चीन में मुस्लिम अलगाववाद
पिछले महीने जून में चीन के सबसे संवेदनशील
प्रांत शिनजियांग में हिंसा भडक उठी थी जिसमें 27 लोग मारे गए थे। यह प्रांत रुस, मंगोलिया,
कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत की सीमा पर
है और तेल व गैससंपदा से भरपूर है। यह संघर्ष तुर्की मूल के मुस्लिमों जिन्हें 'उइघर"
कहा जाता है उनमें और चीन वंश के 'हान" समुदायों में हुआ। चीनी वंश के मुसलमानों
को 'हुई" कहा जाता है। अप्रेल में भी हुए सीरियल बम विस्फोटों में कम से कम
21 मारे गए थे और 8 घायल हुए थे। इसके पूर्व भी जुलाई 2009 में भडकी हिंसा में 156
से अधिक लोग मारे गए थे, 1500 घायल और 1000 लोग गिरफ्तार हुए थे। दंगे इतने गंभीर थे
कि राष्ट्रपति जीन्ताहो को जी8 की बैठक छोडकर स्वदेश लौटना पडा था।
वहां सक्रिय ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक
मूवमेंट का संबंध अल कायदा से है। इस संगठन को चीन सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा है।
चीन सरकार के आग्रह पर अमेरिका ने भी इसको आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल रखा है।
चीन सरकार उनसे चिंतित है। इस मुस्लिम उइघर आबादी में तालिबान के प्रति समर्थन है।
तालिबानी शासन के दौरान 300 उइघर मुस्लिम अफगानिस्तान जाकर तालिबानी प्रशिक्षण ले चूके
हैं। मुस्लिम आबादी में उग्रवादी भावनाओं के पनपने के लिए एकाधिक बार चीन पाकिस्तान
पर भी उंगली उठा चूका है। यहां विद्रोहों का लंबा इतिहास रहा है चीन की नीति वहां के
मुसलमानों को इन उइघर मुसलमानों से दूर रखने की है।
चीन में बाहर से आए दो कट्टरपंथी मुस्लिम
पंथों 'वहाबी" और 'नक्शबंदी" के प्रसार के बाद बडे पैमाने पर विद्रोह होकर
यूनान प्रांत में अल्पसंख्य मुसलमानों की सत्ता भी स्थापित हो गई थी। यह 19वीं शताब्दी
के मध्य की बात है। चीनी सत्ता ने इन सारे प्रयत्नों को कठोरतापूर्वक कुचल दिया था।
अल्पसंख्य होकर सत्ता प्राप्ति के यह प्रयत्न चीनी शासकों को धोखादायक लगे और यह इतिहास
पर से सिद्ध भी हो गया। उसी इतिहास को अब हम देखेंगे।
तेरहवीं शताब्दी में मंगोलों ने चीन को
जीत लिया। वांशिक दृष्टि से मंगोल और चीनी भिन्न हैं। मंगोलों ने राजपाट चलाने एवं
अपने को समर्थन मिले, स्थानीय चीनी हावी ना हो जाएं इसलिए मध्य एशिया से तुर्कों को
बुलाया इनके बहुसंख्य अधिकारी मुस्लिम थे। उन्हें बडे पद मिले। सारी चीनी जनता मंगोलों
की सत्ता से जबरदस्त नफरत करती थी साथ ही इन मुस्लिम तुर्क अधिकारियों से भी। ये अधिकारी
चीनियों के साथ गुलामों सा व्यवहार करते थे। इन तुर्क नौकरशाहों ने ही चीन में बडे
पैमाने पर धर्मांतरण करवाया। इसके कारण चीन के हर प्रांत में मुसलमान नजर आने लगे।
मंगोल आने के पूर्व यूनान में तो एक भी मुस्लिम नहीं था परंतु, मंगोलों के पहले प्रशासक
