Sunday, July 29, 2012

एकात्मकता - विज्ञानवादी दृष्टिकोण का प्रतीक - श्रावणमास

हिंदू पचांग में जिसे श्रावण मास कहा गया है वह रिमझिम फुहारों का महीना है। चैत्रमास से पांचवा मास श्रावणमास होता है। इस मास की पूर्णिमा को आकाश में श्रवण नक्षत्र का योग बनने के कारण इस मास को श्रावणमास कहा जाता है। इसी मास से चातुर्मास आरंभ होता है जिसका धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व होकरइसे ईश्वर भक्ति, अध्यात्म का काल भी कहते हैं। इस चातुर्मास की कालावधि में जो श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक चार मास आते हैं उन्हीं में हिंदुओं के अनेक त्यौहार आते हैं। इस दृष्टि से श्रावण यानी त्यौहारों का राजा। भारत की विविध जातियों के प्रत्येक वर्ग का आनंदोत्सव, एकात्मकता, विज्ञानवादी दृष्टिकोण का प्रतीक है यह श्रावण का महीना। वस्तुतः भारत में मनाए जानेवाले सभी त्यौहारों के मूल में इस देश की कृषिप्रधान संस्कृति है, प्रकृति से तादात्म्य बनाए रखना है।

चातुर्मास के दौरान सूर्यदर्शन कम ही होते हैं साथ ही सृष्टि सौंदर्य चरम पर होता है। परंतु, इस काल में पाचनतंत्र दुर्बल हो जाता है इसलिए भारी भोजन शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हो जाते हैं ऐसा आहार शास्त्र विशेषज्ञों का कहना होने के कारण प्याज, लहसुन जैसे मसालेदार पदार्थ न खाने की प्रथा का पालन किया जाता है। कृषिप्रधान देश होने के कारण आनेवाले महीनों में कृषिकार्यों में शारीरिक व्याधियों के कारण बाधा न आए इसलिए इन महीनों में इस प्रकार की प्रथा रुढ़ हुई होगी। इन मासों में आनेवाले त्यौहारों में नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी जैसे त्यौहार प्रमुख होकर श्रावण यानी सावन का महीना शिवोपासना का महीना माना जाता है।

श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था और उसमें से निकले हलाहल का पान आदिदेव शंकर ने किया था इसलिए इस मास के सोमवार को शिवजी की पूजा की जाती है। प्रत्येक शिव मंदिर में विराजमान नंदी, वृषभ यानी बैल। इस बैल का कृषि कार्य में बहुत महत्व होने के कारण महाराष्ट्र में श्रावण अमावस्या को बैल की पूजा कर, उसे उत्तम भोजन करवा काम से विश्राम दिया जाता है।  इसके पीछे उसके कष्टों का भान कृषक को है यह दर्शाने का प्रतीक है। महाराष्ट्र के अनेक जिलों में बैलों को सजाकर उनकी शोभायात्राएं  निकाली जाती हैं। बंगाल और गुजरात में भी बैलों का त्यौहार मनाया जाता है।

सावन के महीने की शुक्ल पंचमी को मनाया जानेवाला त्यौहार है नागपंचमी। जो लोगों को नागों की रक्षा का संदेश देता है। इस दिन बांबी और नाग की पूजा कर दूध का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। नाग और अन्य अनेक जंगली प्राणियों को डर के कारण लोग मार डालते हैं। ये प्राणी प्रकृति का संतुलन बनाए, टिकाए रखने का कार्य सतत करते रहते हैं। इसलिए पर्यावरणविद्‌ व वन्य पशु संरक्षण कार्यकर्ता, प्रेमी इनके संरक्षण के लिए और लोगों में इन प्राणियों के प्रति योग्य जानकारी उपलब्ध हो इसके लिए आंदोलनरत हैं। नाग को नहीं मारेंगे यह निश्चय कर नाग की पूजा करना योग्य है इस दृष्टि से पर्यावरणवादी इस उत्सव के संबंध में विचार करें इस प्रकार का प्रतिपादन कुछ सामाजिक कार्यकर्ता कर भी रहे हैं। कृषि को हानि पहुंचाने का काम करनेवाले चूहों का नाश करने के लिए नाग की आवश्यकता है इसलिए इनकी रक्षा करने की आवश्यकता है। नाग की चमडी सुंदर होती है, औषधी भी है, कुछ सापों का विष भी अत्यंत उपयोगी होने के कारण मूल्यवान होता है। इसलिए नागों की हत्या न हो इसके लिए भी विज्ञानवादी प्रयत्नरत हैं। इन प्रयत्नों को देखते हुए इस त्यौहार की ओर पर्यावरणवादी दृष्टिकोण से देखने का झुकाव निरंतर बढ़ रहा है।
वर्तमान में इस श्रावण मास को केवल उपवास, जप-तप, पोथी-पठन आदि तक सीमित न रखते इस मास के अन्य विज्ञानवादी दृष्टिकोणों को समझ इस मास का आधुनिक जीवन से सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न करें तो, वह निश्चय ही अधिक योग्य होगा। 


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