Wednesday, June 25, 2014

स्पूतनिक के छप्पन वर्ष और मैं 

मेरा स्पूतनिक परिवार से संबंध बलरामजी के कारण आया। हमारा परिवार 1972 में इंदौर आया और तभी से मेरी बलरामजी से मित्रता है। हमारी मित्रता का कारण एक ही स्कूल में होना और लगभग प्रतिदिन साथ ही स्कूल आना-जाना। कभी-कभी मैं उनसे मिलने प्रेस जो उस समय आर.एन.टी मार्ग पर स्थित थी चले जाया करता था। आगे चलकर हमारे संबंधों में कमी आ गई इसका कारण उनका वाणिज्य संकाय तो मेरा विज्ञान-यांत्रिकी में होना था। हमारे संबंधों की बीच की महत्वपूर्ण कडी थी श्री दीपक कसरेकर जो स्पूतनिक परिवार के सक्रिय सदस्य लंबे समय तक रहे और हम दोनो के ही घनिष्ठ मित्र हैं। उन्हीं के माध्यम से स्पूतनिक की दबंग पत्रकारिता और उसके प्रभाव के बारे में मैं जब भी इंदौर आता सुनता रहता था।

1984-85 में मैंने अपने निर्माण कार्य का व्यवसाय कुछ निजी तो कुछ सरकारी ठेके लेकर शुरु किया। इस दौरान मैं देवास, धार, झाबुआ, बडवानी, खरगोन आदि जिलों में घूमा, कुछ स्थानों पर कार्य भी किया। उस दौर में मैंने कई पत्रकारों और अखबारों, उनके प्रतिनिधियों को पीत पत्रकारिता करते हुए देखा। लेकिन उस समय से लेकर आज दिनांक तक मैंने न तो कभी किसी स्पूतनिक संवाददाता को पीत पत्रकारिता करते देखा ना ही कभी किसी सरकारी अधिकारी या व्यवसायी से यह सुना कि स्पूतनिक से संबंधित कोई व्यक्ति मुझे परेशान या ब्लैकमेल कर रहा है। स्पूतनिक की यह एक बहुत बडी उपलब्धि है। 

फिर आया 1991 के आसपास का राममंदिर आंदोलन का दौर उसी समय मैं फिर से इंदौर लौटा और यहां मैंने अपना ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय शुरु किया। स्वाभाविक ही था कि मुझे अपने लेटर पैड, बिलबुक आदि छपवाने की आवश्यकता महसूस हुई और मैं स्पूतनिक प्रेस जा पहुंचा। और यहीं से मेरी स्पूतनिक परिवार और बलरामजी से घनिष्ठता बढ़ना प्रारंभ हुई। मैं स्पूतनिक अखबार का नियमित पाठक बन गया। इस दौरान मेरा कार्यालय प्रेसकाम्पलैक्स के निकट ही होने के कारण मेरा आना-जाना स्पूतनिक में बढ़ गया। स्पूतनिक में छपे समाचार और कार्यालय में होनेवाली चर्चाओं को मैं सुनता रहता, कभीकभार उनमें भाग भी लेता था। कई बार उन्हींके आधार पर मैं बाहर भी भाष्य किया करता। स्वाभाविक ही था कि वह लीक से हटकर होता था। उन बातों को सुनकर मेरे एक निकटस्थ जो वर्तमान में भाजपा के बडे राजनेता हैं ने मुझसे स्पूतनिक के मालिकों से भेंट करवाने को कहा। बलरामजी ने मुझसे कहा कि श्याम भैया से मिलवा दो। 

उन दोनो की चर्चा दो घंटे से अधिक चली। जिसका लुब्बेलुबाब वही था जो श्यामभैया, डॉ. गीता, युगेशजी शर्मा और श्री रघु ठाकुर के स्पूतनिक के छप्पन वर्ष पूर्ण होने पर लिखे गए लेखों में है। इसी चर्चा के दौरान मुझे यह भी मालूम हुआ कि किस प्रकार से स्पूतनिक ने मध्यप्रदेश मालवा के संघ के एक प्रमुख समाचार पत्र को बहुमूल्य सहायता समय-समय पर की थी। यही नहीं किसी जमाने में इंदौर के एक बडे समाचार पत्र में गिने जानेवाले अखबार को भी अनमोल सहायता की थी। जो स्पूतनिक को दूसरों से एक अलग पहचान देता है। 

आज स्पूतनिक परिवार से इतने वर्षों के घनिष्ठ संबंधों के आधार पर मैं विश्वासपूर्वक यह कह सकता हूं कि स्पूतनिक आज भी अपने मार्ग से विचलित नहीं हुआ है, ना ही होगा। इसका श्रेय संपूर्ण स्पूतनिक परिवार को जाता है। स्पूतनिक परिवार के एक अंग के रुप में मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि वह स्पूतनिक परिवार में हमेशा इतनी शक्ति बनाए रखे कि वह अपने ध्येय वाक्य - 

'हवा के साथ बहे वह पत्रकारिता नहीं, हवा बनाए वह पत्रकारिता है" पर अडिग रह सके।

2 comments:

  1. आजकल ऐसे समाचार पत्र मिलतें कहा है, बहती गंगा का पानी हर कोई अपनी अौकात क़े अनुसार भरनें क़े लिये आतुर हैं. स्पुतनिक परिवार का अभिनन्दन

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