Wednesday, July 17, 2013

आशाओं का सौदागर नेता - नरेंद्र मोदी

नेपोलियन का कहना था 'लीडर इज ए डीलर इन होप" अर्थात्‌  नेता वह है जो आशाओं का सौदा करना जानता हो। आज यह कहावत मोदी पर उपयुक्त ठहरती नजर आ रही है। मोदी वो नेता हैं जो इस समय देश में चरम पर पहुंच चूके अथाह भ्रष्टाचार एवं कुशासन से पीडित देश की जनता के सामने बडी तेजी से आशा की किरण बनकर उभर रहे हैं। युवाओं में तो उनका क्रेज था ही अब तो पार्टी के भीतर भी उनका विरोध कमजोर पडता नजर आ रहा है। पार्टी के दूसरे, तीसरे, चौथे स्तर के नेता भी यह जानते हैं कि अब नहीं तो कभी नहीं की परिस्थितियां बन गई हैं। और मोदी इन सबसे वाफिक होने के कारण अब इस तरह के कदम उठा रहे हैं कि पार्टी तो क्या सारे देश की राजनीति उनके इर्दगिर्द केंद्रित हो जाए। इसके लिए वे कभी 'कुत्ते का पिल्ला" जैसे जुमले उछालते हैं तो कभी 'सेक्यूलर बुर्के" की बात कर सबको आंदोलित कर देते हैं और चर्चा के केंद्र में आ जाते हैं।

इसमें उन्हें सफलता और लाभ भी मिलता नजर आ रहा है पार्टी में उनके विरोध के स्वर मंद होते जा रहे हैं। जो कांग्रेस और दिग्विजयसिंग यह कहते फिर रहे थे हम नरेंद्र मोदी को कोई महत्व नहीं देते वे उनके वक्तव्यों पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य होते जा रहे हैं। उनकी स्वयं की पार्टी भी उनके वक्तव्यों पर होनेवाली प्रतिक्रियाओं का उत्तर देने में व्यस्त है, शिवसेना भी इस मामले में पीछे नहीं रही जो कभी दबे स्वरों में उनका विरोध दर्शा चूकी है। उ.प्र. जहां सबसे अधिक उनकी सफलता की परीक्षा है वहीं मुख्य प्रतिद्वंदियों में से एक बसपा के सांसद विजयबहादुर ने न उनके 'कुत्ते के पिल्ले" वाले वक्तव्य का पुरजोर समर्थन किया बल्कि मोदी की आलोचना करनेवालों को आडे हाथों लेने से भी नहीं चूके। फलस्वरुप मायावती को विजयबहादुर को चेतावनी देना पडी।

मोदी की सफलता इससे भी नजर आती है कि पार्टी में उठी यह आवाजें कि कांग्रेस मोदी को निशाना बनाकर अपनी असफलता को नैपथ्य मेें ले जाना चाहती है, मुद्दे से भटकाना चाहती है को कोई महत्व मिलते नजर नहीं आया, मोदी तो चाहते ही हैं कि सारी चर्चाओं के केंद्र में वे अकेले ही रहें बाकी सभी मुद्दे गौण हो जाएं। वैसे भी जनता इस कांग्रेस सरकार के नाकारापन से इतनी आजीज आ चूकी है कि अब उसे कुछ भी कहने की जरुरत नहीं। रोज गिरते रुपये के दुष्परिणामों से बचना मुश्किल होता जा रहा है को जनता समझ भी रही है और भोग भी रही है व यह जान चूकी है कि यह सब पिछले पांच वर्षों के निकम्मेपन का परिणाम है।

