Wednesday, September 10, 2014

दुनिया भर में प्रचलन में है पितृ पक्ष पर्व

भारतीय परंपरा में प्रतिदिन पांच महायज्ञ ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ और नृयज्ञ करने का नियम निर्धारित किया गया है। आज भी कई धर्मनिष्ठ सनातनी इनका पालन कर स्वयं को धन्य समझते हैं। इन्हीं पांच में से एक पितृयज्ञ ही पितृ पक्ष का मूल है। यह पितृ पूजा की परंपरा विश्व में प्राचीनकाल से प्रचलन में है ना केवल हिंदू धर्म में ही अपितु मुसलमान, ईसाई, यहूदी, पारसी धर्म में भी किसी ना किसी रुप में अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान-कृतज्ञता प्रकट करने की परंपरा है। 

हिंदू पितृ पक्ष मानते हैं तो मुसलमान शब ए बरात। यह त्यौहार इस्लामी कैलेंडर के शाबान महीने की 14वीं एवं 15वीं तारीख को मध्यरात्री में मनाया जाता है। शब का शाब्दिक अर्थ है 'रात" और बरात का अर्थ है बरी किया जाता है। इसे शब ए कद्र भी कहते हैं। इस दिन रोजा रखा जाता है और कब्रिस्तान जाना, वहां फातेहा पढ़ना तथा अपने उन बुजुर्गों के लिए जो खुदा को प्यारे हो चूके हैं को जन्नत नसीब होने और उनके गुनाहों को माफ करने की दुआ मांगते हैं।

ईसाई ऑल सोल्स डे मनाते हैं जो 998 एडी से सार्वत्रिक रुप से ईसाई जगत में 2 नवंबर से मनाया जाने लगा। पूरे यूरोप में यह उतनी ही श्रद्धा से मनाया जाता है जितनी श्रद्धा से भारतवासियों द्वारा। बेल्जियम में मृतकों की कब्रों पर दीप जलाए जाते हैं। जर्मनी में कब्रों की साफ-सफाई एवं पुताई कर उन पर लाल रंग के बेरों से चित्रसज्जा की जाती है। फिर गेंदे के फूलों व नारंगी रंग की कलियों के हार से कब्रों को ढ़क दिया जाता है। प्रत्येक परिवास से एक थाली भोजन की गिरजाघर की वेदी पर रखते हैं। इसके पिछे मान्यता यह है कि यह भोजन पुरखों तक पहुंचता है। फ्रांस में तो इस संबंध में कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है। रात में गिरजाघर में प्रार्थना समाप्ति के पश्चात लोग अपने पितरों से इस प्रकार से बात करते हैं मानों वे सशरीर वहां उपस्थित हों। सिसली में मृतात्म दिवस मनाया जाता है। जब बच्चे सो जाते हैं तब उनके माता-पिता उनके सिरहाने उपहार रखते हैं और कहते हैं उनके दादा-दादी उनके लिए छोड गए हैं।

चीनी क्विंग मिंग या चिंग मिंग या टाम्ब स्वीपींग डे के नाम से इस पूर्वज दिवस को 4-5 अप्रैल को मनाते हैं। यह चीन का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसे प्रकाश दिवस भी कहते हैं। इस दिन लोग अपने पूर्वजों की समाधियां साफ करते हैं, हार-फूल चढ़ाते हैं। ताईवान, मकाऊ और हांगकांग में भी श्राद्ध समारोहित किया जाता है और इस पर्व पर सार्वजनिक छुट्टी होती है। लाओस, वियतनाम, कम्पूचिया में तो यह उत्सव बहुत ही शानदार ढ़ंग से समारोहित किया जाता है।

सिंगापूर में चीनी मूल के लोगों द्वारा अगस्त-सितंबर में रुहों का महीना आयोजित किया जाता है। घरों के द्वार रुहों के लिए खुले रखे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि मर चूके लोगों की रुहें निर्द्वंद जीवितों के बीच घूमती हैं और उन तमाम सुविधाओं का उपयोग करती हैं जिनका की हम। पर जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं या जीवित रहते जिन्हें उनके रिश्तेदारों ने काफी परेशान किया वे गलियों में भूखी-प्यासी घूमती हैं और अगर उनकी क्षुधा को शांत न किया गया तो वे अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। रुहों के मनोरंजन के लिए पूरा महीना सिंगापूर के खुले थियटरों और मैदानों में संगीत-नाटक आदि के कार्यक्रम होते हैं। सार्वजनिक भोज होते हैं जिनमें रुहों को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है। पुरखों की पूजा करनेवाले पुजारी दिखावटी नोट जलाते हैं जो नरक बैंक द्वारा जारी किए गए होते हैं। पूरे महीने नरक या स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं लेकिन कोई चिंतित नहीं होता। पूरा शहर शाम को धूप व अगरबत्तियों की महक से महकता रहता है। सिंगापूर सरकार इसका उपयोग पर्यटकों के आकर्षण के लिए करती है।
जापान में इस समारोह को अगस्त माह के पहले दिन दीपोत्सव के रुप में मनाया जाता है और प्रतीक स्वरुप नगरों, ग्रामों, घरों में असंख्य द्वीप प्रज्जवलित किए जाते हैं। जापानियों की मान्यता के अनुसार जब तक वह लोग अपने पूर्वजों को रौशनी नहीं दिखाएंगे तब तक वह अपने वंशजों के घर का मार्ग ढूंढ़ नहीं सकते। इसीलिए इन दिनों कब्रों के चारों ओर बांस गाडकर उन पर विभिन्न रंगों की लालटेनें टांगी जाती हैं और मोमबत्तियों की रौशनी में मृतात्माओं का आवाहन किया जाता है। जापान में जितने हर्षोल्लास से इस त्यौहार को मनाया जाता है उसके बिल्कूल उलट रोने-चिल्लाने के साथ बर्मावासियों द्वारा अगस्त के अंत में या सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। 

अमेरिका रेड इंडियन बडे ही अनोखे ढ़ंग से श्राद्ध पर्व को मनाते हैं जो फरवरी मास में आता है। इस अवधि में वे आमिष भोजन को त्याग देते हैं। प्रत्येक दिन विभिन्न जनपदों के निवासी दूसरे जनपदों के अतिथि होते हैं। रेडइंडियन विभिन्न रंगों से अपने शरीरों को रंगते हैं। विभिन्न प्रकार के पक्षियों से अपनी रुप सज्जा करते हैं। नए वस्त्र धारण कर नाचते-गाते पडौसी गांव में अधिकतर रात्री में ही जाते हैं। प्रत्येक के हाथ में चीड के वृक्ष की जलती मशाल रहती है जिससे कि उनके आगमन की सूचना मेजबान को मिल जाए। प्रत्येक जनपद पडौसी जनपद के लोगों को अपना पुरखा समझ उनके प्रति प्रेम प्रकट करते हैं। सहभोज के बाद संगीत-नृत्य का आयोजन किया जाता है। पूरी तरह से तृप्त होने के बाद अतिथिगण अपने घरों को लौटते हैं।

उपर्युक्त पर से स्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होता है कि पूरे विश्व के अन्यान्य अंचलों में इस प्रकार से किसी ना किसी रुप में पितृ पक्ष पर्व प्रचलन में है और तत्संबंधी तिथियां-मास उनके लिए बहुत महत्व रखते हैं।  

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