Saturday, July 7, 2012

विश्व में तहलका मचानेवाली छलांग - वीर सावरकर की छलांग

8 जुलाई 2010 को वीर सावरकर द्वारा जब उन्हें लंदन से बंदी बनाकर भारत लाया जा रहा था उस समय समुद्र में छलांग लगाकर तैरते हुए मार्सेलिस के सागर तट की दीवार पर चढ़कर मार्सेलिस बंदरगाह पर जा पहुंचने का जो वैश्विक कीर्तिमान उन्होंने बनाया था और उनके इस साहसी कार्य के कारण पूरा विश्व हिल उठा था तथा वैश्विक प्रतिक्रिया होकर  पूरे विश्व का ध्यान भारत में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम की ओर आकर्षित हुआ था। इस घटना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में वहां जो समारोह आयोजित होने जा रहा है के कारण वर्तमान में फ्रांस के पर्यटन केंद्र के रुप में विख्यात बंदरगाह 'मार्सेलिस" चर्चा का केंद्रबिंदु बन गया है।

परंतु, सावरकरजी का समुद्र में छलांग लगाकर मार्सेलिस पहुँचने का उपक्रम ब्रिटिशों द्वारा उन्हें अवैध तरीके से पुनः हिरासत में लेने के कारण विफल भले ही रहा हो फिर भी उनकी इस छलांग के कारण पूरे विश्व में तहलका मच गया और जो तीव्र वैश्विक प्रतिक्रिया हुई उसका फ्रांस की आंतरिक राजनीति पर दूरगामी परिणाम हुआथा और आगे चलकर फ्रांस के प्रधानमंत्री को इस मामले में इस्तीफा देना पडा था। पूरे विश्व के स्वतंत्रता प्रेमी जनमत ने इसे नापसंद किया। सावरकरजी को फिर से फ्रांस सरकार को सौंपा जाए की मांग पूरे फ्रांस ही नहीं अपितु पूरे विश्व में हुई। इस तीव्र प्रतिक्रिया से फ्रांस के सार्वभौमत्व को आंच पहुंची और जो आंदोलन फ्रांस में हुआ उसका समर्थन इस प्रकार से निम्न व्यक्तियों ने किया ः-

1. कार्ल मार्क्स का पोता जीन लांग्वे और उसके प्रचंड पाठक वर्ग वाले समाचार पत्र 'एल ह्यूमिनिटी"।
2. मार्सेलिस का महापौर और फ्रांस का महान समाजवादी नेता ज्वारे।
3. मानव अधिकार संघ के अध्यक्ष फ्रांसिस इ प्रेसेन्से।
4. फ्रांस के सभी छोटे-बडे समाचार पत्र।
5. इंग्लैंड के समाचार पत्र 'हेरल्ड ऑफ रिवोल्ट" और उसके युवा संपादक गाय-ए-अल्ड्रेड (इस संपादक को सावरकरजी की मुक्ति के लिए जो प्रचार और प्रयत्न किए उसके कारण देड वर्ष का कारावास भी भुगतना पडा) और सोशल डेमोक्रेटिक दल के प्रमुख हिंडमन और मुखपत्र 'जस्टिस" ने तो ब्रिटिश सरकार की कठोर आलोचना शुरु कर दी। सावरकरजी की मुक्तता की मांग इंग्लैंड के 'द मार्निंग पोस्ट" और 'दे डेली न्यूज" ने भी की।
6. सावरकर मुक्तता समिति लंदन।
7. स्पेन के ब्रिटेन स्थित उप राजदूत मॉनशूर पीएरॉ, लेटिन अमेरिका पेराग्वे देश के राजदूत मॉन्सूर जॉमबा और पुर्तगाल देश के राजदूत।
8. यूरोप के सभी बडे समाचार पत्र। इनमें स्वित्जरलैंड से जर्मन भाषा में प्रकाशित 'डेर वाण्डरर" भी शामिल हैं।
9. यूरोप की सोशलिस्ट कांफ्रेन्स के सितंबर 1910 के अधिवेशन में कोपनहेगन में आयोजित अधिवेशन में सावरकरजी को स्वतंत्र कर फ्रांस भेजने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। इस प्रस्ताव के सूचक थे विश्वविख्यात कम्यूनिस्ट क्रांति के महानायक ब्लादिमिर लेनिन। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि 'हम मानव मात्र की स्वतंत्रता की मांग करते हैं; इस कारण भारत की स्वतंत्रता के लिए लडने के सावरकरजी के अधिकार को हमारा पूर्ण समर्थन है। फ्रेंच गणतंत्र ने अपने सार्वभौमत्व की लज्जा रक्षण के लिए तो भी सावरकरजी की स्वतंत्रता का आग्रह करना चाहिए।"
10. जापान के डाएट सदस्य मोयो।
11. सर हेनरी कॉटन - ये नरमपंथी थे। सर बीपीनचंद्र पाल के घर में 1911 के नववर्ष समारोह में उन्होंने कहा कि 'सामने की दीवार पर सावरकरजी का चित्र है, सावरकरजी के बौद्धिक धैर्य और स्वदेश भक्ति की मैं प्रशंसा करता हूं। सावरकरजी को विदेश में आश्रय लेने का अधिकार है। मुझे आशा है कि सद्‌भाव और सद्‌हेतु इनका ही प्रभाव पडेगा। ब्रिटिश सरकार सावरकरजी को फ्रेंच सरकार को सौंपेगी।" हेनरी कॉटन का यह भाषण जब ब्रिटेन के समाचार पत्रों में छपा तब 'लंदन टाईम्स" ने लिखा कि 'कॉटन की सर पदवी छिन ली जाना और उनका निवृति वेतन भी बंद कर दिया जाना चाहिए।"
12. मॅडम कामा, पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा।
13. जर्मनी के सभी समाचार पत्रों ने भी सावरकरजी की अवैध हिरासत की तीव्र आलोचना की। 'बर्लिन पोस्ट" ने इसे अंतर-राष्ट्रीय कानून की बलि निरुपित किया।
14. बेल्जियम और अन्य राष्ट्र।

