Sunday, June 22, 2014

 अच्छे दिन कब आएंगे !

नरेन्द्र मोदी की अभूतपूर्व जीत के पीछे के कई कारकों में से एक 'अच्छे दिन आएंगे" का उद्‌घोष भी है। जो लोगों की जबान पर चढ़ गया था। सन्‌ 2004 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपानीत एनडीए द्वारा उछाला हुआ नारा 'फीलगुड" लोगों के बीच इतना अधिक चर्चित हो गया था कि आज भी जब कोई बहुत अधिक प्रसन्न नजर आता है तो लोग कहते हैं क्यों 'फील गुड" हो रहा है क्या? यह बात अलग है कि यह नारा लोगों की भावनाओं को आहत करनेवाला होने कारण भाजपानीत एनडीए को ले डूबा था वहीं 'अच्छे दिन आएंगे" के सकारात्मक, आशावादी और दिल को छू जानेवाला होने के कारण पार्टी की नैया इस बार पार लग गई।

लेकिन अब जब जीत का उन्माद उतार पर है तो विचारवान लोग इस बात पर चर्चा करने लगे हैं कि देश के सामने खडी चुनौतियों का सामना मोदी सरकार कैसे करेगी, महंगाई कब कम होगी, ब्याज दरें कब कम होंगी या यह दौर यूं ही लंबा चलता रहेगा, भविष्य में रिजर्व बैंक क्या रणनीति अपनाएगा? वित्तमंत्री की नीतियों के साथ उसका तालमेल बैठेगा या नहीं? क्योंकि, महंगाई अब भी ऊंचाई पर है, मानसून किस करवट बैठेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। बजट को अभी आना बाकी है, आदि।

परंतु, सर्वसाधारण जनता इन सब बातों से अनजान रहकर पेट्रोल-डीजल की दरें कब कम होंगी, गैस कब सस्ती मिलेगी, की राह तकते बैठी है। उसे इस बात का कोई इल्म नहीं कि यह इतना आसान नहीं। जनता बस इतना जानती है कि जब गोआ में पेट्रोल-डीजल सस्ता मिल सकता है तो मध्यप्रदेश में क्यों नहीं? हां, वह यह जरुर जानती है कि म.प्र. में ही पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स की दरें देश में सबसे अधिक हैं - पेट्रोल पर 28 तो डीजल पर 24 प्रतिशत है। सरकार ने गैस की दरें 25 रुपया जरुर कम की हैं परंतु वह कम दरें गैरसब्सीडीवाले गैस सिलेंडरों पर लागू होती हैं, सब्सीडाइज्ड सिलेंडरों पर नहीं। जनता को इससे भला क्या लाभ हो सकता है। गैस पर एंट्री टैक्स के रुप में 10 प्रतिशत टैक्स अलग से लगा हुआ है। सीएनजी के रुप में सस्ता और प्रदूषण रहित ईंधन को बढ़ावा देने की बातें की गई लेकिन सीएनजी के पंप इतने कम हैं कि उसका उपयोग करना भी दुखदायी सिद्ध हो रहा है। आम जनता को तो कोई राहत नहीं पर हवाई जहाजों को लगनेवाला एटीएफ यानी हवाई ईंधन जरुर सस्ता कर दिया गया है। उस पर टैक्स की दर केवल 5 प्रतिशत है।
पहले की सरकारों ने सर्विस टैक्स के नाम पर जो असहनीय बोझा लाद रखा है वह कम हो तो कोई बात बने। जब प्रारम्भ में सर्विस टैक्स लागू किया गया था तो वह कुछ इनेगिनों पर ही था परंतु, उसने सुरसा की तरह मुंह फैलाकर हर किसीको चपेट में ले लिया है अब वह क्षेत्र ढूंढ़ना पडेगा जहां यह कमरतोड ऊंची दरोंवाला सर्विस टैक्स लागू न हो। कभी बदलाव के तौर पर होटल में भोजन के लिए चले जाओ तो वहां भी 12 प्रतिशत सर्विस टैक्स जजिया कर के रुप में मौजूद है। पहले ही तो महंगाई मारे दे रही है उस पर से यह सर्विस टैक्स। यदि वास्तव में अच्छे दिन लाने हैं तो इस सर्विस टैक्स यानी सेवाकर को समाप्त करें। हमारी सेवा तो वह धोबी या नाई करता है जिसको हम उसकी सेवा के बदले उसका पारिश्रमिक देते हैं यहां सरकार हमारी कौनसी सेवा कर रही है जो यहां भी टैक्स मांग रही है और वसूल भी रही है। यह तो सरासर अन्याय है। पुराने जमाने में राजा तो क्या प्रजा यानी आम जनता भी साल में एक बार परिवार की सेवा करनेवाले इन धोबी, नाई, दर्जी आदि लोगों को अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार जो बने वह पारिश्रमिक स्वरुप कुछ ना कुछ दिया करती थी। परंतु, इस सरकार ने इनको भी नहीं छोडा और इनके माध्यम से आम जनता से वसूली कर रही है। 

