Thursday, August 28, 2014

गणेशोत्सव 
गणेशजी का विदेश संचार

गणेशजी की उपासना अत्यंत प्राचीन काल से भारत ही नहीं तो सारे विश्व में जहां-जहां जिन-जिन देशों मे भारतीय जाकर बसे भारतीय संस्कृति का प्रभाव पडा वहां-वहां श्रीगणेश की उपासना भी जा पहुंची। वेद, उपनिषद, पुराण और ऐतिहासिक काल में भी गणपति की उपासना की जाती रही है। भारतीय संस्कृति का प्रभाव पश्चिम में तुर्कस्तान, उत्तर में चीन और ईशान कोण में जापान तक फैला था। मलय द्वीप पुंज में भी गणेशजी की मूर्तियां मिलती हैं। श्रीगणेश के भारत के बाहर विविध नाम हैं। ब्रह्मदेश यानी बर्मा या म्यांमार में महापियन कहा जाता है। पियेन विनायक का ही विकृत रुप हो अथवा विघ्न शब्द का रुपांतर जिसमें गणेशजी विघ्नेश्वर कहलाए पियेन हो सकता है।

व्हेनसांग (सातवीं शताब्दी) के यात्रा वर्णन से ज्ञात होता है कि अफगानिस्तान में कुशाण पूर्व काल में भी गणेश पूजा व्याप्त थी। पश्चिम ईरान के लुरिस्तान में उत्खनन में ई.पू. 1200 से 1000 वर्ष पूर्व में गणेश मूर्तियां मिली हैं। ईरानियों में अहुरमज्दा नाम से भगवान गणेश की पूजा होती है। ईरान का गणपति वीर योद्धा के रुप में है जो खडगधारी है। यूनानवासी गणेशजी की पूजा ओरेनस नाम से करते हैं। इजिप्त के इतिहासकार हर्मिज के अनुसार 'सब देवों में यह अग्रिम है जिसका विभाग नहीं हो सकता, जो बुद्धि का अधिष्ठाता है उसका नाम एकहोन है। संभवतः यह देवता गणेश ही है क्योंकि वही पूजनीय है और एकहोन संबोधन भी एकदन्त का पर्यायवाची मालूम होता है।

 नेपाल ने गणेश पूजा को विशिष्ट स्थान दिया और उन्हें हेरम्ब विनायक की संज्ञा दी। नेपाल के समान ही तिब्बत में भी गणेशजी को सम्मान मिला और उन्हें 'सोरद दाग" नाम दिया व मंदिर की पताकाओं में स्थान दिया। तिब्बत में प्रत्येक मठ के अधीक्षक के रुप में विनायक पूजा का प्रचलन है। चीनी और जापानी लोगों को गणेश के रुप मालूम थे। एक विनायक का दूसरा कांगितेन का। जब बौद्ध धर्म शनैः शनैः जापान में लोकप्रिय होने लगा तभी गणेश को भी जापान में मान्यता प्राप्त होने लगी। गणेश का स्वरुप जापान के निओ से साम्य रखता है। चीनी तुर्कस्थान में गणेश नेपाल, तिब्बत होते हुए पहुंचा होगा। चीनी तुर्कस्थान में प्राप्त चतुर्भुज गणेश का भित्ति-चित्र विशेष महत्वपूर्ण है। 

सयाम देश के लोग मंगोलवंशीय होकर उनकी संस्कृति आर्य संस्कृति युक्त है। सयाम में गणेशजी वैदिकों के समान बौद्धों में भी लोकप्रिय है। कंबोडिया या कम्बुज जिसे हिंद चीन भी कहा जाता है में भी बर्मा और सयाम के ही जैसी छोटी-छोटी गणेश मूर्तियां मिली हैं। बोर्नियो की कांस्य गणेश मूर्ति विशेष प्रसिद्ध है। यहां सामाजिक स्वरुप में गणेशजी की पूजा होती है। जावा में भगवान गणेश के पूजन के प्रमाण मिले हैं। बाली में जावा की तरह अशुभ विनाशक के रुप में गणेश पूजन होता होगा ऐसा लगता है। यहां का उसका रुप भारतीय कम चीनी अधिक लगता है। श्रीलंका में गणेशजी ईसा से एक शताब्दी पूर्व जा पहुंचने के साक्ष्य मिलते हैं। कंपूचिया के गणेश खमेर दाहिना पांव बांये पांव पर रखकर बुद्ध के समान आसनस्थ है। हनोई का विघ्नेश्वर भारत के समान कमलाकृति प्रतीक में अंकित है। अमेरिका में बचे-खुचे रेडइंडियन लोग और मेक्सीको (दक्षिण अमेरिका) के लोग गज मस्तक और मनुष्य देह वाली मूर्ति की आज भी पूजा करते हैं।

उपरोक्त प्रकार से भारतवर्ष के बाहर भी यत्र-तत्र न्यूनाधिक मात्रा में श्रीगणेश की पूजा-आराधना के उल्लेख प्राप्त होते हैं। इस प्रकार से श्री गणेश की गणना संसार के सबसे अधिक लोकप्रिय देवताओं में हो सकती है एवं ऐतिहासिक स्तर पर उनके महत्व का विस्तार सार्वभौम है। 

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