समाचार पत्रों द्वारा लगातार की गई तीव्र आलोचना के कारण ब्रिटेन को झुकना पडा और सावरकरजी की फ्रांस की भूमि पर किए गए अवैध हिरासत के मामले को अंतर राष्ट्रीय हेग न्यायलय को सौंपने का करार करना पडा। सावरकरजी के इस महान पराक्रम से पूरी दुनिया हिल उठी और भारत को भी विश्व प्रसिद्धि मिली।
ऐसे महान पराक्रमी वीर सावरकरजी के 26 फरवरी 2003 के पुण्य स्मरण दिवस पर भारत की संसद में तैल चित्र को प्रतिष्ठित कर उनके प्रति समग्र राष्ट्र की श्रद्धा अर्पण करने के अवसर पर अत्यंत श्रद्धा एवं प्रसन्नता से श्री एपीजे कलाम राष्ट्रपतिजी ने वीर सावरकरजी की ऐतिहासिक समुद्र छलांग का उल्लेख कर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार प्रकट करते हुए कहा था कि ''किसी व्यक्ति के द्वारा राष्ट्रहित महान कार्य किए जाने पर, राष्ट्र को चाहिए कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य को देखें, उसके द्वारा किया गया छोटा काम भी यदि राष्ट्र की दृष्टि से बडा हो तो उस काम का सम्मान करना मेरा कर्तव्य है। अतः आज की मेरी उपस्थिति कर्तव्य के रुप में है।""

स्व. इंदिरा गांधीजी की सरकार ने वीर सावरकर को एक महान क्रांतिकारी मानते हुए 25 मई 1970 को सावरकरजी पर एक डाक टिकट जारी किया था। डाक तार विभाग भारत शासन द्वारा उस समय प्रकाशित एक पम्पलेट में वीर सावरकर की संक्षिप्त जीवनी प्रकाशित की गई थी और उसके अंतिम पैरा में लिखा था - 'डाक तार विभाग भारत के इस महान सपूत की स्मृति में डाक टिकट जारी करते हुए अपने-आपको गौरान्वित महसूस कर रहा है।" स्व. इंदिराजी के मन में वीर सावरकरजी के लिए कितनी श्रद्धा थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब मुंबई में सावरकरजी का राष्ट्रीय स्मारक बनाए जाने की घोषणा हुई तो उन्होंने अपने व्यक्तिगत बैंक खाते से इस स्मारक के लिए ग्यारह हजार रुपये दिए थे। श्रीमति इंदिराजी के शासनकाल में ही फिल्मस डिवीजन की ओर से वीर सावरकर पर 1983 में एक अनुबोध पट निकाला था जिसे 1984 में बेस्ट डॉक्यूमेंटरी ऑफ द इयर का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था।

