Saturday, June 6, 2015

आचरण बदलने पर ही स्वच्छ भारत का सपना साकार हो सकेगा
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के एक वर्ष पूर्ण होने पर मीडिया में जो व्यापक चर्चाएं आयोजित की गई थी उन्हें देख-सुनकर ऐसा लगने लगा मानो देश में ऐसा कुछ अभूतपूर्व घटित हो गया है जैसाकि आज तक घटित नहीं हुआ है। हां, ऐसा अभूतपूर्व कुछ घटित हो सकता था यदि मोदी की महत्वाकांक्षी घोषणा स्वच्छ भारत सफल हो जाती तो। परंतु, वह तो बुरी तरह असफल हो गई है जो खुली आंखों दिखाई पड रहा है और इसके जिम्मेदारों में हम आम लोग भी हैं जिनमें से कई सरकार की उत्तमता का प्रमाणपत्र  दे रहे हैं साथ ही मोदी के पार्टीजन भी हैं जिन्होंने अपनी हरकतों से इस बहुउपयोगी महत्वाकांक्षी योजना का मजाक बना कर रख दिया। पार्टीजन मोदी से प्रेरणा ले यदि ईमानदारी से इस अभियान को सफल बनाने में जुट जाते तो वास्तव में यह एक ऐसा महान ऐतिहासिक कार्य होता कि सरकार गर्व से कह सकती थी कि सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल अभूतपूर्व रहा है और सारी दुनिया भी अपनी स्वीकृती बडी प्रसन्नता से देती एवं बाकी सारे ऐब, असफलताएं इस आड में छुप जाती जो आज विपक्ष उघाडने पर उतारु है और ऐसी स्थिति में जनता भी विपक्ष की इन आलोचनाओं को कोई खास तवज्जो नहीं देती। क्योंकि, स्वच्छता के लाभ उन्हें नजर आने लगते।

पार्टीजन यदि इस मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक कार्य करने की ठानते तो उनके ध्यान में आता कि स्वच्छता के लिए दो पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। पहला प्रशासन और दूसरा आम नागरिक जिन्हें चाहे जहां कचरा फैलाने में महारत हासिल है इसमें उन्हें कोई संकोच नहीं होता ना ही ऐसा कुछ लगता है कि यह गलत है। प्रशासन की दृष्टि स्वच्छता के मामले में कैसी है यह तो जगजाहिर है। मोदी के आवाहन पर स्वच्छता अभियान से जुडे सेलेब्रिटिज की भूमिका तो स्वयं को चमकाने की यानी लाइम लाइट में रहने की ही रही। और सोशल मीडिया वीर तो स्वच्छता के संदेश को शेअर, फॉरवर्ड करने तक ही सीमित रहे, झाडू हाथ में लेना भूल गए। जो आए भी उन्हें आगे मार्गदर्शन नहीं मिला। प्रारंभ में उत्साह से जुडे लोग बाद में कौन छुट्टी के दिन हम्माली करे की भावनावश धीरे से दूर हो गए। 

पार्टीजन यदि स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए जनता से नियमित संपर्क में रहते, स्वच्छता अभियान में सततता बनाए रहते तो उन्हें कई ऐसे लोग नजर आ जाते जो कई छोटी-छोटी बातों को आचरण में लाकर अपने आसपास के परिसर को स्वच्छ रखने में योगदान देते हैं। उदाहरणार्थ मेरे एक मित्र जो डॉक्टर हैं और स्पूतनिक परिवार से संबद्ध भी होने के साथ ही स्पूतनिक की नीति लोग शौचालय एवं स्वच्छता के प्रति जागरुक हों से इत्तिफाक भी रखते हैं का दृष्टिकोण एवं व्यवहार अनुकरणीय है। वे अपनी दुकान (क्लीनिक) एवं उसके सामने के फुटपाथ को स्वयं स्वच्छ तो करते ही हैं साथ ही दिन भर उड-उडकर आनेवाले कचरे को समय-समय पर स्वयं ही उठाकर डस्टबिन में डालते रहते हैं और अपने सहायक के द्वारा या स्वयं ही निकट की कचरा पेटी के अंदर डाल भी आते हैं। फैंकी हुई चाकलेट की जिलेटिन या जर्मन पन्नियों या दवाइयों की स्ट्रीप्स को अलग से एकत्रित कर उसकी गोल गेंद के रुप में स्क्रब बना बरतन साफ करने के उपयोग में भी लाते हैं। 

जबकि अधिकांशतः होता यह है कि सभी व्यवसायी, दुकानदार प्रतिदिन सुबह दुकान या अपना प्रतिष्ठान खोलते से ही दुकान की स्वच्छता के साथ ही साथ अपनी दुकान के सामने के फुटपाथ को भी झाडू से साफ अवश्य करते हैं जिससे उनकी दुकान के सामने स्वच्छता नजर आए। परंतु, अधिकांश मामलों में यह देखा जा सकता है कि वे सारा कचरा एक ढ़ेर बनाकर दुकान से थोडा दूर सामने के एक कोने में यह सोचकर एकत्रित करके रख देते हैं कि चलो हमारी दुकान के सामने तो स्वच्छता है। परंतु, होता यह है कि थोडी ही देर में वही कचरा आनेजानेवाली गाडियों या हवा के चलने या पैदल चलनेवालों के पांवों के कारण फिर से फैल जाता है और उड-उडकर दूकानों के सामने या अंदर आने लगता है। कुछ लोग तो इस मामले में और भी अधिक होशियारी दिखाते हैं। वे अपनी दुकान या घर के सामने का कचरा दूसरे की दुकान या मकान के सामने एकत्रित करके रख देते हैं।

