Friday, November 28, 2014

हिंदुस्थान ही नहीं सारा विश्व ही परेशान है ढ़ोंगी गुरुओं की महामारी से
रामपाल की भयानक करतूतों का पर्दाफाश होने के बाद समाज में तीव्र प्रतिक्रिया हुई जो कि स्वाभाविक भी थी। कई लोग यह प्रतिक्रिया देते नजर आए कि ऐसे पाखंडी साधु-महाराज, पीर-फकीर अपने घिनौने कारनामे केवल इस देश में ही अंजाम दे सकते हैं। मानो विदेशों में ऐसे पाखंड फैलानेवाले संप्रदाय, धर्मगुरु हैं ही नहीं या ऐसा वहां कुछ होता ही नहीं है। यह एक बहुत बडी गलतफहमी है। अंधविश्वास, अंधश्रद्धा हर देश में व्याप्त है जो केवल कम या अधिक हो सकती है। दूर क्यों जाएं? हमारे पडौसी देश पाकिस्तान में ही पीरों ने गजब की उधम मचा रखी है। जो क्रूर, अमानवीय, अत्याचारी कुकर्मों द्वारा भयानक अंधेरगर्दी उन्होंने मचा रखी है वह जानना हो तो, तहमीना दुर्रानी की 'ब्लॉस्फेमी" पढ़ लें, रोंगटे खडे हो जाएंगे। 

तहमीना दुर्रानी पाकिस्तानी पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री मुस्तफा खर की आठवीं पत्नी थी और एक सुंदरी से विवाह करने के लिए तहमीना को खर ने तलाक दे दिया था। इन पीरों की करतूतों का विवरण तहमीना ने 'ब्लॉस्फेमी" में किया है। तहमीना की लेखनी के माध्यम से पीर की पत्नी बार-बार कहती है कि पीर अल्लाह का नाम लेकर खतरनाक शैतानों का जीवन जीता है। हालांकि यह सब एक उपन्यास की तरह लिखा गया है लेकिन तहमीना पाकिस्तान की ऐसी पहली लेखिका है जिसने इन पीरों का कच्चा चिट्ठा खोला है। ये पीर किस प्रकार राजनीति-सत्ताकेंद्रों को प्रभावित करते हैं और किस प्रकार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तक इन पीरों का आशीर्वाद लेने के लिए इनके डेरों पर जाते हैं यह सब हमें पता चलता है। यह पूरी पुस्तक पढ़कर जुगुप्सा ही पैदा हो जाती है कि  आखिर ये पीर इंसान हैं या शैतान। जो अपने विरोधियों को इस्लाम का दुश्मन बडी आसानी से करार देते हैं। अब तो कई पाकिस्तानी लेखक इन पीरों को बेनकाब करने के लिए आगे आ रहे हैं। परंतु, इन पीरों की दुकानें बदस्तूर जारी ही हैं। पाकिस्तान के कई अमीर, उद्योगपति, व्यापारी, जमींदार और मंत्री तक इन पीरों के अनुयायी हैं।

संप्रदायों के गुरुओं के इंफेक्शन से उन्नत, विज्ञान-बुद्धिवाद से लैस कहे जानेवाले पाश्चात्य देश तक पीडित हैं। स्वीटजरलैंड के आल्प्स पर्वतीय क्षेत्र के चेरी नामक गांव में अक्टूबर 1994 में चर्च जैसे दिखनेवाले एक फार्म हाउस से पुलिस ने जली हुई लाशें निकाली थी। कुछ के चेहरे प्लास्टिक की थैली में लपेटे हुए थे एवं कुछ को गोली मारी गई थी। 1994 से 1997 तक स्वीटजरलैंड के अलावा कनाडा के एक शहर में भी 74 लोगों ने अपनी जान दी। ये सभी 'ऑर्डर ऑफ सोलर टेंपल" नामक पंथ के सदस्य थे। इनमें कुछ आत्महत्याएं भी थी तो कुछ हत्याएं।

अमेरिका के केलिफोर्निया के 'हैवन्स गेट" इस संप्रदाय के 40 अनुयायियों ने इस शरीर से मुक्ति पाने के लिए अपनी जान दे दी जिससे कि वे आत्मा को एक अमर यात्रा पर ले जा सकें। कुछ पुरुषों ने तो वंध्याकरण तक करवा लिया था जिससे मृत्यु पश्चात उन्हें लिंगभेद से मुक्ति मिल जाए। टेक्सास राज्य के वाको शहर के समीप एक पशु पालन केंद्र को अमेरिकी सेना ने इस जानकारी पर कि यहां ईसाई धर्म के 'सेवन्थडे एडवेंस्टिस" पंथ से अलग होकर नया पंथ बनानेवाले और स्वंय को पापी परमेश्वर करार देनेवाले डेविड कोरेश और उनके शिष्य छुपे हुए हैं। डेविड का कहना था कि उसके संप्रदाय में शामिल होने के लिए कुंआरी युवतियों को शरीर संबंध स्थापित करना अनिवार्य है। वास्तव में ऐसे धर्मवादी नेता अपनी सम्मोहक सेक्स अपील से अनुयायियों को करीब-करीब ज्यों का त्यों वश में कर लेते हैं और वे असहाय हो उनके बताए रास्ते पर चल पडते हैं। सरकार को उसकी अश्लीलता पर पहले से ही संदेह था इसलिए सेना ने उसकी घेराबंदी कर दी। उसने अपने शिष्यों को बतलाया कि गोली और बम से मारे जाने पर वे सीधे 'स्वर्ग" जाएंगे। अंततः सारे के सारे 84 लोग गोलाबारी और बमबारी में मारे गए।