महाराष्ट्र के भू.पू. मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे का भी सावरकर प्रेम जगजाहिर है। नागपूर में सावरकर की प्रतिमा का अनावरण सुशील कुमार शिंदे के ही मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ था। सोनियाजी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते महाराष्ट्र के महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री  विलासराव देशमुख ने वीर सावरकर पर बनी फिल्म को राज्य में 13 नवंबर 2001 को टैक्स फ्री घोषित कर अपना सावरकर प्रेम प्रदर्शित किया था। महाराष्ट्र के कांग्रेसी ही मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण ने 15 अगस्त 1957 को वीर सावरकर का सम्मान किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि वे अपनी किशोरावस्था से ही वीर सावरकर से अत्यधिक प्रभावित थे और उनके दर्शन करने का जुनून उन पर इस कदर सवार था कि जब सावरकर रत्नागिरी जेल में नजरबंद थे तो वे उनसे मिलने वहां जा पहुंचे थे। कांग्रेसियों का सावरकर प्रेम सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहा। सन्‌ 1965 में महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने वीर सावरकर को मासिक सम्मान राशि देने की भी शुरुआत की। इसीको देखते हुए 12 मार्च 1965 को लोकसभा में पूरक प्रश्न के रुप में यह मांग उठाई गई कि केंद्र सरकार भी महाराष्ट्र सरकार की तरह ही उनका सम्मान करे। उस समय संसद में मौजूद सांसद आबिद अली  ने इसका विरोध किया तो कांग्रेस सहित सभी दलों के सांसदों का रोष आबिद अली पर फूट पडा। सभापति डॉ. जाकिर हुसैन ने भी आबिद अली के विरोध को नजरअंदाज करते हुए सभी सांसदों की सहमति से वीर सावरकर को रु. 2000 तदर्थ अनुदान के रुप में दिए जाने का आदेश दिया था। स्मरण रखने योग्य बात यह है कि उस समय केंद्र में सरकार कांग्रेस की ही थी।

पूर्व उप राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा ने मुंबई में निर्मित सावरकर स्मारक का उद्‌घाटन किया था और उन्हें इस राष्ट्र का महान सपूत करार दिया था। उन्होंने उस आयोजन में अपने भाषण में कहा था कि वीर सावरकर द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए किया गया कार्य महान और स्मरणीय है तथा ऐसे व्यक्ति का स्मारक होना अत्यंत आवश्यक था। उन्होंने अपने भाषण के दौरान यह भी कहा था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी कई अवसरों पर वीर सावरकर से ही प्रेरणा ली थी। तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा ने तो यहां तक कहा था कि वीर सावरकर के विचार संपूर्ण राज्य क्रांति और सामाजिक क्रांति के आधार हैं।

24 दिसंबर 1960 को सावरकरजी के सम्मान में मनाए गए मृत्युंजय दिवस पर जाने-माने समाजवादी नेता एस.एम. जोशी ने कुछ यूं कहा था - 'सावरकर ने भारत की संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता की घोषणा जब की थी तब मैं किशोरावस्था में था और मुझे उससे स्फूर्ति प्राप्त हुई थी। मैंने उन्हीं दिनों एक पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें लिखा था कि 'सावरकरी बाना" का तेज आज भी नष्ट नहीं हुआ है। सावरकरजी की विचारधारा का प्रभाव लाखों देशवासियों पर पडा। सावरकर भारत की स्वतंत्रता का संदेश देनेवाले पहले नेता हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता के संदेश के साथ ही सावरकरजी ने सामाजिक कुरीतियों पर अत्यंत निर्भीकता से कठोर प्रहार किए थे।"

