Sunday, October 13, 2013

पहले शौचालय फिर देवालय - मोदी


देर आइद दुरुस्त आइद



आज से कुछ माह पूर्व केंद्रिय मंत्री श्रीजयराम रमेश ने कथन किया था कि देश में मंदिरों से अधिक आवश्यकता शौचालयों की है तो देशभर में अच्छा-खासा विवाद खडा हो गया था और विशेषकर हिंदुत्वादियों ने उन्हें अपने निशाने पर ले लिया था। लेकिन अब श्रीमोदी ने 'पहले शौचालय फिर देवालय" का नारा देकर इस बात की पुष्टि कर दी है कि श्रीजयराम रमेश का दृष्टिकोण ही उचित है, समयानुकूल है।



पूरे देश में लाखों मंदिर-मंदिरी बने हुए हैं। कई सुंदर मंदिर वीरान, जीर्ण-शीर्ण अवस्था में उपेक्षित पडे हुए हैं। उनकी ओर देखनेवाला तक कोई नहीं है। फिर भी नए-नए मंदिरों का निर्माण बेरोकटोक बदस्तूर जारी है। इन मंदिरों के नाम पर धंधेबाजी जमकर चल रही है। भगवान के नाम पर बने ओटलों, चबूतरों के अतिरिक्त किसी बडे भारी पत्थर को गेरु या सिंदूर से पोतकर और वह भी अक्सर सरकारी जमीनों पर तरह-तरह के देवता स्थापित किए जा रहे हैं। यहां तक कि पहले से ही किसी गांव-नगर में अत्याधिक कम शौचालयों की उपलब्धता के बावजूद जो हैं उन शौचालयों के पास नालियों आदि पर कब्जा जमा मूर्तियां स्थापित कर, तस्वीरें टांग सुनियोजित ढ़ंग से शौचलयों को ही गायब कर दिया जाता है और यह हरकतें विशेष रुप से महिला शौचालयों के साथ ही अधिकतर घटित होती हैं। जबकि सार्वजनिक स्वच्छतागृहों की आवश्यकता सबसे अधिक महिलाओं को ही होती है।



इन धंधेबाजों के मंदिर कई स्थानों पर तो बीच सडक मुंह निकाले खडे हैं तो कहीं बीच चौराहों पर ही मंदिर निर्मित कर लिए गए हैं। यह प्रवृति इतनी अधिक बढ़ती जा रही है कि अतिक्रमणकर्ता यह जानकारी होने के बावजूद फलां मार्ग का चौडीकरण प्रस्तावित है अपनी स्वार्थ सिद्धि व वर्चस्व जमाने, दिखाने के लिए तुरंत बडी भारी मूर्तियां स्थापित कर प्रसाद वितरण भी शुरु कर देते हैं। यहीं स्मरण करा दें कि मंदिरों का उल्लेख प्रतीक रुप में किया गया है। जो हाल मंदिरों का है वही हाल अन्य धर्मियों के धर्मस्थलों का भी है। हालात यह हैं कि आगामी कई वर्षों तक यदि धर्मस्थलों के निर्माण को ही रोक दिया जाए तो भी उनकी उपलब्धता में कमी नहीं होगी। निश्चय ही यह असंभव सा ही है लेकिन धंधेबाजों की धंधेबाजी पर तो रोक लगाई ही जा सकती है।



शौचालयों की उपलब्धता, उनकी दुर्दशा, उनकी आवश्यकता वह भी विशेषकर महिलाओं के संबंध में का बयान इसके पूर्व के तीन लेखों में जो 'साप्ताहिक स्पूतनिक" में ही प्रकाशित हुए हैं में मैं कर चूका हूं। अतः शौचालयों की आवश्यकता का प्रतिपादन का कोई औचित्य नजर नहीं आता। फिर भी प्रसंगवशात्‌ गुजरात के संबंध में उल्लेख कर देना उचित होगा कि सन्‌ 2011 के आंकडों के अनुसार शौचालयवाले घरों का प्रतिशत 57.4, सार्वजनिक शौचालय 2.3 और खुले में शौच जानेवाले 40.3 प्रतिशत हैं। इस संबंध में कांग्रेस-वामपंथियों द्वारा शासित रहा केरल अवश्य ही सौभाग्यशाली है जहां का प्रतिशत क्रमशः 95.1, 1.1 एवं 3.8 है।



सन्‌ 2005-6 के आंकडों के अनुसार टॉयलेट सुविधा गुजरात में 43.5 प्रतिशत के पास थी तो केरल में 96.7। यदि बिहार के आंकडे देखें तो सन्‌ 2005-6 में टॉयलेट सुविधा मात्र 17 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2011 में 23.1 हो गई। यदि गुजरात से तुलना की जाए तो बिहार इस दौड में निश्चय ही पीछे है। सरकारी स्कूलों में स्थिति सन्‌ 2009-10 के आंकडों के अनुसार गुजरात में लडकियों के लिए पृथक शौचालयों का प्रतिशत 54.6, कॉमन 38.9। बिहार क्रमशः 37.7 व 48.3। पंजाब 98.5 व  92.9 प्रतिशत है।



मोदी द्वारा 'पहले शौचालय फिर देवालय" का नारा देना इसलिए भी महत्वपूर्ण नजर आता है क्योंकि, यह नारा एक हिंदुत्ववादी नेता ने दिया है जिसकी छबि कई लोगों के मन में कारपोरेट के आदमी की है। आज की तारीख में अधिकांश कारपोरेट उनकी तारीफ के कसीदे बांच चूके हैं। परंतु, शौचालयों का महत्व जतलाकर मोदी ने यह संदेश दिया हुआ सा लगता है कि उन्हें 'सोशल इंडिकेटर्स" की भी परवाह है। वे भी सोशल जस्टिस, सोशल रिफॉर्म को महत्व देते हैं। उन्हें आम जनता को शौचालयों की कमी तथा उससे उपजनेवाली समस्याओं का भान है। शायद उनके ध्यान में  यह बात भी आ गई लगता है कि पिछले 20 वर्षों में हम सोशल रिफॉर्म के मामले में बहुत पिछडे गए हैं भले ही प्रति व्यक्ति आय बढ़ी हो।



इसी भाषण में मोदी ने जो एक एनजीओ 'सिटीजन्स फॉर अकांउटेबल गवर्नेस" द्वारा आयोजित युवा छात्रों के सम्मेलन दिल्ली में ता. 2 अक्टूबर 2013 को सवाल-जवाब में दिया था कि पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने एवं इससे रोजगार का उल्लेख भी किया है। परंतु, इसके लिए भी सबसे पहली आवश्यकता स्वच्छता की है। जिसके मामले में निश्चय ही हम कुख्यात हैं। स्वच्छता बरतने के लिए अन्य कई आदतों को बदलने के साथ-साथ स्वच्छतागृहों की बहुतायत आवश्यक है।



मोदी जो अपने दृढ़निश्चय व काम करके दिखानेवाला के रुप में प्रसिद्ध हैं यदि उन्होंने वास्तव में ठान लिया कि 'पहले शौचालय फिर देवालय" तो वह दिन दूर नहीं जब गुजरात खुले में शौच करनेवालों से मुक्त प्रदेश होगा। यदि ऐसा होता है तो निश्चय ही यह एक बहुत बडी क्रांति होगी। अब देखना यह है कि मोदी अपने इस नारे को कितना अमलीजामा पहनाते हैं।

1 comment:

  1. जय राम नरेश ने कहा था "मंदिरों से ज्यादा पवीत्र है शोचालय" वो नहीं जो आप लिख रहे है

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