Tuesday, May 13, 2014

14 मई 2014 बुद्ध पूर्णिमा


बौद्ध धर्म में हिंदू देवी - देवता


बौद्ध दर्शन को नास्तिक कहा गया है इसका कारण यह है कि वह वेदों को प्रमाण नहीं मानता था साथ ही बुद्ध ने नास्तिक के सामान्य अर्थ को भी प्रतिपादित किया कि वह ईश्वर को नहीं मानता, निरीश्वरवादी है। इसके पीछे उनका तर्क था कि यदि वह भला और सर्वशक्तिमान है तो फिर संसार में दुःख ही दुःख क्यों है? मनुष्य के जीवन में अनुकूल कम प्रतिकूल परिस्थितियां ही अधिक क्यों है? भलाई चाहने के बावजूद बुराइयों का अन्त करने में वह समर्थ क्यों नहीं? तो ऐसे ईश्वर की उपासना क्यों की जाए?


फिर भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हिंदुओं के समान ही अनेकानेक देवी देवताओं की पूजा करते हैं। राजा हर्षवर्धन बुद्धोपासक था, शिवोपासक और सूर्योपासक भी था। बौद्ध धर्म में शिव, वरुण और कुबेर समान रुप से पूजनीय हैं। अन्य देवता यानी सूर्य, आदित्य, रवि, दिनकर (सूर्य के नाम) स्कंद, सरस्वती, उपेन्द्र, मरुत्‌, श्री, सोम, चन्द्रमा, वायु, हरिशंकर, पृथ्वी के अलावा नारायण भी है ही। वास्तव में जिस प्रकार से सामान्य हिंदू को ब्रह्म, आत्मा, मोक्ष, द्वैत-अद्वैत-द्वैताद्वैत इस प्रकार की झंझटों का अर्थ नहीं समझता उसी प्रकार से बौद्ध उपासकों को भी शून्यता, निर्वाण आदि बातों का अर्थ नहीं समझता। परंतु, अपने से श्रेष्ठ ऐसी कोई तो भी शक्ति है और उसके किसी ना किसी स्वरुप कल्पना की जाए जिसके आगे अपन नम्र हो सकें और हो सके तो उसकी कृपा का प्रसाद अपन पा सकें। यह जो सामान्य आकांक्षा है वह हिंदू-बौद्ध का भेद नहीं मानती। मूलतः ही हिंदू-बौद्ध में कोई भेद नहीं।


गौतम को कोई अलग धर्म की स्थापना नहीं करना थी। इसीलिए अपने धर्म को उन्होंने 'शाश्वत" और 'सनातन" ऐसे विशेषण लगाए हैं। बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने बुद्ध के बुद्धत्व, उनकी शक्ति, गरिमा आदि को लेकर उन्हें भगवान ही बना दिया। भले ही भगवान बुद्ध ने कहा था कि मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा निर्वाण प्राप्त कर सकता है परंतु, शिष्यों ने इस प्रकार की शिक्षा देना और प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया कि तथागत के प्रति भक्ति व प्रार्थना के माध्यम से निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है। बुद्ध के ये अनुयायी वैष्णव धर्म से प्रभावित थे और उन्होंने महायान सम्प्रदाय की स्थापना की और इसीके साथ बौद्ध धर्म में बुद्ध को अवतार माना जाने लगा और उनकी मूर्ति की पूजा की जाने लगी और विशिष्ट शक्ति व योग्यता वाले देवी-देवताओं का भी उदय हो गया।


महायान पंथ में तो देवीयों की भरमार ही है। आदिबुद्ध की पत्नी प्रज्ञापारमिता। आदिबुद्ध की विभूति यानी ध्यानीबुद्ध। और प्रत्येक ध्यानीबुद्ध की पत्नी एक-एक देवी। हीनयान मत के अनुसार पहले चौबीस बुद्ध हो चूके हैं। महायानियों द्वारा दी हुई विभिन्न सूचियों में उनकी संख्या 32 है। अंतिम सात की सात पत्नियां हैं। ध्यानी और मनुष्य बुद्ध के अलावा बोधिसत्त्व हैं और प्रत्येक की पत्नी रुप शक्ति यानी देवी भी। ध्यानी बुद्ध अमिताभ से निकली हुई तीन देवियां हैं। अक्षोभ्य बुद्ध से निकली चौदा देवियां हैं। वैरोचन बुद्ध से उपजी आठ, अमोघसिद्धी की आठ, रत्नसंभव बुद्ध की छः।


आगे चलकर महायान में तंत्र-मंत्र भी समाविष्ट हो गए। इस प्रकार से बौद्धधर्म का जो स्वरुप सामने आया उसे तांत्रिक बौद्ध-धर्म या वज्रयान कहा जाने लगा। यह धर्म भारत के उत्तर में तिब्बत और चीन आदि में प्रचलित हुआ। तंत्र साधना में शक्ति का बहुत महत्व है अतः स्वाभाविक रुप से इस तांत्रिक बौद्धधर्म में विविध शक्तियों वाली देवियों की प्रतिष्ठापना हुई।


बौद्धधर्म के विकासकाल में कला और साहित्य के विविध रुपों में देवियों का उल्लेख मिलता है। जातक कथाओं में दिक्‌पाल, देवियों, देवकन्याओं, अप्सरा-किन्नरियों, नाग कन्याओं, यक्षणियों और प्रेतनियों के वर्णन भी मिलते हैं। बौद्धों ने भौतिक वस्तुओं, वैश्विक तत्त्वों, वर्णमाला के वर्णों, वाड्‌मय, दिशाओं और मानवी इच्छाओं को तक देवीदेवताओं के नाम दे दिए हैं साथ ही आसन-आयुध तक दिए हुए हैं। छः दिशापाल, रक्ष देवता पांच इनके अलावा रंगभेदानुसार असंख्य तारादेवीयां। आठ गौरी वर्ग में हैं। चार नृत्यदेवता, चार प्रकाश देवता, चार पशुमुखी देवता (घोडा, सुअर, सिंह) और चार डाकिणी हैं। सांची की कला में विभिन्न यक्षणियों एवं गजलक्ष्मी का अंकन है। बौद्धगया की वेदिका पर भी गजलक्ष्मी का चित्रण है। अमरावती स्तूप में गंगा-यमुना का वर्णन मिलता है। गांधार की बौद्ध कलाओं में नागियों और किन्नरियों का अंकन सामान्यतया हुआ है साथ ही मायादेवी हारीती, पृथ्वीदेव भी उत्कीर्ण की हुई मिलती है। समाविष्ट होने की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे अनेक अवस्थाओं से गुजरते हुए हुई है और यह हिंदूधर्म का ही प्रभाव है। ऐसी अवस्था में तो यही कहा जा सकता है कि हिंदू भी बौद्ध ही हैं और बौद्ध हिंदू।

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