Wednesday, March 11, 2015

आशाओं पर तुषारापात - जाएं तो जाएं कहां?
मई 2014 में जब भाजपा की मोदी सरकार 'अच्छे दिन आएंगे" के नारे के साथ अपने बलबूते पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुई तो, लोगों की आशाएं परवान चढ़ने लगी। सर्वसाधारण जनता को लगने लगा था कि अब अवश्य बदलाव आएगा, सरकारी ढ़र्रा कुछ बदलेगा, भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी, कालाधन वापिस आएगा, महंगाई से राहत मिलेगी। जो लोग मोदी के भाषणों के मुरीद और कट्टर समर्थक थे उन्होंने तो मानो मोदी का झंडा सा ही उठा रखा था। रोज मोदी भाषण देते और समर्थक उन भाषणों पर चर्चा कर खुशी जताते, विरोधियो की आलोचनाओं का मजाक उडाते। परंतु, गुजरते समय के साथ इन समर्थकों से लेकर आम जनता में भी बेचैनी बढ़ने लगी, उत्साह कुछ ठंडा पडने लगा। नया कुछ होते नजर नहीं आ रहा कि भावना बलवती होने लगी लेकिन फिर भी जनता ने मोदी के नाम पर वोट देकर भाजपा को महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में विजय दिलवाने के साथ ही कश्मीर में भी अभूतपूर्व सीटें जीतवा दी।

मोदी के भाषण बदस्तूर जारी रहे। परंतु, अब बेचैनी जाहिर रुप से लोग प्रकट करने लगे और अंततः बेचैनी ने उग्र रुप धर लिया। दिल्ली में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई। मोदी का नारा 'कांग्रेस मुक्त भारत" को वे तो साकार नहीं कर पाए परंतु केजरीवाल ने जरुर दिल्ली को कांग्रेस मुक्त कर दिया। वैसे तो मूलतः यह नारा होना था 'भ्रष्टाचार मुक्त भारत" क्योंकि, भ्रष्टाचार की जननी तो कांग्रेस ही है और उसीने ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार फैलाया, उसे प्रश्रय दिया।

दिल्ली के नतीजों के बाद मुझे कई लोग प्रतिक्रिया देते नजर आए कि, अच्छा हुआ कुछ जमीन पर आएंगे। कुछ लोगों की प्रतिक्रिया थी कि चलो कोई तो मिला, अब कम से कम विपक्ष तो भी नजर आएगा। क्योंकि, कांग्रेस तो मृत प्राय पडी है, विरोधी पक्ष की भूमिका भी निभा नहीं पा रही। उसे तो बस विपक्ष के नेता का दर्जा चाहिए। इसी बीच एक बडी गलती मोदी सरकार से हो गई भूमि अधिग्रहण अधिनियम संशोधन की। बस विपक्ष में जान आना प्रारंभ हो गई। दिल्ली के चुनाव में भाजपा की हार में इस अधिग्रहण की भी बडी भूमिका रही।

मोदी सरकार के समर्थक और कुछ लोग फिर भी आशाएं लगाए रहे कि चलो बजट के बाद कुछ बदलाव आएगा। परंतु, इस बजट ने तो उनकी आशाओं पर तुषारापात ही कर दिया। वोटर अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आरंभ से ही भाजपा और मोदी का सबसे बडा समर्थक वर्ग मध्यम वर्ग ही रहा है। कांग्रेस सरकार के जमाने में सबसे ज्यादा उसीको भुगतना पडा था। उनकी नौकरियां खतरे में आ गई थी। उनका तो फील गुड ही जो चला गया था। उन्हें भी बडी आशा थी। परंतु, उन्हें इन्कमटैक्स में कोई छूट नहीं मिली, वे निराश हो गए, छूट के नाम पर हैल्थ प्लान में इंवेस्टमेंट की लीमिट 15000 से बढ़ाकर 25000 कर दी। किंतु, इस छूट का लाभ उठाने के लिए पैसा भी तो बचना चाहिए, नई नौकरियां भी तो मिलना चाहिए बल्कि कई कंपनियों में तो छंटनी होना शुरु हो गई है तो, कई स्थानों पर तलवार लटक गई है।

ऐसे में सर्विस टैक्स में बढ़ौत्री ने किसी को भी कहीं का भी नहीं छोडा, ऊपर से 2 प्रतिशत स्वच्छता कर अलग से यानी कुलामिलाकर 16 प्रतिशत का बोझा। लेकिन सिलसिला यहीं नहीं रुका बजटवाली रात को ही पेट्रोल डीजल के भाव प्रति लीटर तीन रुपये से अधिक बढ़ा दिए जिससे कि बजट के बाद जो महंगाई का कहर आम जनता पर पडनेवाला है उसका ठीकरा पेट्रोल-डीजल पर फूटे। अब जनता की तो हालत यह हो गई है कि जाएं तो जाएं कहां? बडे बेआबरु होकर जो उनके कूचे से निकले। 

हां, कारपोरेट टैक्स को कम करने में सरकार चूकी नहीं है। आखिर वे भी तो मोदी के पक्के समर्थक जो हैं। रही मीडिल क्लास की बात तो वित्तमंत्री जेटली ने कह ही दिया कि मिडिल क्लास अपना ध्यान खुद रखे। लेकिन यदि इस मिडिल क्लास ने इन बडबोलों का ध्यान रखने की ठान ली ना तो क्या होगा, इसका भी तो जरा विचार कर लें। सोशल मीडिया पर यही वर्ग सबसे अधिक सक्रिय है और उसीने पिछली बार कांग्रेस विरोधी हवा बनाने में एक अहं रोल निभाया था।

3 comments:

  1. आपका blog अच्छा है। मै भी Social Work करती हूं।
    अनार शब्द सुनते ही एक कहावत स्मरण हो आता है-‘एक अनार, सौ बीमार।' चौंकिए मत, अनार बीमारियों का घर नहीं है, बल्कि यह तो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। इससे उपचार और अन्य आयुर्वेदा के टीप्स पढ़ने के लिए यहां पर Click करें और पसंद आये तो इसे जरूर Share करें ताकि अधिक से अधिक लोग इसका फायदा उठा सकें। अनार से उपचार

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