Friday, May 29, 2015

18 मई स्पूतनिक स्थापना दिवस विशेष
स्पूतनिक - निर्भीक पत्रकारिता ही जिसका मिशन है

कोई भी व्यक्ति या संस्था, आदि जब एक लंबे समय तक किसी क्षेत्र में अपना अस्तित्व बनाए रखती है तो उसके बारे में लोगों में एक जिज्ञासा, कुतुहल निर्मित हो जाना स्वाभाविक ही होता है कि, आखिर यह कौन है, क्या है? इसकी गतिविधियां क्या हैं? इसकी सोच-विचारधारा क्या है? इससे कौन-कौन जुडे हैं? इसके संस्थापक कौन हैं? आदि। वे उनके बारे में जानना चाहते हैं? यदि वह समाचार पत्र हुआ तो, यह जिज्ञासा-कुतुहल और भी बढ़ जाता है। क्योंकि, हर पढ़ा-लिखा, विचारवान व्यक्ति भले ही कितना भी व्यस्त क्यों ना रहता हो किसी ना किसी समाचार पत्र को पढ़ता ही है और उसमें छपे समाचारों-लेखों, कभी-कभी विशिष्ट समाचार या विषय पर लिखे गए लेख को थोडा बहुत ही क्यों ना हो पर पढ़ता अवश्य है। उस पर विचार भी करता है, गाहेबगाहे उस पर चर्चा भी करता है या कम से कम कहीं चल रही चर्चा को सुनता तो भी है। 

इन सब पर से वह उस समाचार पत्र के बारे में एक विशिष्ट धारणा बना लेता है और जब उस समाचार पत्र से संबंधित व्यक्ति जैसे कोई पत्रकार या लेखक, आदि से मिलता है तो वह अपनी जिज्ञासा-कुतुहल को दबा नहीं पाता और उस समाचार पत्र के संबंध में उसकी धारणा क्या है? वह उसके बारे में क्या मत रखता है, उसे प्रकट करता है। वह सब जानने कि कोशिश करता है जिनका कथन मैंने ऊपर किया है। कई बार वह भ्रांत धारणाएं कोई विशिष्ट समाचार या लेख पढ़कर भी बना लेता है। मेरा तो अनुभव ऐसा भी है कि, कई लोग इतने अधिक पूर्वाग्रस्त होते हैं कि केवल किसी लेख का शीर्षक या कभी-कभी तो समाचार पत्र का नाम पढ़कर ही अपने पूर्वाग्रह के आधार पर उसके बारे में अपना मत बना लेते हैं और तत्काल उसके बारे में अपना द्वेष प्रकट करने से बाज नहीं आते। स्थानीय दैनिक समाचार पत्र जिसे वह रोज पढ़ता है उसके बारे में हो सकता है कि उसकी सोच ठीक हो, परंतु साप्ताहिक आदि जिन्हें वह हमेशा नहीं पढ़ता उसके बारे में कोई भ्रांत धारणा यदि उसने बना ली हो तो यह बात जरुर समझ में आती है। उसे दोष नहीं दिया जा सकता। दोषी तो वह तब होगा कि मौका मिलने पर भी वह इस दोष को दूर करने का प्रयास ना करे।

स्पूतनिक के संबंध में यही बात कही जा सकती है। इस संबंध में मेरा अनुभव यह है कि, मुझे कुछ लोग यह कहते मिले कि, अरे यह तो भाजपा विरोधी है तो, कुछ लोग सीधे कांग्रेस समर्थक ही घोषित कर देते हैं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि यह तो समाजवादी अखबार लगता है। इन पर मैं टिप्पणी करना नहीं चाहता क्योंकि इनमें से अधिकांश बगैर पढ़े, अधूरी जानकारी के बूते, बगैर किसी विश्लेषण के या पूर्वाग्रह के आधार पर तो कभी अंधश्रद्ध हो इस प्रकार के मत प्रकट करते हैं। इन लोगों को मेरा उत्तर एक ही होता है पहले पढ़ो, विश्लेषण करना सीखो, पूर्वाग्रह, अंधश्रद्धा छोडो फिर मुझसे बात करो। 

फिर मैं अपना मत प्रकट करते हुए उनसे कहता हूं कि, भई ये विशुद्ध पत्रकारिता है। ये किसी से बंधे हुए लोग नहीं हैं। उनकी नजरों में जो सच है जो उनके विश्लेषण, उन्हें प्राप्त सूचनाओं पर आधारित है उसे सामने लाने का प्रयास करते हैं। अपने पत्रकारिता धर्म का पालन बिना किसी संकोच के निर्भीक एवं निष्पक्ष रुप से करते हैं। जिस समाचार को छापने का साहस दूसरे समाचार पत्र या पत्रकार जुटा नहीं पाते उसे वे बिना किसी भय के छापने से हिचकिचाते नहीं। इस कारण स्पूतनिक में छपनेवाले समाचार या लेख लीक से हटकर होते हैं और साधारण सोचवाले लोगों के गले जल्दी से उतरते नहीं हैं। यह स्पूतनिक का तो दोष नहीं, इसे समझने की आवश्यकता है।

