Friday, April 18, 2014

सदा रहे हैं रसाल के रसिक

विश्व के पांच प्रमुख फलों में आम को गिना जाता है। भारत ने इसे राष्ट्रीय फल का सम्मान दिया है। आम फलों का राजा होकर भारत का प्राचीनतम फल है। आम भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है। यह समृद्धि का प्रतीक भी है। संस्कृत साहित्य में इसका वर्णन आम्र, कल्पतरु, अतिसौरभ आदि नामों से है। आम का राजसी नाम रसाल है। अंगे्रजी का मैंगो समरबहिश्त, किशनभोग, हरदिल अजीज, मिठुआ जैसे प्रेम भरे शब्दों से भी पुकारा जाता है। आम्रवृक्ष का उल्लेख सदाहरित के रुप में भी किया जाता है।

आम भारत भूखण्ड की पैदावार होकर कहते हैं चार हजार वर्ष पहले चटगांव की निचली पहाडियों में प्रकृति के अनमोल वरदान के रुप में अपनेआप पैदा हुआ। भारत से यह उष्ण जलवायुवाले भूभागों में फैला। अफ्रीका में लगभग 1000 वर्ष पूर्व आम का आगमन हुआ तो वेस्टइंडीज में लगभग 350 वर्ष पूर्व। सुप्रसिद्ध अल्फांसो आम या हापुस जिसका शोध एक पुर्तगाली ने लगाया था भी 400 वर्ष पूर्व का है। वैश्विक स्तर पर आम की तीन जातियां हैं। भारतीय, इंडो चायनीज और दक्षिण अमेरिकीन। पहली दो प्रमुख होकर दक्षिण अमेरिकी अपने उग्र दर्प के कारण अखाद्य समझी जाती है। भारतीय फल के गुदा में तंतुमय पदार्थ नहीं होते और रंग आकर्षक होता है जबकि इंडो चायनीज में तंतु होते हैं और रंग भी आकर्षक नहीं होता।

भारतीय आम में विभिन्न रंग-रुप, स्वाद, मिठास और किस्म पाई जाती है जैसेकि भारत की विभिन्न प्रदेशों की वेशभूषा, बोलियां, भाषाएं। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों, संस्कृत-साहित्य में आम का उल्लेख मिलता है। कालिदास की रचनाओं में आम प्रतीक बनकर उभरा है जैसेकि मेघदूत में पर्वत को आम्रकूट कहा गया है। आम की बौरों को मदन बाण और फल को प्रेम की परिपक्वता का प्रतीक माना है। व्याकरणाचार्य पाणिनी ने मनुष्यों का आम्रपाल और आम्रपाली एवं नगरों के लिए आम्रपुर की संज्ञाओं का प्रयोग किया है। रामायण और महाभारत में आम की गुणगाथा और आम्रवनों का संदर्भ उस काल में इस फल के प्रचलित और लोकप्रिय होने का द्योतक है। शतपथ ब्राह्मण में इसे वैदिक काल का फल बताया गया है। बौद्धकालीन 'अमरकोश" में भी आम का विवरण मिलता है।

पंचपल्लवों में आम्रवृक्ष का प्रमुख स्थान है। धार्मिक कार्यक्रमों में, मंगल कलशों, तोरणद्वार, विवाह मण्डपों में आम्र पल्लवों का उपयोग एवं कई पूजा-विधानों में भी इसका प्रमुख स्थान है। कवियों ने आम की प्रशंसा करते हुए इसे पिकवल्लभ, मधुदूत आदि कहा है। आम को कल्पवृक्ष अथवा मनोकामना पूर्ण करनेवाला वृक्ष माना गया है। कलाकारों ने भी आम का जीभर अंकन किया है। ईसा से 150 वर्ष पूर्व निर्मित सांची के स्तूपों में आम के वृक्ष और फलों के प्रस्तर उत्कीर्ण उत्कृष्ट भारतीय कला के प्रमाण हैं।  

स्वाद, सुंदरता, सुगंध से संपन्न यह अनूठा फलवृक्ष उपयोगिता की दृष्टि से भी कहीं से कहीं तक कमतर नहीं पडता। आम वृक्ष से मिलनेवाली हर चीज किसी ना किसी रुप में उपयोगी है। इसीलिए तो आम से संबंधित कहावत है 'आम के आम गुठलियों के दाम"। कच्चे आम के फलों का उपयोग चटनी, मुरब्बे, अचार, अमचूर बनाने के लिए किया जाता है। आम एक नाशवंत फल होने के कारण इसके टिकाऊ पदार्थ बनाकर रस, चूर्ण आदि बनाकर विदेशों में निर्यात किया जाता है। आम की गरी का पशु आहार के रुप में उपयोग किया जाता है। आम की लकडी मध्यम दृढ़ता वाली मानी जाती है। इससे हल की लोढ़, खुरपी, हंसिया आदि के हत्थे बनाए जाते हैं। आम की छाल से चमडा पकाने के लिए टेनिन निकाला जाता है।

सर्वप्रिय आम की मधुरता और रुची इसमें कितनी शर्करा उपलब्ध है इस पर अवलंबित रहती है। पक्वता के अनुसार इसमें  ग्लुकोज, फ्रुकटोज, माल्टोज और सुक्रोज इन चारों ही शर्कराओं का एकदूसरे के साथ क्या अनुपात है इस पर रुची अवलंबित रहती है। आम में औषधीय गुण भरपूर होने के कारण इसका आयुर्वेदिक महत्व भी बहुत है। चरक संहिता में आम के अनेक स्वास्थ्यवर्धक एवं औषधीय गुणों का वर्णन है। भावप्रकाश में आम्रमंजरियों को अतिसार, कफ, पित्त और दुष्ट रक्तनाशक कहा गया है। कच्ची अमिया वात एवं कफ के दोषों को उत्पन्न करनेवाली और पित्तकारक है। कच्चे बडे आम के सेवन से त्रिदोष एवं रक्त विकार उत्पन्न होते हैं। परंतु, यदि कच्चे आम के टुकडों को धूप में सुखाकर अमचूर के रुप में उपयोग में लाएं तो यह स्वादिष्ट अमचूर कफ, वात हारक होकर इमली से अधिक गुणकारी है।

आम का फल डाली से तोडते समय जो चिपचिपा पदार्थ निकलता है वह बिच्छू अथवा अन्य किसी विषैले कीट का जहर उतारने की अमोघ औषधी है। आम की छाल को उबालकर बनाए गए काढ़े से गले और जबडे में होनेवाले दर्द में आराम मिलता है। आम की पत्तियों का धुंआ, खांसी और श्वास संबंधी रोगों में लाभकारी है। आम का तेल पांवों की बिवाई की औषधी एवं मुख रोगों में हितकारी है। आम का पना पीने से लू नहीं लगती। पौष्टिक फल आम मेंं विटामिन अ, ब, और क एवं शर्करा तथा प्रथिन हैं। पका आम मधुर, स्निग्ध, बल एवं वीर्यवर्धक तथा वर्ण को सुंदर करता है। नेत्र और ह्रदय के लिए लाभकारी तथा व्रणश्लेष्म और रक्तविकारो को हरता है। आयुर्वेद में कुछ रोगियों को केवल आम का ही आहार देकर उन्हें स्वस्थ और पुष्ट बनाया जाता है। इस चिकित्सा विधि को आम्रकल्प कहते हैं। इस प्रकार से अनेक गुणों से भरपूर आम फल को विचारकों ने मांगल्य का प्रतीक मानते हुए कल्पवृक्ष के रुप में गौरवान्वित किया है। 

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