Sunday, March 8, 2015

महिलाओं की आजादी की पक्षधर 
मलिका - ए - अफगानिस्तान ः सुरय्या

20वीं सदी के उत्तरार्ध में तालिबान द्वारा देश को मुहम्मद गजनी और मुहम्मद गौरी के दौर में पहुंचाने और इस्लाम के नाम पर अफगान महिलाओं को पिंजरेनुमा बुर्के में कैद करने के कारण अफगानिस्तान चर्चा में आया, तो 20वीं सदी के पूर्वार्ध में अफगानिस्तान दो कारणों से प्रसिद्ध हुआ एक, अंग्रेजों के चंगुल से छूटकर स्वतंत्रता प्राप्ति में सफल होने और दो, अफगानिस्तान की मलिका (रानी) सुरय्या के कारण जिसको पाश्चात्य देशों में बडी प्रसिद्धी और कीर्ति प्राप्त हुई।

अफगानिस्तान की स्त्रियों को सर्वप्रथम मुक्ति का मार्ग दिखानेवाले थे वहां के राजा अमानुल्लाह और उनकी पत्नी सुरय्या। अमानुल्लाह का शासनकाल (1919-29) मात्र दस वर्ष चला और अंत में उन्हें अपने सुधारवादी रवैये के कारण देश छोडकर भागना पडा। उसकी प्रतिभा और साहस लोकोत्तर था। उसने अमीर का पद तोडकर स्वयं को बादशाह घोषित कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का शंखनाद कर दिया। दबाने में असफल हो अंततः विवश हो अंगे्रजों ने उससे संधि कर ली अफगानिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रुप में सामने आया। अमानुल्लाह यूरोप में शिक्षित होकर उदारचेता एवं अपने देश को रुढ़िवाद से मुक्त कर इस्लाम के अंधकार से निकाल उन्नत और सभ्य देशों की श्रेणी में लाना चाहता था। उसने यूरोप और एशिया के प्रमुख देशों के साथ व्यापारिक एवं कूटनीतिक संबंध जोडे। 1920 में ही उसने नया क्रिमिनल एवं सिविल कोड तैयार किया था।

उसने 1913 में जिस स्त्री सुरय्या से विवाह अपनी पहली पत्नी परिगुल से संबंध विच्छेद कर किया था वह दमास्कस (सीरिया) में शिक्षित होकर वहां उसने आधुनिक और पाश्चात्य कल्पनाओं को अंगीकार कर लिया था। सुरय्या के पिता सरदार महमूद तर्जी  अफगान होकर राजनैतिक कारणों से सीरिया में आश्रय लेकर रह रहे थे। महमूद तर्जी एक विचारवंत नेता होकर अमानुल्लाह के पिता हबीबुल्लाह ही उन्हें वापिस अफगानिस्तान लेकर आए थे। अफगानिस्तान को आधुनिक बनाने की कोशिशों में उनका बडा ही योगदान है। महमूद तर्जी बहुपत्नीत्व परंपरा के विरोधी थे और स्त्रियों की शिक्षा और रोजगार का आग्रह रखते थे। सुरय्या भी इसी विचारसरणी का मूर्तिमंत प्रतीक थी। अमानुल्लाह ने भी इन्हीं विचारों को अंगीकृत कर गांव-गांव में स्त्री शिक्षा का आंदोलन चलाया। सुरय्या भी सामाजिक बदलाव लाने के लिए आग्रही होने के कारण अनेक लडकियों ने उच्च शिक्षा ग्रहण की यहां तक कि विदेशों में भी जाकर और आगे जाकर यही स्त्रियां सरकारी विभागों में उच्चाधिकारी बनकर कार्य कर सकी। 

यह सुरय्या के प्रोत्साहन का ही नतीजा था कि अनेक महिलाएं शिक्षा ग्रहण करने लगी। तुर्कस्तान के बदलाव को देखकर उसने 15 होशियार लडकियों को वहां भेजा। अफगानिस्तान की नई मानसिकता तैयार करने के लिए तर्जी ने 'सिराजुल अखबार" नामक पत्र चलाया था। सुरय्या ने भी स्त्रियों के लिए 'इरशाद-ए-निसवान" मासिक शुरु किया था। सुरय्या अपने भाषणों में पुरुषों की बराबरी से ही स्त्रियों को भी स्वतंत्रता मिलना चाहिए का प्रचार अपने भाषणों द्वारा करती थी। देश की उत्क्रांति में सुरय्या की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए अमानुल्लाह जनता को संबोधित करते हुए कहा करता था मैं तुम्हारा राजा हूं और तुम्हारी शिक्षामंत्री  तुम्हारी रानी सुरय्या है। सुरय्या उन्हें शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए कहती थी। वे एक साथ अनेक सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करते थे। वह उसके साथ शिकार और अश्वारोहण का शौक भी रखती थी। अफगानिस्तान की आजादी की लडाई में घायल सैनिकों से मिलती उनके साथ संवाद स्थापित कर उन्हें भेंट भी देती, विद्रोह स्थलों पर जाकर लोगों से चर्चा भी करती।