उदाहरणार्थ ः 14 से 20 अप्रैल 2014 में छपा 'वाजपेयी-मोदी की तुलना" यह विश्लेषणात्मक लेख पढ़ने के बाद क्या हर किसी को सोचने के लिए मजबूर नहीं कर देता । इसी प्रकार 2 से 8 जून 2014 के अंक में छपा यह लेख 'आडवाणी की बिदाई का समय नियति का फैसला" पढ़ें। इसमें लिखा यह कथन कि, 'लालकृष्ण आडवाणी नियती के फैसले को स्वीकार करके अपनी राजनैतिक बिदाई का रास्ता चुन लें तो अब उनका सम्मान बना रह सकता है। वे अपनी कैसी बिदाई चाहते हैं? इसका निर्णय उनको स्वयं को करना पडेगा।" कितना समयोचित था। इसी अंक में छपा यह दूसरा लेख 'केंद्रिय मंत्रीपरिषद के गठन में नरेंद्र मोदी ने किया 'जनादेश का अपमान" क्या इस प्रकार का लेख किसी समाचार पत्र ने छापा था। क्या यह सबसे हटकर नहीं था। 9 से 15 जून 2015 का '10 जनपथ की खामोशी ने किया कांग्रेस का बंटाधार" स्पूतनिक को कांग्रेसी कहनेवाले पहले पढ़ें फिर बोलें। वैसे सच तो यह है कि इस प्रकार की बातें करनेवाले पढ़ने का कष्ट उठाने में ही विश्वास नहीं करते तो विश्लेषण किस प्रकार करेंगे ऊपर वाले ने जबान दी है तो बस बोलते रहो।   

आज समाचार पत्रों की दुनिया में व्यवासियकता ने 100 प्रतिशत प्रवेश कर लिया है। इस पूंजीवादी दौर में भी स्पूतनिक इन सबसे दूर होकर अपने मिशन में लगा है। इस संबंध में स्पूतनिक के 56 वर्ष पूर्ण होने पर 19 से 25 मई 2014 के अंक में डॉ. गीता ने इसी सच को इस लेख 'स्पूतनिक की बेबाक लेखनी से थर्रा जाती हैं सरकारें" क्या यह सिद्ध नहीं करती हैं कि इसी पूंजीवादी पत्रकारिता के दौर में स्पूतनिक एक जगमगाता सितारा है। रामदेव बाबा का जब डंका बज रहा था कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था वह हिम्मत सिर्फ और सिर्फ स्पूतनिक ने जुटाई और रामदेव एक व्यवसायी है, उसके गुरु कहां लापता हैं? आदि कई प्रश्न आज से कई वर्ष पूर्व ही खडे कर दिए थे। जो अब जाकर कुछ माह पूर्व से सभी समाचार पत्र छापने लगे।

यह निर्भीकता, इस दबंगता के संस्कार स्पूतनिक ने अपने संस्थापक श्री दिनेशजी अवस्थी से पाए हैं। जिनका जन्म 12 जुलाई 1927 को हुआ था। वे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 1944-45 में वायुसेना में भी रहे। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्रकारिता 'नेशनल हैराल्ड" जिसके संस्थापक स्वंय नेहरुजी और संपादक चेलापतिराव थे जो उनके पत्रकारिता के गुरु भी रहे से प्रारंभ की।  म. प्र. का तत्कालीन लीडिंग दैनिक 'नवप्रभात" ग्वालियर संस्करण में भी कार्य किया। इसके बाद इंदौर आकर उस समय के सर्वाधिक प्रसारण संख्यावाले 'इंदौर समाचार" में भी पत्रकारिता की फिर 18 मई 1958 को 'स्पूतनिक" का पहला अंक प्रकाशित हुआ। इसके साथ ही वे देश भर की पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन कार्य करते रहे।

उनके दो कार्य जो वास्तव में मील का पत्थर हैं वह मैं सबके सामने लाना चाहता हूं जिससे बहुत से लोग अनजान होंगे। 1970 में चंबल के बीहडों के दस्युओं के पुनर्वास के विचार को ध्यान में रख महिनों तक बीहडों में स्कूटर पर अपने मित्र के साथ भटकते रहे और गंभीर अध्ययन के पश्चात जब उनके निष्कर्ष और अध्ययन सामग्री स्पूतनिक सहित दिल्ली के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई तो सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ और इसके बाद जयप्रकाश नारायण और सर्वोदयी सुब्बाराव के मार्गदर्शन में चंबल के इन खतरनाक दस्युओं (माधोसिंह, मोहरसिंह सहित लगभग 125 दस्युओं) ने आत्मसमर्पण किया।

आज शिरडी के साईबाबा के दरबार में दर्शनों के लिए घंटों कतार में लगना पडता है तब जाकर कहीं उनके दर्शन हो पाते हैं। परंतु, जब शिरडी के साईबाबा का माहात्म्य इतना न था उस जमाने में 1975-76 में शिरडी के साई बाबा के संबंध मेें विस्तृत अध्ययन एवं उनके संबंध में अधिकृत जानकारी जुटाने के उद्देश्य से  सपत्नीक दो माह तक शिरडी के आसपास के क्षेत्र का दौरा किया। इस कठिन प्रवास में उन्होंने पगडंडियों के रास्ते गांव-गांव घूमकर सूचनाएं एकत्रित की। इसी दौरान उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति से भी मुलाकात एवं चर्चा की जो साईबाबा के सान्निध्य में उनके अनुयायी के रुप में रह चूका था। इसके पश्चात वह सारा अध्ययन स्पूतनिक एवं तत्कालीन सुप्रसिद्ध अखबार 'ब्लिट्‌ज" में प्रकाशित हुआ और सर्वसाधारण लोगों के सामने साईबाबा का माहात्म्य सामने आया और साईबाबा के भक्तगणों की संख्या उसीके बाद बढ़ना प्रारंभ हुई।

इस प्रकार से स्पूतनिक की निर्भीक पत्रकारिता की यात्रा बगैर अपने उद्देश्य से भटके इस पूंजीवादी-व्यवसायिकता के दौर में भी यथावत जारी है और अब 18 मई को स्पूतनिक अपना 57 स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। जो अपनेआप में एक रिकार्ड है।

No comments:

Post a Comment