शरद पवार जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब 28 मई 1989 को संपन्न हुए सावरकर स्मारक के उद्‌घाटन अवसर पर उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि वीर सावरकर ने अपने सशस्त्र संघर्ष से महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन को धारदार बनाया। उन्होंने स्मारक को स्वतंत्रता के बाद पैदा पीढ़ी का इस महान स्वतंत्रता सैनानी के प्रति आभार प्रदर्शन बताया। सन्‌ 2001 में मुंबई के सावरकर स्मारक में आयोजित एक कार्यक्रम में शरद पवार ने न सिर्फ वीर सावरकर पर लिखी पुस्तक का विमोचन किया बल्कि उनके विचारों की भी पैरवी की। इन्हीं शरद पवार ने वीर सावरकर के पच्चीसवें पुण्य स्मरण पर मुख्यमंत्री रहते 22 अप्रैल 1993 को उनकी सरकार द्वारा जिला नासिक ग्राम भगूर सावरकर जन्मस्थान सावरकर वाडा और उससे लगे हुए घर क्र. 424, 425 और 426 के मूल्य पेटे 9,35,063 रुपये चूकाकर यह संपत्ति खरीदकर 'राष्ट्रीय स्मारक" बनाने की दृष्टि से महाराष्ट्र राज्य पुरातत्त्व विभाग को सौंप दी। जिसको बाद में और 23 लाख रुपये व्यय कर वीर सावरकर की 115वीं जयंती पर 28 मई 1998 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने राष्ट्र को समर्पित किया।

देश के दो महान सपूत गांधीजी और सावरकरजी की पूरे जीवन में दो बार ही भेंट हुई थी और दोनो ही बार उत्सुकता गांधीजी ने ही दर्शाई थी। पहली भेंट 1909 में लंदन में जहां क्रांतिकारियों के आग्रह पर उनके द्वार आयोजित दशहरा समारोह में कार्यक्रम की अध्यक्षता गांधीजी ने स्वीकार की थी। कहते हैं कि गांधी सावरकर में अहिंसा और सशस्त्र संघर्ष विषय पर तीन दिन तक भरपूर चर्चा हुई पर दोनो अपने-अपने विचारों पर अडिग रहे। दूसरी भेंट रत्नागिरी में जब वीर सावरकर नजरबंद थे। यहां वीर सावरकर से मिलनेवाली अन्य उल्लेखनीय हस्तियों के नाम हैं आगे चलकर जो लोकसभा के अध्यक्ष बने श्री जी.वी. मावलंकर, यशवंतराव चव्हाण, एस.के. पाटिल, अच्युतराव पटवर्धन आदि गांधीवादी। 1937 में जब सावरकरजी पूर्ण बंंधन मुक्त किए गए तब भारत के गवर्नर जनरल वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राजगोपालाचारी ने वीर सावरकर की जीवनी लिखी। सरदार भगतसिंह और नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने वीर सावरकर रचित देशवासियों को क्रांतिप्रवण करनेवाला ग्रंथराज '1857 का प्रथम स्वातंत्र्य समर" गुप्त रुप से प्रकाशित करवा कर प्रसारित करवाया था।

पुणे के 'ऋण विमोचन ट्रस्ट" द्वारा युद्धनीति तथा रक्षा तैयारियों से संबद्ध अनुसंधान के क्षेत्र में मौलिक अनुदान देनेवाली राष्ट्रीय व्यक्ति या संस्था को दिए जानेवाले 'वीर सावरकर पुरस्कार" से वर्ष 1998 में डॉ एपीजे कलाम को सम्मानित किया गया था। वीर सावरकर पुरस्कार से अभिभूत भारत रत्न सम्मान से मंडित देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एपीजे कलाम ने अपने उद्‌बोधन में बडे ही मुक्त ह्रदय से यह रहस्योद्‌घाटन किया था कि आपने अपनी रचना 'इंडिया 2020 ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम" ग्रंथ में 'स्ट्रैंग्थ रिस्पेक्ट्‌स स्ट्रैंग्थ" (शक्ति ही शक्ति का सम्मान करती है) यह जो दार्शनिक वाक्य प्रस्तुत किया था, वह मूलतः वीर सावरकर का दिया हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी तरुणाई के दिनों में वीर सावरकर के त्याग एवं विचारों को पढ़कर वे अभिभूत थे और उन्होंने सावरकर साहित्य को पढ़ा है। इस कार्यक्रम में अतिथियों का परिचय ले. जनरल बी.टी. पण्डित (से.नि.) ने दिया, सावरकर पुरस्कार की जानकारी एडमिरल नाडकर्णी (से.नि.) ने देते हुए बतलाया कि वर्ष 1997 का पुरस्कार टाईम्स ऑफ इण्डिया के (फॉरेन अफेयर) कन्सल्टिंग एडिटर श्री सुब्रह्मण्यम को भारत के तत्कालीन मुख्य सेनाध्यक्ष जनरल शंकरराय चौधरी द्वारा दिया गया था। मानपत्र का वाचन श्री नाडकर्णी ने ही किया। तत्पश्चात थलसेनाध्यक्ष जनरल वेदप्रकाश मलिक ने पुरस्कार राशि रुपये एक लाख तथा स्मृतिचिन्ह (भारत के मानचित्र में वीर सावरकर की प्रतिज्ञा जिस पर 'जयोस्तुते" अंकित है) डॉ. कलाम को प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन एअर मार्शल सदानन्द कुलकर्णी ने किया था। 
 
