Thursday, February 19, 2015

 शिवरात्री विशेष 
शिवशंकर की आंख से टपका आंसू - रुद्राक्ष 

रुद्राक्ष हिंदुओं के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। रुद्राक्ष को धारण करनेवाला शिव का आराधक है ही यह माना जाता है। जिस प्रकार से शिवजी की पूजा में आक, धतूरा, बेलपत्र और चंदन अनिवार्य रुप से रहते ही हैं उसी प्रकार से रुद्राक्ष भी होता ही है। रुद्राक्ष यानी रुद्र + अक्ष। एक और अर्थ रुद्र के तेज से बहे अश्रु। रुद्राक्ष को हिंदुओं के दैनिक जीवन में कैसे स्थान मिला इस संबंध में कथा इस प्रकार से है ः प्राचीनकाल में असुरों का नेता त्रिपुरासुर ने युद्ध में देवताओं को पराजित कर दिया। दुखी हो देवता शिवजी की शरण में आए। थोडा विचार करने के पश्चात शिव ने नेत्र मूंद लिए और हजारों वर्ष की तपस्या में लीन हो गए। लंबे समय के पश्चात अनायास उन्होंने अपने नेत्र जरा से खोले और उनसे आंसू की बूंंदे टपक पडी। कहते हैं उन्हीं आंसुओंं से रुद्राक्ष का वृक्ष पल्लवित हुआ। इस प्रकार जनकल्याण की भावना से उत्पन्न हुआ शिवजी का यह अंशरुपी परम श्रेष्ठ फल है रुद्राक्ष जो शिवजी को बहुत ही प्रिय है। रुद्राक्ष धारण करने से भुक्ति-मुक्ति, कल्याण एवं सर्वांगिण सुख-शांति प्राप्त होती है।

बताया जाता है कि सूर्य से बारह प्रकार के रुद्राक्ष अस्तित्व में आए, सोलह चन्द्रमा से और दस अग्नि से जन्मे हैं। सूर्य से निकले  रुद्राक्ष का रंग रक्त की भांति लाल, चन्द्रमा से निकले रुद्राक्ष का रंग सफेद एवं अग्नि से निकले काले रंग के थे। प्रत्येक रुद्राक्ष पर खाने एवं मुख अंकित होते हैं और उनके अंकों में भी विभिन्नता होती है। इसकी इक्कीस किस्में अस्तित्व में हैं। पंचमुखी रुद्राक्ष बहुतायत से उपलब्ध होते हैं एवं सस्ते भी होते हैं। जबकि एकमुखी, ग्यारह मुखी, चौदह मुखी और इक्कीस मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ होते हैं। अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष एक ही पेड पर हो सकते हैं। जंगल में रुद्राक्ष को एकत्र किया जाता है, फिर मुख के अनुसार उन्हें छांटा जाता है। वैसे नकली रुद्राक्ष मिलना आम बात है। रुद्राक्ष का भ्रम उत्पन्न करनेवाला छोटे बेर के आकार का रुद्राक्ष भी मिलता है जो बडा सुंदर होता है। प्रायः यह जावा-सुमात्रा द्वीपों से आता है। महिलाएं इसकी माला गले में पहनती हैं, परंतु यह रुद्राक्ष से भिन्न है। हरिद्वार और वाराणसी जैसे धार्मिक केंद्रों पर रुद्राक्ष जैसा ही एक वृक्ष पाया जाता है जिसका फल भी बिल्कूल रुद्राक्ष जैसा ही होता है इसे भद्राक्षस कहा जाता है। छोटे आकार का रुद्राक्ष सुख और भाग्य बढ़ानेवाला होता है।

एक मुखी रुद्राक्ष स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करता है और प्रायः दुर्लभ है। जिसके पास एकमुखी रुद्राक्ष होता है उसके पास किसी चीज का अभाव नहीं रहता। शैव मतावलंबियों के मतानुसार सदाशिव स्वरुप एक मुखी रुद्राक्ष वृक्ष से चटखकर वहीं गिरता है जहां विधिवत शिवलिंग की स्थापना की गई हो एवं वहीं विलीन भी हो जाता है। 