सय्यद शम्सुद्दीन के काल से इस्लाम के प्रसार की शुरुआत हुई।
पहले चीनी स्त्रियों से विवाह करना और
अकाल में और अनाथालयों से चीनी बच्चों को खरीदना, कभी बलपूर्वक तो कभी प्रलोभनों से
सेना में सैनिकों का धर्मांतरण करना, आदि । अब सत्ताबल मिल गया। जैसे-जैसे संख्याबल
बढ़ने लगा वैसे-वैसे मुसलमानों की राजनैतिक आकांक्षाएं परवान चढ़ने लगी विद्रोह होने
लगे और चीनी सत्ता के ध्यान में धोखा आने लगा। अठराहवीं शताब्दी से शुरु हुए इन मुस्लिम
आंदोलनों का उद्देश्य देश से अलग होकर स्वतंत्र इस्लामी राज्य की स्थापना करना था।
कट्टरपंथियों के प्रभाव में आकर हजारों चीनी मुसलमान हज यात्रा पर जाने लगे।
अभी तक चीन में जो इस्लाम परंपरागत था
उसमें यह नई लहर 1761 के आसपास आई। इस नई लहर का नेता था नक्शबंदी मामिंगसिंन तब तक
चीन ने पूर्व तुर्कस्तान, शिनजियांग प्रांत को जीत लिया था। नक्शबंदी संपर्क उधर से
ही आया होना चाहिए। मामिंगसिन ने पूर्व तुर्कस्तान के यार्कद और काशगर के धार्मिक विद्यापीठों
में अध्ययन किया था। वहां से लौटकर कान्सू प्रांत में उसने अपने संप्रदाय की स्थापना
की। पारंपरिक धर्म में आक्रमकता प्रविष्ट कराने का यह प्रयत्न था। चीनी इस्लाम में
चीनियों के संपर्क से जो रुढ़ियां घुस आई थी उन पर हमला बोला गया। यह स्वाभाविक ही था
कि पुराने और नए में संघर्ष प्रारंभ हो गया, दंगों की शुरुआत हो गई।
नए पंथ के आक्रमक पैतरे से उत्पन्न धोखे
को चीन ने पहचान लिया और कान्सू में कडे प्रतिबंध लागू कर दिए- 1. चीनियों के इस्लाम
स्वीकार पर बंदी, 2. चीनी बच्चों को गोद लेकर उनके इस्लामीकरण पर बंदी, 3. प्रार्थना
के लिए एक गांव से दूसरे गांव जाने पर बंदी, 4. प्रांत के बाहर के धर्मप्रचारकों के
प्रांत में आने पर बंदी, 5. नई मस्जिद बनाने पर पाबंदी। मामिंगसिन के विद्रोह को कुचल
दिया गया। परंतु, उसका पंथ कभी भूमिगत रुप से तो कभी खुलकर कार्य करता ही रहा। उसके
इस कार्य के पीछे जिहाद की भूमिका थी। यह विद्रोह बरसों चला।
उसके बाद चीनी मुसलमानों को नया नेता
मिला माहुआलुंग। जिहाद की भूमिका के साथ उसने एक और कल्पना जोड दी। वह थी महदी (उद्धारक)
की 'संपूर्ण रुप से मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारा उद्धार करुंगा"। वह स्वयं को
'त्सुंग ता आहुंग" यानी सेनापति और आचार्य कहलवाने लगा। लोगों को वह चमत्कार लगने
लगा। चीनी सामग्री कहती है- उसके अनुयायी शिष्यत्व स्वीकारने के बाद एकदम कट्टर बन
जाते हैं। 'कोई उनका शिष्यत्व स्वीकारने को तैयार ना हो तो उस पर सशस्त्र हमला किया
जाता है। जबरदस्ती धर्मांतरण से भी उनको परहेज नहीं।" चीनी सत्ता ने पराकाष्ठा
के प्रयत्न कर यह विद्रोह कुचल डाला। उसे उसके अनुयायियों सहित मार डाला गया। स्वतंत्र