पार्टीजन उपर्युक्त प्रकार के उदाहरण देकर उन व्यवसायियों को बता सकते कि यदि वे वास्तव में स्वच्छता चाहते हैं और अपनी दुकान के साथ ही साथ आसपास का परिसर भी स्वच्छ रहे तो इसके लिए उन्हें यह कचरा डस्टबिन में एकत्रित कर उसे निकट की कचरा पेटी के अंदर डाल आना चाहिए। चूंकि, वे इतनी जहमत उठाते नहीं हैं और इस कारण बाजारों में स्वच्छता नजर आती नहीं है। वे उन्हें बता सकते हैं कि, इस प्रकार से विचार करें तो और भी कई छोटी-छोटी बातें हमें करने लायक नजर आ जाएंगी जिन्हें आचरण में लाकर हम स्वच्छ भारत अभियान को सफल बना सकते हैं। इस तरह की बातों को हिकारत की नजरों से ना देखें, आचरण में लाएं। 

मेरा तो अनुभव यह है कि अधिकतर पढ़े-लिखे व्हाईट कालर वाले लोग ही इस प्रकार के कार्य को हिकारत की नजर से देखते हैं। यही लोग गरीबों को गंदगी, अस्वच्छता, कचरा फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं और अपने आचरण की ओर ध्यान देना या किसीके द्वारा आकर्षित किए जाने को अपनी तौहीन समझते हैं। उदाहरण के लिए कार में सफर करते समय पानी पीकर बोतल  चलती कार से बाहर सडक पर ही फैंक देते हैं। पापकार्न या अन्य कोई फास्ट फूड खाकर पैकेट या कागज की प्लेट आदि सडक पर फैंक देना आदि इसीमें शुमार होता है। इंदौर में एक वकील हैं वे हमेशा अपनी कार में एक डस्टबिन रखते हैं जिसमें वे सफर के दौरान किसी भी तरह का कचरा फिर वह फालतू कागज का टुकडा या केले का छिलका ही क्यों ना हो डाल देते हैं और बाद में गंतव्य या घर पहुंचने पर उसे कचरा पेटी के हवाले कर देते हैं। 

गरीबों के पास तो साधन, स्थान की कमी है इसलिए वे घर के बहुत से कार्य जैसे बर्तन मांजना, कपडे धोना यहां तक कि स्नान तक सडक से लगे घर के ओटलों पर करने के लिए बाध्य हैं। कभी-कभी वे अशिक्षा एवं अज्ञानवश भी ऐसे कुछ कार्य कर जाते हैं जिनसे अस्वच्छता फैलती है। परंतु, पढ़े-लिखे लोग स्वयं भी अस्वच्छता फैलाने में कुछ कम नहीं कई लोग रात का बचा हुआ भोजन गाय को खिलाने के नाम पर दूसरों के गेट के सामने बडे आराम से प्लास्टिक की थैली में बांधकर फैंक देते हैं इससे क्या हानि हो सकती है इस पर कई बार लिखा जा चूका है फिर भी ये लोग सुधरने का नाम ही नहीं लेते।

कचरा और गंदगी फैलाने में चाय, चाट-पकौडी के स्थान भी अग्रणी हैं। चाय पीने के डिस्पोजेबल प्लास्टिक के कप, दौने आदि बहुत अहम भूमिका निभाते हैं जिन्हें हम ही वहीं स्थित कचरा पेटी में डालने के स्थान पर उपयोग के पश्चात सडक पर ही फैंक देते हैं। सडक पर खाते हुए चलते-चलते पैकेट या कागज कहीं भी फैंक देना हमारी आदतों में शुमार है। युवा भी इस मामले में किसीसे पिछे नहीं। वे कागज, डिस्पोजेबल पेन, प्लास्टिक पैकेट, बोतलें, गुटके-सिगरेट के पैकेट, टुकडे, लायटर, चाकलेट के रैपर चाहे जहां फैंक देते हैं। बूढ़े भी कुछ कम नहीं वे चाहे जहां खंखाकर थूक देते हैं, सार्वजनिक वॉशबेसिन, मूत्रालयों में तो यह सहज ही दिख पडेगा कि थूके हुए पान-तंबाकू से लेकर थूक-कफ तक पडा हुआ है। 

वस्तुतः स्वच्छ भारत के नाम पर सभी ने औपचारिकता निभाई इस कारण स्वच्छता के नाम पर चारों ओर केवल शोर सुनाई पडा, अस्वच्छता वैसी की वैसी ही बरकरार है।

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