ऐसे पूर्व इतिहास को देखते हुए सावरकरजी के इस महान कर्तत्व की दखल भारत सरकार द्वारा ली जाना चाहिए। सावरकरजी के इस अद्‌भूत पराक्रमी विश्व को चमत्कृत कर देनेवाली विश्व प्रसिद्ध छलांग की स्मृति चिरंतन रहे इसके लिए फ्रांस सरकार ने मार्सेलिस में स्मारक निर्माण के लिए स्थान भी 1998 में ही उपलब्ध करा दिया है। सर्वप्रथम स्मारक निर्माण के मुद्दे को उठानेवाले थे मुंबई के महापौर रमेश प्रभु और रा.स्व.से.संघ के वयोवृद्ध कार्यकर्ता श्री रामभाऊ बर्वे उन्होंने इस संबंध में सावरकर सेवा केंद्र विलेपार्ले (मुंबई) के माध्यम से मार्सेलिस नगर के महापौर के साथ पत्राचार किया और सफलता पाई। मार्सेलिस नगर के महापौर श्री जीन क्लाऊडे ने उनका प्रस्ताव स्वीकारते हुए उन्हें थ्रू प्रापर चैनल यानी भारत सरकार के माध्यम से प्रस्ताव भेजने को कहा। सा.से.केंद्र के श्री बर्वे और श्री प्रभु ने अटलजी से इस संबंध में अनुरोध किया। अटलजी ने यह मामला विदेश विभाग को सौंप दिया। परंतु, दुर्भाग्य कि भाजपानीत एनडीए ने एक पत्र न भेजा और भाजपा श्रेय से वंचित रही तथा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। परंतु, विश्व में तहलका मचा देनेवाली इस छलांग का यह शताब्दी वर्ष होने से यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया और लोकसभा में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई यह बात अलग है कि अय्यर जैसे विघ्न संतोषी कुछ लोगों ने विरोध किया। परंतु, कई कांग्रेसी सावरकरजी पर श्रद्धा रखते हैं स्मारक स्थापित करने के प्रति उत्सुक हैं। इसलिए सावरकर स्मारक समिति भगूर, जिला नासिक (महाराष्ट्र) के पदाधिकारियों की विदेश मंत्री श्री एस.एम. कृष्णा के साथ इस संबंध में बैठकें भी हो चूकी हैं और हम ऐसा सोचते हैं कि शायद कांग्रेस सरकार को सद्‌बुद्धि आ जाए। अगर सरकार स्वयं को इस राष्ट्रीय पुण्य से वंचित रखना चाहे तो रखे। परंतु, जनता गुरुवार 8 जुलाई 2010 को फ्रांस के सागर तट पर मार्सेलिस बंदरगाह में बहुत बडी संख्या में उपस्थित रहकर वीर सावरकर का जयगान गूंजाते हुए उन्हें श्रद्धांजली देनेवाली है। उनका नेतृत्व करनेवालों में विख्यात महामहोपाध्याय श्री शंकर अभ्यंकर भी हैं। जिनका सहयोग अनेक ट्रेवल एजेंसियां करते हुए अपने साथ बडी संख्या में भारतीयों को ले जानेवाली हैं।

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