दो मुखी रुद्राक्ष विरल होकर उसको गौरीशंकर के नाम से संबोधित किया जाता है और पाप दूर करता है। तीन मुखी रुद्राक्ष अग्निस्वरुप होकर यह माना जाता है कि शक्तिप्रदाता होकर बीमारी दूर करता है एवं बेरोजगारी भी दूर करता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होकर छात्रों के लिए औषधी है। यह मस्तिष्क को तेज करता है व स्मरणशक्ति भी बढ़ाता है। पंचमुखी रुद्राक्ष कालाग्नि का स्वरुप है। सभी अभक्ष्य एवं अगम्यागम्य पापों से मुक्ति दिलाता है। ह्रदयरोग एवं मानसिक अशांति वालों के लिए लाभदायक है।

छहमुखी रुद्राक्ष साक्षात कार्तिकेय है। इसे दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए। जो इसे धारण करता है उसकी भौतिक इच्छाओं की क्षति नहीं होती। यह हिस्टीरिया, रक्तचाप एवं स्त्री रोगों का भी उपचार करता है। सप्तमुखी रुद्राक्ष कामदेव का प्रतीक है और धन की प्राप्ति कराता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष व्यापारियों के लिए लाभकारी है एवं साक्षात गणेश स्वरुप है। नौमुखी रुद्राक्ष भैरव नाम होकर बाएं हाथ में पहना जाता है। यह दुर्लभ होकर भैरव के समान शक्ति प्राप्त होती है।

दसमुखी रुद्राक्ष जनार्दन यानी विष्णु का रुप है। इसको धारण करनेवाले के पास भूत-पिशाच निकट नहीं आते। ग्यारहमुखी रुद्राक्ष रुद्र का प्रतीक है। इसे शिखा में धारण करने का विधान है और अधिकतर महिलाएं इसे धारण करती हैं। द्वादशमुखी रुद्राक्ष बारह आदित्यों का निवास स्थान है। इसे कानों में ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए धारण किया जाता है। इससे पशुओं के दांतों और सिंगों से सुरक्षा मिलती है। तेरह मुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय के समान धर्म, अर्थ काम और मोक्ष प्रदान करता है। चौदहमुखी रुद्राक्ष शिव का नेत्र है, शिव स्वरुप है और इससे बीमारी के विरुद्ध रक्षा होती है। पंद्रहमुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का प्रतीक है। यह उन लोगों के लिए लाभकारी है जो आध्यात्मिक उपलब्धि चाहते हैं। सोलहमुखी रुद्राक्ष धारण करनेवाले की चोरी के विरुद्ध रक्षा होती है। सत्रहमुखी रुद्राक्ष विश्वकर्मा का प्रतीक है। लोगों का विश्वास है कि इसको धारण करने से अचानक धन प्राप्ति होती है। अठराहमुखी रुद्राक्ष को पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है तो कुछ लोग इस भैरवस्वरुप भी मानते हैं। गर्भवती महिलाओं की समयापूर्व प्रसूती से रक्षा करता है और बच्चों की रोगों से रक्षा करता है। उन्नीसमुखी साक्षात नारायण का रुप है और इसको धारण करनेवाले की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बीसमुखी रुद्राक्ष ब्रह्म का प्रतीक होकर ज्ञानवर्धक होने के साथ ही मानसिक शांति प्रदाता एवं नेत्र रोगों में लाभकारी होता है। अंत में इक्कीसमुखी रुद्राक्ष जो कि अत्यंत दुर्लभ होता है और कुबेर का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुख-विलास-आनंद चाहते हैं वे इसे धारण करते हैं। यह निर्धनता को पास फटकने भी नहीं देता। अनेक उदाहरण रुद्राक्ष की महिमा साबित करते हैं। रुद्राक्ष न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है वरन्‌ चिकित्सा के उपयोग में भी लाया जाता है। इसे किसी शुभ मुहुर्त में धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष साक्षात शिव होकर इसकी महिमा रुद्राक्ष महिमा के बिना अधूरी ही रहेगी। परंतु, लेख की सीमा को देखते दे नहीं रहा हूं। 

No comments:

Post a Comment