राज्य स्थापित करने के उसके प्रयत्नों का इस प्रकार अंत हुआ। अल्पसंख्यक होकर भी सत्ता
प्राप्त करने के सतत प्रयत्नों को चीनी सत्ता ने हमेशा धोखादायक महसूस किया है और यह
इतिहास सिद्ध है।
शेनजियांग (काशगर) प्रांत जहां तुर्क
बहुसंख्य थे। जिन्हें चीनी मुसलमान नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनकी मातृभाषा तुर्की
है को चीन के मंचू राजघराने ने जीत लिया। इस प्रांत के सत्ताधारी खोजा (ख्वाजा) चीन
के मांडलिक थे। 1757 में उन्होंने विद्रोह किया उसे कुचल दिया गया। तुर्कस्तानी बेग
सरदारों को चीन ने सत्ता में हिस्सा दिया। 1820 में पहले के सत्ताधारी खोजाओं ने विद्रोह
किया उनके नेता जहांगीर खोजा को 1828 में पकडकर मार डाला गया। पडोस के खोकंद प्रांत
के अमीरों ने सतत 1830 से 1862 तक हमले किए। 1862 में शेन्सी और कान्सू प्रदेशों में
हुए प्रखर मुस्लिम विद्रोहों के कारण काशगर बिल्कूल अलग-थलग पड गया इसका लाभ उठाकर
खोकंद प्रदेश के तुर्क नेता याकूब बेग ने काशगर पर हमला कर स्वतंत्र मुस्लिम राज्य
की स्थापना की। यह राज्य 1878 तक टिका। इस काल में चीनी सत्ता विद्रोहियों का जबरदस्त
सामना करने में जुटी रही। 1876 में कान्सू प्रदेश के विद्रोह को समाप्त करने के बाद
चीनी सत्ता ने काशगर पर हमला कर उसे फिर से जीत लिया। और रशिया व मध्यपूर्व की नीतियों
को देखते उन्हें मांडलिक ना रखते उस प्रदेश को चीन में शामिल कर डाला।
चीन के यूनान प्रदेश का मुस्लिम विद्रोह
जिसका नेतृत्व तेहसीन के पास था 19वीं शताब्दी के शेनजियांग, कान्सू, शेन्सी के संघर्षों
के समान ही एक बडी घटना है। 1839 में रंगून के मार्ग से उसने मक्का की यात्रा की थी।
भारत के नक्शबंदी और मुजाहिद तथा अरबस्थान
के वहाबी आंदोलनों से वह पूरी तरह परिचित था। भारत के नक्शबंदी नेता सय्यद अहमद सरहिंदी
(मृ.1624), उसका पोता (औरंगजेब का गुरु घराना), शाहवलीउल्लाह जिसने नजीब द्वारा अफगानिस्तान
के अब्दाली को भारत पर आक्रमण के लिए बुलावा भेजा था, जिहाद कर पंजाब में स्वतंत्र
राज्य स्थापित करने की चाह रखनेवाला सय्यद अहमद (मृ.1831) के जिहाद आंदोलनों का उस
पर पूरा प्रभाव था। इसीने कुरान का अनुवाद चीनी भाषा मंें करना प्रारंभ किया था जिसे
उसके शिष्य तूवेन सियू जो बडा ही करतबी नेता था ने पूरा किया।
इसकी यूनान में सशस्त्र लढ़ाई सफल हुई।
ब्रह्मदेश के मुसलमान और भारत के मुजाहिदीनों ने इसे हथियारों की पूर्ति की थी। तूवेन
सियू ने यूनान में स्वतंत्र इस्लामी राज्य की स्थापना की। 1853 से 1873 तक यह राज्य टिका। इस राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यक
होकर बहुसंख्य चीनियों को 'जिम्मी" बनाया गया। वातावरण को धर्मांतरणाकूल बनाया
गया। कुरानप्रणीत शरीअत ही राज्य का सामान्य कानून बन गया। चीनी संस्कृति के समाजजीवन
