Friday, December 12, 2014

हैरान ना होइए विश्व भर में फैले हुए है अंधविश्वास

कर्नाटक के मंत्री जरकिहोली जिन्होंने राज्य विधान सभा में अंधविश्वास विरोधी विधेयक लाने में मुख्य भूमिका निभाई थी ने श्मशान में रात बीता एवं रात्री-भोज कर श्मशान में भूत-प्रेत रहते हैं, वह अपवित्र स्थान है, आदि मिथ तोडने एवं अंधविश्वास के खिलाफ जागरुकता लाने की दृष्टि से यह कार्य कर एक सराहनीय पहल की है। उनका यह कहना कि जब तक लोगों के मन से अंधविश्वास समाप्त नहीं होगा तब तक पिछडे तबके के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा एकदम सत्य है। परंतु, पिछडे ही नहीं तो अगडे समझे जानेवाले समाज के लोग भी अंधविश्वास में मुझे नहीं लगता कि कहीं किसी से कमतर पडते हैं। जो भी फरक होगा उन्नीस बीस का ही होगा। मंत्रीजी ने उठाया हुआ कदम कितना कठिन है इसका अंदाजा भी उन्हें होगा ही तभी उन्होंने यह कहा कि भले ही वह सत्ता में रहें या ना रहें अंधविश्वास के विरुद्ध उनकी लडाई चलती रहेगी। क्योंकि, जिस प्रकार से नकली बाबाओं-महाराजों की महामारी से पूरा विश्व ग्रस्त है उसी प्रकार से अंधविश्वासों की मारी यह पूरी की पूरी दुनिया ही है और अंधश्रद्धा तथा अंधविश्वासों के विरुद्ध आवाज उठानेवालों को हमेशा से ही तिरस्कार, अपमान व विरोध सहना पडा है। यहां तक कि जान का धोखा तक उठाना पडा है। 

 विश्व में कितने अंधविश्वास प्रचलित हैं इनके बारे में एक जर्मन ज्ञानकोश के 10 बडे खंड प्रकाशित हो चूके हैं। वास्तव में अंधविश्वासों का अस्तित्व तो मनुष्य के आरंभिक काल से ही है। इस बात के साक्षी हैं आदिवासियों में प्रचलित कई तरह के रीतिरिवाज एवं अजीबोगरीब क्रियाएं। सभ्य विश्व में भी अंधविश्वास व विचित्र मान्यताओं की भरमार है। जैसे कि कई बडे-बडे लोग यह मानते हैं कि फलां दिन सोचा हुआ कार्य नहीं होता या फलां-फलां दिन शुभ होता है या विशिष्ट दिवस पर खट्टा नहीं खाना चाहिए, फलां व्यक्ति को यात्रा प्रारंभ करते समय देख लें तो यात्रा स्थगित कर दें, आदि।

पश्चिमी लोग जो हमें अंधविश्वासी, डरपोक जाहिल कहते रहे हैं, हमारी श्रद्धाओं, मान्यताओं, देवी-देवताओं का मजाक उडाना  जिनका शगल है, जो हमें सुधारने का दावा करते रहते हैं। वे स्वयं कितने जाहिल हैं यह जानना भी बडा ही रोचक सिद्ध होगा। कैथोलिक सम्प्रदाय के अनुयायी इस्टर के पूर्ववाले गुरुवार को अशुभ मानते हैं। उस दिन चर्च की सारी घंटियां बंद कर दी जाती हैं। 13 का अंक अशुभ है यह एक पागलपन भरी समझ है परंतु, दुनिया भर में इस बात को लोग प्रमुखता से मानते हैं। अमेरिका के चंद्र अभियान अपोलो के दौरान अपोलो 13 के समक्ष आई विपत्तियों के लिए भी इसी अंक को दोषी माना गया था। 13 के अंक से संबद्ध अंधविश्वास संभवतः उस समय से प्रारंभ हुआ जब 12 देवताओं के एक भोज में 'मोकी" नामक देवता धोखे से शामिल हो गया फलस्वरुप बल्दूर  नामक लोकप्रिय देवता की मौत हो गई। ईसाई धर्म में 13 का अंक अपशकुनी है के सबूत के रुप में लास्ट सपर (ईसामसीह को क्रॉस पर चढ़ाने के एक दिन पूर्व की रात को ईसा और उसके शिष्यों को मिलाकर 13 लोगों ने एकत्रित रुप से किया हुआ अंतिम भोजन) के चित्र को पहचाना जाता है। इसी प्रकार से 3 के अंक को भी लेकर विश्वव्यापी अंधविश्वास है। ईसाई धर्म में 3 के अंक को उस समय से बुरा माना जाता है जब पीटर ने मुर्गे की बांग से पूर्व को 3 बार इंकार किया था।

