Wednesday, December 14, 2011

मीनारों पर प्रतिबंध और इस्लामी गणित

 नवंबर में स्विट्‌जरलैंड में हुए एक जनमत संग्रहण में 58 प्रतिशत लोगों ने देश में नई मीनारों के निर्माण पर प्रतिबंध को जायज ठहराया है। राहत की बात यह है कि 42.5 प्रतिशत लोग इस प्रतिबंध के विरोध में हैं। जो यह दर्शाता है कि देश में एक बडा हिस्सा इस नवधार्मिक कट्टरता के विरोध में होकर धार्मिक स्वतंत्रता में विश्वास प्रकट कर रहा है। परंतु, कई कट्टरपंथी ईसाइयों का यह कहना है कि किसी भी मुस्लिम देश में अन्य गैर-मुस्लिमों को धार्मिक स्वतंत्रता हासिल नहीं। सऊदी अरब में तो एक भी चर्च नहीं (ंमंदिर भी नहीं)। वैसे तो वेटिकन से लेकर कई योरोपीय देशों ब्रिटेन आदि ने भी इस पर विरोध प्रकट किया है। दुनिया भर के मुस्लिम भी इस पर अपना विरोध जता रहे हैं। परंतु, सऊदी अरब में एक भी मंदिर या गिरजाघर (चर्च) क्यों नहीं? इसका जवाब भले ही इन विरोध प्रकटीकरण के समाचारों में नहीं मिल रहा हो परंतु, इसका जवाब http:www.youtube.com/watch?v=BwCn-IT_zZa  में है और वह विश्वप्रसिद्ध मुस्लिम विचारक डॉ. जाकिर नाईक से एक भेंट के रुप में है। भेंटकर्ता ने डॉ. नाईक से कहा ''भारत के एक गैर-मुस्लिम ने एक प्रश्न पूछा है। इस्लामी राष्ट्रों में गैर-मुस्लिमों को अपने धर्म के प्रचार-प्रसार करने की, धार्मिक स्थल निर्मित करने की इजाजत है क्या? और यदि ऐसी इजाजत हो तो सऊदी अरब में मंदिर और चर्च निर्माण की इजाजत क्यों नहीं? मनाही क्यों है? लंडन और पेरिस जैसे शहरों में मुस्लिम लोग मस्जिदें खडी करते हैं और सऊदी अरब में भर मंदिर-चर्च निर्माण की अनुमति नहीं, ऐसा क्यों?

इस पर डॉ. नाईक का उत्तर ः''सऊदी अरब और तत्सम अन्य कुछ राष्ट्रों में अन्य धर्मों के प्रसार पर प्रतिबंध है। पूजास्थल (मंदिर-चर्च) खडे करने की मनाही है। हमारे देश में मुस्लिमों को धर्मप्रचार/प्रसार की प्रार्थनास्थलों (मस्जिदों) के निर्माण पूर्ण की पूर्ण स्वतंत्रता रहने पर भी इस्लामी राष्ट्रों में अन्य धर्मीयों के पूजास्थलों के निर्माण पर मनाही क्यों है? इस प्रकार के प्रश्न अनेक गैर-मुस्लिम पूछते हैं। इस पर मैं उन्हें प्रतिप्रश्न करना चाहता हूं कि, मानलो तुम एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक हो। तुम्हारे विद्यालय में गणित शिक्षक की आवश्यकता है। उसके लिए उम्मीदवारों के साक्षात्कार चल रहे हैं। दो और दो कितने? ऐसा प्रश्न तुमने उनसे पूछा। इस पर एक उम्मीदवार ने उत्तर दिया- 'तीन!" दूसरे उम्मीदवार ने- 'चार!" और तीसरे ने कहा- 'छः!" अब ऐसे उत्तर देनेवाले उम्मीदवारों को तुम गणित के शिक्षक के रुप में चुनोगे क्या? उत्तर- नकारार्थी ही होगा। जिसे गणित का पर्याप्त ज्ञान नहीं, उसे कैसे चुनें? ऐसा वे कहेंगे। धर्म के मामले में भी वैसा ही है। ईश्वर की दृष्टि में इस्लाम ही सच्चा धर्म है ऐसी हमारी अटल- अपार श्रद्धा है, भावना है। इस्लाम के अलावा अन्य कोई सा भी धर्म परमेश्वर को मान्य नहीं ऐसा पवित्र कुरान (3ः85) में स्पष्ट रुप से कहा हुआ है। अब दूसरा प्रश्न है वह मंदिर और चर्च निर्माण पर मनाही का! इस पर मैं कहता हूं कि, जिनका धर्म ही गलत है, जिनकी प्रार्थना, पूजा पद्धति गलत है; उन्हें धर्मस्थल खडे करने की अनुमति क्यों दें? इसीलिए इस्लामी राष्ट्रों में इस प्रकार की बातों के लिए हम अनुमति नहीं देते!""

