Friday, May 23, 2014

अनोखा व्हिजन्‌ नरेंद्र मोदी का


नरेंद्र मोदी कुछ बातों को बार-बार दोहरा रहे हैं, उन पर जोर दे रहे हैं जो उनकी सोच, कार्यपद्धति और व्हिजन को दर्शातेे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लंबे समय तक प्रचारक रहने के कारण उनकी सोच है - सर्वे भवन्तु सुखीनः सर्वे सन्तु निरामयः। मोदी की कार्यपद्धति है planning in advance,and planning in detail और व्हिजन है देश के लिए जीना। वे लोगों की भावनाओं को उभारने में माहिर हैं। लोगों की भावनाओं को उभारकर, उन्हें वोटों में तब्दील कर उन्होंने आश्चर्यचकित कर देनेवाली सफलता हासिल कर ली है। अब वे इन जनभावनाओं को चुनाव में जीतने के बाद अपने साथ जोडकर देश के लिए जीना है की ओर मोड रहे हैं।
वे कह रहे हैं हमें देश की आजादी के लिए लडने, जेल जाने, यातनाएं भोगने को नहीं मिला तो क्या हमें देश के लिए जीना है। इसे सर्वांगीण विकास के रास्ते पर ले जाना है। यह संघ की ही तो विचारधारा है। संघ की प्रार्थना में यह पंक्ति आती है 'परम्‌वैभवम्‌ नेतुमेत स्वराष्ट्रं" अर्थात्‌ हमें अपने देश को परम वैभव की ओर ले जाना है। इसीके लिए हम संघ के स्वयंसेवक बने हैं। गुजरात में उन्होंने इसी प्रकार से गुजराती अस्मिता को जगाकर पूरे गुजरात को अपने साथ जोड लिया और अब बारी है पूरे देश की।


उदाहरणार्थः काशी में चुनावी विजय के पश्चात काशी की जनता के साथ सीधे संवाद साधते हुए उन्होंने कहा काशी के विकास के लिए सफाई आवश्यक है। गांधीजी का उदाहरण देते हुए सब सफाई में जुट जाएं का संदेश दिया। बात सही भी है हम स्वयं ही देख लें कि हमारे मुहल्ले, गलियां, शहर, रास्ते, बस स्थानक, रेल्वे स्टेशन, बसें-रेलें यहां तक कि मंदिर और तीर्थस्थल तक कितनी गंदगी से पटे पडे हैं। कोई भी नाक भौं सिकोडने के लिए मजबूर हो जाएगा। यदि हम सफाई पसंद हो जाएं तो निश्चय ही पर्यटन बढ़ेगा। पर्यटन को बढ़ावा यह मोदी की विकास की नीतियों का एक अंग है। किसी भी नीति की सफलता के लिए जनता का उसमें सहभाग आवश्यक है और इसके लिए जनता को अपने साथ भावनिक और वास्तविकता के धरातल पर जोडना, उनके साथ सीधे संवाद कायम कर उन्हें विश्वास दिलाना कि वे उनके साथ हैं, आवश्यक है और इसमें मोदी माहिर हैं जो गुजरात को देखकर जाहिर होता है। यदि यह भावनाएं कायम रही, मोदी अपने कार्यों द्वारा यह कायम रखने में सफल रहे तो, मोदी की राह निश्चय ही सरल हो जाएगी।


दूसरी बात जिस पर मोदी जोर दे रहे हैं वह है 'सबका साथ सबका विकास" गुजरात में यही बात 'सौनो साथ-सौनो विकास" कहकर प्रचारित की गई और उसमें उनको सफलता भी मिली। उदाहरण के लिए वहां जून माह में शाला प्रवेशोत्सव मनाया जाता है जिसके तहत मंत्री से लेकर विभिन्न स्तर के अधिकारी उन गांवों को चिन्हित करते हैं जहां सरकारी स्कूलों में 'इनपुट' कम है। वे वहां दौरा कर वहां के लोगों-बच्चों की मानसिकता को समझ उन्हें स्कूल में आने के लिए प्रेरित करते हैं, प्रोत्साहन देते हैं। जिसमें सरकार को आशातीत सफलता भी मिली है। लेकिन विरोधी उन पर आरोप लगाते हैं कि वे उत्सवप्रिय हैं और हर बात को उत्सव में बदल देते हैं जैसे गुजरात का 'पतंग महोत्सव"। जो पूरे गुजरात में बहुत बडे पैमाने पर मनाया जाता है। इस उत्सव में सहभागी होने के लिए लोग बडी दूर-दूर से आते हैं, विदेशी भी बहुत बडी संख्या में आते हैं। इससे बडे पैमाने पर राजस्व की प्राप्ति होती है, पर्यटन को बढ़ावा मिलता है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वे किस प्रकार से सक्रिय भूमिका निभाहते हैं यह अमिताभ बच्चन को गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर बनाने से पता चलता है। अमिताभ के रेडियो-टीव्ही पर आनेवाले विज्ञापनों के संवाद कितने आकर्षित करते हैं यह 'खुशबू है गुजरात की" से पता चलता है।