इसी प्रकार का एक और वाक्या गुआना में भी हुआ था जहां जिम जोन्स नामक व्यक्ति ने स्‌न 1955 में स्थापित 'पीपल्स टेंपल" में 18 नवंबर 1978 को उसने अपने समस्त शिष्यों को आत्मघात का क्रांतिकारी निर्देश दिया था। जिसका टेप मिला था। इस टेप में वह वार्तालाप था जिसमें उस सामूहिक आत्महत्या का जिक्र था जिसके द्वारा उन लोगों ने जहर पीकर या अन्य तरीके से आत्महत्याएं की थी। उनको प्रेरित करनेवाला व्यक्ति था जिम जोन्स जिसने उनसे कहा था कि हमें गरिमा के साथ मरना है। अनुयायियों के रोने पर उसने कहा ऐसे रोकर मरेंगे तो हमें सामाजिक कार्यकर्ता या साम्यवादी के तौर पर कभी भी याद नहीं किया जाएगा। इन वीभत्स लाशों के पाए जाने पर पूरी दुनिया में खलबली मच गई थी।

क्रिश्चनिटी में भी अनेक पंथ-संप्रदाय हैं। रेवरंड सून म्यूंग मून को उनके अनुयाय साक्षात ईश्वर मानते हैं। यह कोरियन ईसाई गुरु एक धार्मिक नेता होने के साथ मीडिया मोगल (प्रभावशाली व्यक्ति) भी है। इसके अनुयायियों को 'मूनीज" कहते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की जीत का श्रेय भी इसने लिया है। यह संप्रदाय गुप्त रुप से काम करता है और खतरनाक रुप से दिमाग को नियंत्रित करनेवाले संप्रदाय के रुप में जाना जाकर इसके लाखों अनुयायी और इसके पास करोडों डालर हैं। इसी तरह का एक और चर्च है 'यूनिवर्सल एंड ट्रायफंट" (कट) (2जुलाई 1973) इस चर्च की संस्थापक है एलिजाबेथ क्लेअर प्रोफेट (पैगंबर) के प्रोफेट पति मार्क ने 'समीट लाइटहाउस" की स्थापना की थी जो अब 'कट" का ही अंग है। यह संप्रदाय चर्चा में तब आया था जब इसने  80 के दशक में परमाणु युद्ध की भविष्यवाणी की थी।

इस पंथ के बारे मेें प्रसिद्ध विज्ञान लेखक रान हबर्ड ने 1950 में एक पुस्तक लिखी थी जिसकी लाखों प्रतियां बिकी थी। उनका कहना है लाखों डालर्स कमाने का सबसे बढ़िया तरीका है नए धर्म की स्थापना करना। जिस प्रकार से पत्रकार, राजनेता, समाजसेवक बनने के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है, उसी प्रकार से 'गुरु" बनने के लिए भी किसी निर्धारित योग्यता की आवश्यकता नहीं है। धन कमाने का यह 'इंस्टंट" माध्यम है। अच्छा व्यक्तित्व, वाक्‌चातुर्य और थोडा सामान्य ज्ञान का होना गुरु बनने के लिए पर्याप्त है। अशिक्षित, अज्ञानियों के अलावा आज की इस भागमभाग भरी दुनिया में तनावों, मानसिक चिंताओं से त्रस्त लोग भी बहुत हैं और जिन्हें जहां कहीं भी थोडी शांति मिलने की संभावना नजर आती है वहां वे खींचे चले जाते हैं। बस इन गुरुओं को और इन चेलों को भी ऐसों की ही तो तलाश रहती है बस इस चक्कर में सभी मालोमाल हैं। 

उपर्युक्त कथित घटनाक्रमों पर से ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सभी धर्मों में ऐसे ही शैतानी गुरु होते हैं। जो अपने शिष्यों-अनुयायियों का अवांछित शोषण विभिन्न तरीकों से करते हैं। अच्छे-बुरे लोग, धर्मगुरु और उनके अच्छे-बुरे कार्य भी हर धर्म में करनेवाले होते ही हैं। लेकिन इन राक्षस गुरुओं व इनके इन अवांछित क्रियाकलापों के कारण अच्छे जनहितैषी कार्य करनेवाले धर्मगुरुओं के कार्यों में जरुर बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं और शक्की मिजाज लोग इनके अच्छे कार्यों को भी गलत नजरों से देखने से बाज नहीं आते।
समाज को इन तथाकथित अवतारी और चमत्कारी गुरुओं से सावधान करने के लिए सन्‌ 1995 में दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय रेशनलिस्ट कांफ्रेस भी हो चूकी है। जो जनता में जागरुकता लाने का कार्य कर रही है। वैसे भारत में वैदिककाल से ही वेद-उपनिषदों को माननेवाले तो लोकायतिक (चार्वाकवादी) दोनो ही रहे हैं। फिर भी हम अंधश्रद्धाओं में डूबे हुए हैं। समाज को हिला देनेवाले खुलासों द्वारा जो अवैज्ञानिक क्रियाकलाप और अंधश्रद्धाओं का उदात्तीकरण पूरे विश्व में चल रहा है की जानकारी देने के लिए हैरी एडवर्डस्‌ जो ब्रिटिश सिक्रेट एजेंसी में थे ने सन्‌ 2006 में एक पुस्तक 'स्केप्टिक्स गाईड" में 107 अध्यायों के द्वारा अंधश्रद्धाओं की अच्छी खबर ली है। इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में लेखक के अंधश्रद्धा और वैज्ञानिकता के परिणाम इस विषय में प्रस्तुत विचार चिंतनीय होकर गहरी तंद्रा में लीन समाज की आंखे खोल देने के लिए पर्याप्त हैं। 

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