Thursday, February 26, 2015

महापुरुषों का प्रभाव - अटलजी और प्रधानमंत्री मोदी पर

जब अटल बिहारी बाजपेयी एनडीए 1 के प्रधानमंत्री थे। तब 'उन्होंने स्वयं उन दस महान व्यक्तियों के नाम गिनाए थे, जिन्होंने उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित किया। ... इन दस व्यक्तियों में आठ भारतीय हैं और दो विदेशी हैं। 'रेडिफ ऑन द नेट" चैनल के 'द मिलेनियम स्पेशल" श्रंखला को दिए गए साक्षात्कार में श्री वाजपेयी ने यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था - इन व्यक्तियों का प्रभाव मुझ पर छात्र जीवन से रहा तो कुछ नेताओं ने मेरे पांच दशक के राजनीतिक जीवन पर छाप छोडी। स्वामी विवेकानंद से मैं बाल्यकाल से प्रभावित रहा। बाल्यकाल के बाद जब मैं पत्रकार बना और आज जब मैं देश का प्रधानमंत्री हूं, तब भी स्वामी विवेकानंद का जीवन और संदेश मुझे  प्रेरणा देता रहता है। ... महात्मा गांधी का भी मुझ पर बहुत प्रभाव है। आधुनिक भारत के निर्माण में उनका योगदान अमूल्य है। शहीद भगतसिंह ने तो मेरी समूची पीढ़ी की कल्पनाशक्ति को ही चुनौती दी। विदेशियों के खिलाफ उनके संघर्ष से तो मैं अवाक्‌ रह गया। बैरिस्टर सावरकर की राष्ट्रवाद के इतिहास में मिसाल नहीं है। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष कैसे किया जाए, यह मैंने उनसे सीखा है। मेरे छात्र जीवन को प्रभावित करनेवाले नेताओं में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी थे। आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरु से मैंने खूब सीख ली। आज जो भारत हम देख रहे हैं, उसका निर्माण पटेल-नेहरु ने ही किया। अखंड भारत के लिए डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रवाद को मैं कतई नहीं भूल सकता। विंस्टन चर्चिल और मार्टिन ल्यूथर किंग के जीवन से भी मुझे प्रेरणा मिली है।" (नईदुनिया 9-12-99)

अब नरेंद्र मोदी एनडीए 2 के प्रधानमंत्री हैं और वे गांधी-पटेल से बहुत प्रभावित हैं। यह गांधीजी का ही प्रभाव है जिसके कारण 2 अक्टूबर 2014 को 'स्वच्छ भारत अभियान" का आगाज कर सन्‌ 2019 तक संपूर्ण भारत को स्वच्छ कर गांधीजी के 'स्वच्छ भारत" के सपने को साकार करने का बीडा उन्होंने उठाया है। गांधीजी स्वच्छता पसंद होेने के साथ ही साथ सादगीप्रिय भी थे। मोदी जिस संघपरिवार से आते हैं उस परिवार में भी स्वच्छता पसंदगी और सादगीप्रियता की परंपरा रही है। लेकिन मोदी की जीवनशैली और कार्यशैली दोनो ही तडक-भडक पूर्ण और सामनेवाले को चकाचौंध कर देनेवाली है। वैसे इस मामले में यह भी कहा जा सकता है कि पसंद अपनी-अपनी, शौक अपना-अपना।

संघपरिवार में चाणक्य और चंद्रगुप्त का भी बडा प्रभाव है और उनके उदाहरण भी दिए जाते रहते हैं। इन्हीं कौटिल्य और चंद्रगुप्त पर एक एपिसोड्‌ क्रमांक (10) 'मानव पुरुषार्थ - अर्थ" 'उपनिषद गंगा" में है। इस 'उपनिषद गंगा" धारावाहिक का प्रसारण तीन-चार वर्ष पूर्व उपनिषदों के विचार और वैदिक संस्कृति से अवगत कराने के प्रयत्न के तहत दूरदर्शन द्वारा किया गया था। इस एपिसोड्‌ का कुछ वार्तालाप प्रासंगिक होने के कारण उसका उल्लेख यहां कर रहा हूं। (यह संपूर्ण एपिसोड्‌ देखना पाठकों के लिए अधिक योग्य साबित होगा)

चंद्रगुप्त राज्य संचालन एवं अपने जीवन के निजी विषयों के संबंध में चाणक्य के कठोर निर्णयों से दुखी हो कह उठता है - नहीं बनना मुझे सम्राट, नहीं चाहिए यह साम्राज्य। नहीं होगा यह राज्याभिषेक। रोक दो यह राज्याभिषेक। इसके बाद चाणक्य आकर कहते हैं ः यह क्या सुन रहा हूं मैं चंद्रगुप्त।

चंद्रगुप्त ः आपने ठीक ही सुना है आचार्य। नहीं बनना मुझे मगध का सम्राट। चाणक्य ः क्यों? 
चंद्रगुप्त ः जब से यहां आया हूं, अपनी इच्छा से सांस तक नहीं ले सका हूं। आपने मुझे एक महान स्वप्न दिया था। चक्रवर्ती सम्राट का स्वप्न। एक महान साम्राज्य का स्वप्न। परंतु, यहां आने के बाद पता चला, आचार्य विष्णुगुप्त के लिए सम्राट एक वेतन लेनेवाले नौकर से बढ़कर कुछ नहीं।
चाणक्य ः तूने ठीक ही समझा है चंद्रगुप्त। मेरे लिए सम्राट समाज के नौकर से बढ़कर कुछ नहीं।
चंद्रगुप्त ः तो रखें अपना साम्राज्य। नहीं बनना मुझे सम्राट। यदी यही सुख है सम्राट होने का।
चाणक्य ः चंद्रगुप्त तुझे सुखी होना है। चंद्रगुप्त ः क्या सम्राटों को सुखी नहीं होना चाहिए?
चाणक्य ः मूर्ख, जब तक तेरे साम्राज्य में एक भी व्यक्ति भूखा है तो क्या, तू सुखी हो पाएगा? सुख शिक्षक और सम्राटों के भाग्य में नहीं होता। भूल गया तू, चंद्रगुप्त। मैंने तुझे साम्राज्य देने का वचन दिया था। सुख देने का नहीं। भूल गया तू, प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है। सुख चाहता है! तो, पहले अपनी प्रजा को सुखी बना। तूने साम्राज्य अर्जित किया है। सुख अर्जित करने का मार्ग भी तेरे लिए खुला है। (क्या यही एकात्ममानवतावाद नहीं है)

तत्पश्चात चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक चाणक्य के हाथों होता है। इस समय चाणक्य चंद्रगुप्त को उपदेश देता है- चंद्रगुप्त यह राष्ट्र तुम्हें सौंपा जाता है। तुम इसके संचालक, नियामक और उत्तरदायित्व के दृढ़वाहनकर्ता हो। यह राज्य तुम्हें कृषि के कल्याण, संपन्नता और प्रजा के पोषण के लिए दिया जाता है। 

इस पूरे घटनाक्रम के पश्चात उद्‌घोषिका कहती है - अपने महान गुरु के महान शिष्य चंद्रगुप्त ने अर्थ का ऐसा पाठ पढ़ा कि अपने जीवन के अंतकाल में चालीस दिन तक अन्न ग्रहण नहीं किया। क्यूं? क्योंकि, अपने जीवन के अंतसमय में चंद्रगुप्त के राज्य में भीषण अकाल के कारण लोगों के पास अन्न नहीं था। महान गुरु, महान शिष्य, महान आदर्श। अपने महान शिष्य के लिए महान गुरु ने कौटिल्य के नाम से अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की।

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