स्काटलैंड में रोगी के बाल और नाखुन काटकर मुर्गे के साथ जमीन में गाढ़ दिया जाता है। स्काटिश लोगों की धारणा है कि कपडे की गेंद को कुंवारी लडकी ही फेंकेगी और वह दिन सेंट व्हैटीन माना जाता है। इस गेंद को फेंकने का उद्देश्य यह है कि जो भी पुरुष उसे उठाने के लिए 'हां" करेगा वह उसका भावी पति होगा। स्काटलैंड में नववर्ष की सुबह काले आदमी या काली वस्तु को देखना शुभ माना जाता है और जब काला आदमी दिखाई देने की संभावना ना हो तो लोग सिरहाने कोयला रखकर सो जाते हैं ताकि नववर्ष की सुबह सबसे पहले उसे ही देख लें। स्वीट्‌जरलैंड के शिकारी अगर यात्रा के समय सियार देख लें तो घर वापस आ जाते हैं। उन्हें इस बात का डर लगने लगता है कि कहीं गलती से वे मानवहत्या न कर बैठें।

इंग्लैंड और अमेरिका में शनिवार को कोई काम नहीं किया जाता है। वर एवं वधू या प्रेमी जोडों का साथ में फोटो खींचना भी अशुभ माना जाता है। पति-पत्नी या प्रेमियों को दर्पण में एक साथ देखना भी अपशकुन समझा जाता है। स्वीडन और डेनमार्क में प्रसूती के घर में आग जलाकर रखी जाती है कारण भूत-प्रेत। ग्रीस में बच्चे को पालने में लिटाकर आग के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करने की प्रथा है। डेनमार्क में दरवाजे पर स्टील का एक टुकडा गाड देते हैं। पश्चिम के भूत हैं भी बडे अजीबोगरीब वे घडी के होते हैं, कुर्सियों के होते हैं, मकानों के हैं और तो और पानी के जहाजों के भी भूत वहां मौजूद हैं, लंदन में तो लोगों ने बसों के तक भूत सडक पर दौडते देखे हैं। वहां के भूतों ने तो मरने के बाद भी उपन्यास लिखे हैं।

छींक को लेकर पूरे विश्व में कई धारणाएं प्रचलित हैं। अमेरिका में यदि लडकी को छींक आती है तो माना जाता है कि उनका मित्र उन्हें याद कर रहा है। शिशु के जन्म के वक्त छींक आती है तो समझा जाता है कि वह बडा होकर नेता बनेगा। आस्ट्रेलिया के लोग छींक आने पर ईश्वर का आभार मानते हैं। जर्मनी में जूते पहनते समय छींकना अत्यंत अशुभ माना जाता है। यूनानी छींक को दैवी कृपा मानते हैं। अत्यंत आश्चर्यजनक अंधविश्वास है एस्टोनिया के निवासियों के संदर्भ में वहां यदि दो गर्भवती महिलाएं एक साथ छींके तो कन्या का जन्म होगा, दो पति एक साथ छींके तो पुत्र का जन्म होगा ऐसा माना जाता है।

खेल जगत भी अंधविश्वासों से भरा पडा है। क्रिकेट के कई खिलाडी किसी विशेष बल्ले, टोपी अथवा जूतों की जोडी को अपने लिए भाग्यशाली मानते हैं। कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडी गले में ताबीज धारण किए रहते हैं अथवा मुकाबले के पूर्व अपनी किसी विशिष्ट आदत को दोहराते नजर आते हैं। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मेनिम ने भी स्वीकार किया है कि वे भी अंधविश्वासी हैं। इटली पर विजय पाने के बाद खेलप्रेमी मेनिम ने कहा कि वे सभी मैचों को एक ही टाई और कपडे पहनकर देखते हैं। अर्जेंटीना के निवासियों की मान्यता है कि 'भगवान अंर्जेंटीनी है।" कई लोग तो प्रेतबाधाओं से बचाव के पारंपरिक तरीके की लहसुन की माला बनाकर मैच के दौरान हाथ में दबाए बैठते हैं। 

अब इन प्रगत कहे जानेवाले देशों में फैले अंधविश्वासों को देखते यह टिप्पणी देने से मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा कि बताइए क्या खाकर हम भारतीय अंधविश्वासों में इनसे आगे निकल सकते हैं। हम तो ठहरे इन गोरों के आगे निपट गंवार, अनपढ़, अज्ञानी। वैसे इन प्रगतिशील गोरों के कैथोलिक चर्च के अंतर्गत योरोप में मध्यकाल में किस प्रकार से अंधविश्वासों का साम्राज्य फैला हुआ था यह और किसी लेख का विषय हो सकता है अतः यहीं विराम।

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