मकान बनाने इंजीनिअर के पास जाओ या कानूनी सलाह लेने वकील के पास हर कोई मानो अपना व्यवसाय नहीं कर रहा है बल्कि ऐसा लगता है मानों वह सरकारी मुलाजिम के रुप में उनकी सेवाएं लेनेवालों से सरकार का सर्विस टैक्स वसूलने बैठा है। अब भला जनता को राहत कैसे मिलेगी और जब तक राहत नहीं मिलती तब तक भला जनता कैसे महसूस करेगी कि 'अच्छे दिन आ गए हैं या आनेवाले हैं।"

कमर तोड महंगाई बढ़ने के कारकों में से एक है टोलटैक्स। अच्छे रोड देने के नाम पर बीओटी को लाया गया जो अच्छा कितना और बुरा कितना यह अलग बात है लेकिन इन टोलनाकों ने हर तरह से लूट मचा रखी है। टोलटैक्स के नाम पर जो अनाप शनाप वसूली हो रही है वह भी असहनीय है। जगह-जगह पर के टोलनाकों के कारण माल-भाडा और यात्री किराए में अत्याधिक वृद्धि हो जाती है जो अंततः महंगाई के रुप में ही सामने आती है। इस बात का कोई हिसाब ही नहीं कि कितने कि.मी. पर टोलनाके होना चाहिए। इन टोलनाकों के कारण यात्रा व्यय एक रुपया प्रति कि.मी से अधिक तक बढ़ जाता है। तो, माल भाडा कितना बढ़ जाता होगा इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है। ये टोलनाके किस आधार पर और कितने समय तक वसूली करेेंगे इसके क्या माप दंड हैं इसका भी कोई हिसाब किताब दिख नहीं पडता। टोलनाकों की समयावधि पूरी हो जाने के बाद भी कई स्थानों पर वसूली बदस्तूर जारी है यह दिखाई पडना आम बात है और वह भी हर प्रदेश में तथा यह लूट का पैसा कहां जा रहा है किस-किस की जेब में जा रहा है, यह भी कोई नहीं जानता। 

मोबाइल फोन जो अब हर व्यक्ति की आवश्यकता बन गया है के क्षेत्र में तो गजब की लूट मची है चाहे जब बेलेन्स कम हो जाता है, बिना मांगे चाहे जब कोई सा भी प्लान एक्टिवेट हो जाता है और पैसे कट जाते हैं, नेटवर्क मिलता ही नहीं है फिर भी पैसा मांगा जा रहा है, बढ़ा चढ़ाकर बिल पेश करना तो आम बात है। कोई संतोषजनक उत्तर कंपनियां देती नहीं। इंटरनेट की स्पीड मिलती नहीं जबकि जिस स्पीड का वादा किया गया है वह देने के लिए कंपनियां नियमानुसार बाध्य हैं। परंतु, इस सिलसिले में कोई सुनवाई नहीं होती। हफ्तों इंटरनेट सेवाएं बाधित रहती हैं परंतु, कंपनियां परवाह नहीं करती। इंटरनेट के साथ संलग्न फोन को उपयोग में लाओ या ना लाओ बिल भेज दिया जाता है। उपभोक्ता अपने को लूट हुआ और असहाय सा महसूस करता है जब तक यह लूट, अंधेरगर्दी बंद नहीं होती तब तक यह निश्चित जानिए कि अच्छे दिन आनेवाले नहीं हैं।   

1 comment:

  1. विस्वास रखने की अवस्यकता है मेहनत करने, नेतृत्व पर विस्वास करना ये इयमदारी,राष्ट्रभक्ति से काम और बांग्लादेश घुसपैठ कश्मीर मे पंडितों को बसाना बड़ा काम है महगाई से तो देश निपट लेगा----!

    ReplyDelete