के कुतर्क देनेवाले धर्म के लिए इस देश की धरती पर कोई स्थान ही नहीं है। इस धरती पर तो अधिकार हिंदूधर्म का ही रहेगा। महाभारत में कहा गया है - ''जो धर्म दूसरे धर्म का बाधक होता है वह धर्म धर्म नहीं कुधर्म है। सच्चा धर्म वही है जो किसी धर्म का विरोधी न हो।""
http:www.youtube.com/ watch?v=BwCn-IT_zZA

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