के आचार-विचारों की पहचानों को मिटाया जाने लगा। चीन के मध्य एक मुस्लिम राज्य ऐसा
कभी हुआ नहीं था। चीनी राज्य सत्ता को यह सहन नहीं हुआ उसने पूरी ताकत से इस राज्य
पर हमला कर उसे नष्ट कर डाला। इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गए। चीन का अखंडत्व बना
रहा।
इन सब बातों के उद्रेक का कारण था- इस्लामी
जगत से संपर्क, उच्चगंड, यजमान संस्कृति के प्रति तुच्छता की और अलगाव की भावना, महदी,
जिहाद की घोषणाओं का अज्ञजनों पर हुआ परिणाम, शासन का अज्ञान, उपेक्षा और अव्यवहार्य
निर्बंध।
कम्यूनिस्ट शासन आने के बाद कम्यूनिस्टों
की नीति मुसलमानों के बारे में बडी सख्त और सावधानता की रही। एक नीति के रुप में शेनजियांग
और अन्य मुस्लिम बस्तियों वाले प्रदेशों में चीनियों को बडे पैमाने पर बसाया गया। इस
पर मुस्लिमों की प्रतिक्रिया तीव्र हुई। 1958 का यह समाचार देखिए- कान्सू राष्ट्रांक
समिति ने मत व्यक्त किया है कि, हुई (मुस्लिम) लोगों में स्थानीय राष्ट्रवाद बहुत फैला
हुआ है। कान्सू प्रदेश में तो वह चरम पर है। मुस्लिमों के मतानुसार मुस्लिम कम्यूनिस्ट
और उनके साथ सहानुभूति रखनेवाले मुस्लिम राष्ट्र के शत्रु हैं।
हुई (मुस्लिम) लोगों ने चीनी पितृभूमि
और चीनी राष्ट्र इन कल्पनाओं की खिल्ली उडाई। उन्होंने घोषित किया कि, 'हुई राष्ट्र
(मुस्लिम) की चीन पितृभूमि हो नहीं सकती। हुई (मुस्लिम) लोगों की मातृभाषा अरबी है।
संसार के सारे हुई (मुस्लिम) एक ही परिवार के घटक हैं।" सरकारी विवरणों से जानकारी
मिलती है कि- 'हुई (मुस्लिम) का कहना है कि, चीन में रहें ऐसी परिस्थिति नहीं। उन्होंने
देशत्याग करने की अनुमति (परमिट) खुल्लमखुल्ला मांगी। उनका कहना है हम अरबस्तान में
जाकर वहीं रहेंगे। उनमें से कुछ लोग कहते हैं कि, इस्लामी राज्य की स्थापना होकर इमाम
की सत्ता चालू होगी।"
1958 में 'पीपुल्स डेली" इस समाचार
पत्र ने गोपनीय जानकारी प्रकाशित की- होनान प्रांत में हुई (मुस्लिम) लोगों ने
1953 में दो बार विद्रोह किए। उनका उद्देश्य इस्लामी राज्य की स्थापना करना था।
1958 के अप्रेल और जून में निंघसिया के हुई इमाम मा चेन वू ने विद्रोह की नेतृत्व किया,
उसका उद्देश्य एक चीनी मुस्लिम प्रजासत्ताक राज्य बनाएं था। उसकी घोषणा थी- 'इस्लाम
का तेज चमके", 'ग्लोरी टू इस्लाम"।
वैश्विक कारणों से और वैश्विक तनावों
के कम ज्यादा होने के अनुसार चीन में भी अल्पसंख्यकों के प्रति नीतियों में कम या अधिक
बदलाव होते रहते हैं परंतु जिस प्रकार से रशिया या मध्यपूर्व के देशों के बारे में
समाचार मिलते रहते हैं वैसा चीन के संबंध में हो नहीं पाता। वहां के समाचार चीन की
अभेद दीवारों को लांघकर बहुत कम ही बाहर आ पाते हैं।
काश भारत भी ऐसा करता---------!
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