अमानुल्लाह के आधुनिकीकरण और सुधार अभियान का जबरदस्त विरोध भी हुआ। इस्लाम के नाम पर चल रहे ढ़ोंग को उसने शीर्षासन करवा दिया। परदा प्रथा को बंद करा दिया। अफगान महिलाएं भी पाश्चात्य पद्धति के कपडे पहनने लगी, बाल कटवाने लगी। बालविवाह पर बंदिश आई। लडकियां अपना पति स्वयं पसंद करने लगी। अफगानियों को कोट-पैंट पहनना अनिवार्य कर दिया गया। शुक्रवार के स्थान पर गुरुवार को छुट्टी घोषित कर दी गई। यहां तक कि देवबंदी उलेमाओं को देश निकाला दे दिया गया।

1928-29 में अमानुल्लाह और सुरय्या ने यूरोप यात्रा की ऑक्सफोर्ड यूनिव्हर्सिटी ने उन्हें सम्मानीय पदवी प्रदान की सुरय्या ने वहां विद्यार्थियों के समक्ष व्याख्यान दिया। अमानुल्लाह पाश्चात्य तंत्रज्ञान से प्रभावित था। वही सबसे पहले फोटोग्राफी के साधन  अफगानिस्तान में लाया। उन दोनो की जीवनप्रणाली पाश्चात्य पद्धति की होकर वे शूटिंग, हंटिंग व फिशिंग उनकी दिनचर्या में शामिल थी। सुरय्या हमेशा चायपार्टी आयोजित किया करती थी। वह इंग्लैंड की उच्चभ्रू महिलाओं के समान पोशाक किया करती थी। इस प्रकार की दिनचर्या से अफगान लोग पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। 10 दिसंबर 1927 को अमानुल्लाह और सुरय्या भारत चमन आए थे। चमन से वे कराची गए वहां एक समारंभ में सुरय्या ने अनेक स्त्रियों से भेट की। उस समय सुरय्या द्वारा कही गई कथाएं और उसके सौंदर्य के वर्णन चर्चा का विषय बने। 

1919 में अंग्रेजों से किए गए युद्ध के कारण अमानुल्लाह और अंग्रेजों के संबंध कुछ अच्छे ना थे। उसने अफगानिस्तान का संविधान तैयार किया था। सरकार का स्वरुप और राजा की भूमिका ये सारी बातें संविधान की दृष्टि से जनता के सामने स्पष्ट की। सारे विश्व में अमानुल्लाह और सुरय्या द्वारा किए गए सुधार चर्चा का विषय बने। किंतु, अंग्रेजों ने सुरय्या की स्त्री मुक्ति आंदोलन का विरोध किया, अफगानिस्तान को आधुनिक बनाने का उपक्रम वहां के कट्टरपंथियों को भी रास ना आया। जब 1929 में वे वापिस लौटे तब तक उनके विरोध में जोरदार जनमत तैयार हो चूका था। अंतर्गत गृहयुद्ध को टालने के लिए उन्होंने देश त्यागने का निर्णय लिया और रोम में स्थायी होना तय कर विदेशों में अपना शेष जीवन बीताया। अफगानिस्तान फिर से पीछे चला गया। तुर्की में कमाल अता तुर्क तो सुधार लाने में सफल रहा परंतु, अमानुल्लाह अफगानिस्तान में सफल ना सका। लेकिन अमानुल्लाह और सुरय्या द्वारा बोए बीज दोबारा प्रस्फुटित हो गए।

1977 में कुछ पुरोगामी विचारों की महिलाओं ने एकत्रित आकर 'रिव्होल्यूशनरी अफगान विमेन्स एसोसिएशन" (रावा) की स्थापना की। सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा 'रावा" का ध्येय है। 'रावा" मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध में तो है ही परंतु, 1979 में अफगानिस्तान पर हुए रशिया के हमले का भी 'रावा" ने विरोध किया था। जब तालिबान ने सत्ता में आने के बाद अफगान स्त्रियों का जीवन अंधकारमय कर दिया था तब इस प्रकार की भयानक परिस्थिति में भी बहुत बडा धोखा उठाकर भी कुछ अफगान महिलाओं ने लडकियों के लिए गुप्त रुप से स्कूल चलाए। 'रावा" अपना भूमिगत कार्य चलाते रही। जब असंभव हो गया तब पाकिस्तान जाकर वहां भी निर्वासित अफगान स्त्रियों-लडकियों के लिए स्कूल चलाए। उपजीविका के साधनों के रुप में सिलाई-कढ़ाई-बुनाई की शिक्षा दी, महिलाओं के लिए दवाखाने चलाए। यूनो के सामने अफगान स्त्रियों की दुर्दशा प्रस्तुत की, उनकी ओर से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहायता की अपेक्षा रखी। परंतु, किसी ने उनकी परवाह नहीं की लेकिन जब अमेरिका पर 11 सितंबर का हादसा गुजरा तब दुनिया जागी। परंतु, बिना हताश हुए अफगान स्त्रियों ने हिम्मत, धैर्य के साथ अनंत यंत्रणाएं सहकर भी अपनी लडाई जारी रखी। अपने परिवारों को, समाज को रीढ़ की हड्डी बन संभाले रखा।

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