मोदी की सफलता इस बात से भी जाहिर होती है कि जो कांग्रेस रातोरात 'खाद्य सुरक्षा बिल" लाकर उसे चुनावी मुद्दा बना गरीबों की हमदर्द होने की इमेज बनाना चाहती थी और उसकी रणनीति थी कि सोमवार (15जुलाई) से यही मुद्दा चर्चा का विषय बन जाए को असफल करने में मोदी सेक्यूलर बुर्के की चर्चा छेड सफल रहे हैं। क्योंकि, 'खाद्य सुरक्षा बिल" को छोड कांग्रेस मोदी पर पिल पडी और आंकडों की बाजीगरी में उलझ कर रह गई और मोदी आगे हैदराबाद बढ़ गए जहां उन्हें सुनने के लिए टिकट लेना पडेगा। जिसका उपयोग वे उत्तराखंड की आपदा के प्रभावित लोगों की सहायता के लिए करेंगे। यह विचार लोगों में राजनेताओं को गंभीरता से लिया जाए की ओर बढ़ाया गया एक पग माना जाना चाहिए जिसकी आवश्यकता भी थी, की पूर्ति करेगा। अमेरिका में तो यह प्रचलन में है कि वहां लोग सुनने के लिए आते भी हैं और पैसे भी खर्च करते हैं। बिल क्लींगटन तो राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद जहां भाषण देने जाते हैं वहां से बाकायदा फीस लेते हैं। आपातकाल के बाद जनता पार्टी द्वारा 'नोट भी और वोट भी" की अपील सफल रही थी। उसके वर्षों बाद अब यही प्रयोग अब एक अलग रुप में किया जा रहा है। परंतु, कांग्रेस इसे समझने की बजाए फिर से आलोचना में जुट गई।

मोदी का इतिहास बतलाता है कि दूसरों से अलग दिखने, करने की चाह उनमें हमेशा से ही रही है उसका एक प्रतीक है उनकी आधी बांह का कुर्ता जो उनके समर्थकों में अब फैशन का रुप धरता जा रहा है। प्रतीकों का उपयोग करने में मोदी निश्चय ही लाजवाब हैं और इसके लिए वे धार्मिक प्रतीकों का उपयोग करने से भी कोई गुरेज नहीं करते। जैसेकि अभी हाल ही में सेक्यूलर बुर्का शब्द का प्रयोग। इसके पूर्व भी यह प्रयोग चुनाव आयुक्त लिंगदोह के मामले में उनके पूरे नाम जेम्स माइकल लिंगदोह का उच्चारण कर उनके ईसाई होने के प्रतीक के रुप में कर चूके हैं तो, कांग्रेस नेता अहमद पटेल को उनके नाम का उच्चारण अहमद मियां पटेल से करना, आदि।

हिंदू भावनाओं की लहरों पर सवार होना भाजपा की रणनीति का हमेशा से एक अहम हिस्सा रहा है। यहां भी मोदी हटके हैं वे अच्छी तरह से जानते हैं कि चाहे जो हो जाए अल्पसंख्यक उन्हें वोट नहीं देंगे इसलिए उनका पूरा ध्यान हिंदू वोटों के धु्रवीकरण पर है इसलिए वे सद्‌भावना उपवास कार्यक्रम रखते हैं परंतु, मुस्लिम टोपी नहीं पहनते जबकि उनके पूर्ववर्ती लालकृष्ण आडवाणी तो अजमेेर की दरगाह पर हाथ जोडकर खडे हैं के चित्र उपलब्ध हैं। मोदी के इस प्रकार के व्यवहार से अपने आप वे जो चाहते हैं वह उन्हें हासिल हो जाता है हिंदू भावनाएं तुष्ट होती हैं और वे उनके कट्टर समर्थक बनते चले जाते हैं। मुंबई में तो उनके हालिया हिंदुत्व संबंधी बयान के बाद जगह-जगह पर होर्डिंग लगे हैं जिनमें मोदी के फोटो के साथ लिखा है 'हां मैं हिंदू राष्ट्रवादी हूं"।


परंतु, कांग्रेस जो भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी और शातिर खिलाडी है जो पहले तो नई-नई समस्याएं स्वयं ही खडी करती है फिर बाद में उद्धारक की भूमिका में आकर उन्हें हल भी स्वयं ही करने आ धमकती है और श्रेय ले जाती है। लगता है इस समय अपनी सारी चालाकियां भूल मोदी फोबिया से ग्रस्त हो गई है तभी तो अपने स्वयं के मुद्दे जिन्हें लेकर उसे चुनावी मैदान में जाना है को ठीक से जनता के सामने लाने का कार्य छोड मोदी-मोदी का जाप करने में लगी है और मोदी इसीका लाभ उठा कांग्रेस को बडी ही होशियारी से भ्रमित करने में सफल हो रहे हैं।     

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