मोदी की नीति लोगों को जोडना उन तक अपना संदेश पहुंचाना उनके साथ सीधा संवाद स्थापित करना का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। चुनाव के समय उनकी चुनावी रणनीति के एक भाग के रुप में पूरे देश में आयोजित की गई 'चाय पे चर्चा"। जिसने उन्हें अपार लोकप्रियता दीलाई। जो जगह-जगह पर 'मोदी चाय", 'मोदी ज्यूस सेंटर" आदि के रुप में नजर आई। बाजार में मोदी कुर्ते नजर आने लगे, मोदी अपने आप में एक ब्रांड बन गए। मोदी ही देश के वे पहले राजनेता हैं जिन्होंने पांच रुपये का टिकिट उनकी सभा में प्रवेश के लिए रखा था। उस समय उनकी आलोचना हुई, मजाक उडाया गया लेकिन समय ने यह सिद्ध कर दिया कि लोग उन्हें सुनने आए, उनसे जुडे और स्थान ही कम पड गया। यह संघ की ही नीति है कि लोगों को जोडो। संघ का कहना है हम जोडने का काम करते हैं तोडने का नहीं यही तो मोदी ने साकार कर दिखाया।


संघ 'सर्वे संतु सुखीनः सर्वे संतु निरामयः" में विश्वास करता है जैसाकि पूर्व में ही कहा जा चूका है और यही हमारे प्राचीन ऋषियों का उद्‌घोष रहा है। यही हर हिंदू चाहता है, इसमें विश्वास करता है। इसी उद्‌घोष के कारण भले ही एक हिंदू व्यक्तिगत रुप से बुरा हो सकता है, परंतु समाज रुप में वह अच्छा ही होता है। इसी सोच को मोदी ने गुजरात में सख्त कानून व्यवस्था लागू कर गुजरात को दंगा-अराजकता विहीन राज्य बनाकर विकास के पथ पर ले जाकर दिखला दिया है। देश की जनता ने इस पर विश्वास किया और उन्हें सफलता मिली।


मोदी ने संसदीय दल की बैठक में अपनी सरकार को गरीबों, करोडों युवाओं और मान-सम्मान के लिए तरसती मां-बहनों के लिए समर्पित सरकार बतलाया। इस सबके लिए सुरक्षा अत्यावश्यक है। सुरक्षा के बिना विकास किसी काम का हो नहीं सकता। यदि आपसमृद्ध हैं, विकसित हैं लेकिन सुरक्षित नहीं, आपको सुरक्षा हासिल नहीं तो कोई भी आपको लूट ले जाएगा। उदाहरण के लिए आप-आपका राज्य समृद्ध है, उन्नत रास्ते हैं उन पर तेज गति से दौडनेवाली गाडियां (जैसेकि एसयूव्ही) हैं, लेकिन आपकी सुरक्षा व्यवस्था लचर है तो, चोर-उचक्के-डकैत आपको लूटकर एसयूव्ही में बैठकर अच्छे रास्तों से सैंकडों मील दूर भाग जाएंगे, ऐसा हुआ है और हो भी रहा है। नेहरुजी कहा करते थे मैं देश के विकास के लिए नए मार्गों का निर्माण कर रहा हूं इस पर सावरकरजी कहा करते थे मार्गों के निर्माण में कैसा विकास यदि सीमाएं सुरक्षित नहीं तो शत्रु इन्हीं रास्तों का उपयोग कर हम पर कब्जा जमा लेगा।


मोदी ने गुजरात की सुरक्षा के लिए शहरों को सीसीटीव्ही कैमरों से लैस कर रखा है इसलिए वहां अपराध कम हैं। सन्‌ 2006 में अहमदाबाद शहर में बम विस्फोट हुए थे गुजरात की मोदी सरकार सभी आतंकवादियों को 21 दिन में पूरे देश में वे जहां कहीं थे वहां से ढूंढ़-पकड लाई। मोदी का कहना है - आतंकवादी के पैर नहीं गला पकडो। सीधी सी बात है समृद्धि के साथ सुरक्षा जरुरी है। ईरान भी किसी जमाने अत्यंत समृद्ध था परंतु सुरक्षा व्यवस्था कमजोर होने और देश के लिए जीना है की भावना ना होने के कारण उसकी समृद्धि, उसके अग्निपूजक धर्म और संस्कृति का देखते-देखते नाश हो गया।


अब यहां सवाल यह उठता है कि जब गुजरात इतना सुरक्षित है तो वहां आयटी इंडस्ट्री क्यों नहीं? आयटी इंडस्ट्री वाले तो सबसे अधिक सुरक्षा पर ही बल देते हैं। तो, इसका उत्तर जानने की कोशिश करने पर यह मिला कि हां, यहा सच है कि गुजरात में आयटी इंडस्ट्री भले ही ना हो परंतु जितना 'इ-गव्हर्नंस" पर जोर गुजरात ने दिया है, अपनाया है उतना किसीने नहीं। वहां पेपर प्रोसीजर ना के बराबर है। गुजरात सबसे अधिक टेक्नोसेवी है। 'चाय पे चर्चा" भी इसका एक अच्छा उदाहरण है। जरा सोचिए इतने सारे टीव्ही सेट्‌स की व्यवस्था करना एकसाथ पूरे देश में लाखों लोगों के साथ संवाद स्थापित करना क्या कोई साधारण बात है। आखिर मोदी का यह नारा जो है 'मिनिमम गव्हर्नमेंट मेक्सिमम गव्हर्नंस"। 

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