भेंटकर्ता ः''अपना ही धर्म (इस्लाम) सत्य है ऐसा मुस्लिमों को लगता है और वैसा वे दावा करते भी हैं। गैर-मुस्लिम भर हमारा धर्म ही सत्य है का दावा नहीं करते।""

डॉ. नाईक ः'"दो और दो यानी तीन ऐसा पढ़ानेवाले शिक्षक गैर-मुस्लिमों को भी मान्य नहीं यह पहले ही ध्यान में लेना चाहिए। धर्म के संबंध में, धार्मिक बातों के संबंध में हम ही (मुस्लिम) सही हैं, हमारे विचार, और मार्ग योग्य, उचित हैं इसका हमें विश्वास है। गैर-मुस्लिम मगर इस मामले में स्थिर नहीं। अपनी भूमिका, विचार ही योग्य हैं ऐसा उन्हें स्वयं को ही विश्वास नहीं। इस्लाम ही एकमात्र सच्चा और उचित धर्म है ऐसा हमारा विश्वास होने के कारण मुस्लिम राष्ट्रों में हम अन्य धर्मों के प्रचार-प्रसार की अनुमति नहीं दे सकते। तथापि, इस्लामी राष्ट्र में रहकर एकाध गैर-मुस्लिम को उसके धर्मानुसार आचरण करना हो तो उस पर मनाही नहीं, विरोध नहीं। केवल एक शर्त है कि, वह उसके स्वयं के घर में करे! सार्वजनिक स्थानों पर, जाहिर रुप से वह कर नहीं सकता।  धर्मप्रचार/प्रसार की इजाजत नहीं। आचरण की है, वह भी केवल घर की चारदीवारी के अंदर। दो और दो तीन होते हैं ऐसा कहनेवाले को उसके विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता है। परंतु, उसके गलत विचार, गलत भूमिका वह उसके तक ही मर्यादित रखे; नई पीढ़ी को, विद्यार्थियों को गलत न सीखाए। यही धर्म के मामले में भी है। इस्लाम, इस्लाम की सीख, विचार, भूमिका ही योग्य है। अन्यों की नहीं इसलिए इस्लामी राष्ट्रों में गैर-मुस्लिमों को धर्मप्रचार/प्रसार की अनुमति नहीं।""

75 लाख की आबादीवाले एक छोटे से देश स्विट्‌जरलैंड के पौने चार लाख मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों के हनन की आलोचना करनेवाले दुनियाभर के मुसलमानों में से क्या चंद मुसलमान भी ऐसे नहीं हैं जो आगे आकर उपर्युक्त भेंट में कही गई बातों, जिनमें गैर-मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं, स्वतंत्रता का हनन होता है, पर विरोध प्रकट कर कुरान सर्वधर्मसमभाव, धार्मिक स्वतंत्रता को मान्यता देती है के लिए हमेशा उद्‌. की जानेवाली सूर अल-काफिरून की आयत 6 ''तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन (धर्म) और मेरे लिए मेरा दीन"" को सार्थक सिद्ध करें।

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