बांग्लादेशी मुस्लिमों की घुसपैठ - इस्लामी रणनीति
इतिहास अपने आपको दोहराता है और जो इतिहास और भूगोल को विस्मृत करते हैं, उसकी उपेक्षा करते हैं उन्हें कालांतर में इसके परिणाम भी भुगतना पडते हैं। उपर्युक्त पंक्तियां लिखने का कारण असम में हो रही बांग्लादेशी मुस्लिमों की सुनियोजित भारी घुसपैठ जो वर्षों से जारी है और जिसके परिणाम भयंकर दंगों के रुप में सामने भी आ रहे हैं और ये घुसपैठ केवल असम तक ही सीमित नहीं है समाचारों के अनुसार ये घुसपैठिये जिनकी तादाद 3 से 4 करोड तक है पूरे भारत में फैले हुए हैं। और जहां भी हैं वहां के स्थानीय लोगों का हक मार रहे हैं, असामाजिक-अपराधिक गतिविधियों में भी संलग्न हैं, इसके भी पर्याप्त सबूत हैं। फिर भी उचित कारवाई के अभाव में भारी घुसपैठ जारी है। इस घुसपैठ के जो भयावह परिणाम होंगे उसके चित्र भी कई विचारक समय-समय पर सामने लाते भी रहते हैं। यह घुसपैठ किस प्रकार हमारे लिए घातक हो सकती है इसके लिए यदि हम इस्लाम का स्वर्णिम काल कहे जानेवाले आदर्श खिलाफतकाल जिसकी स्थापना के लिए ही मुस्लिम आतंकवादियों ने विश्वयापी जिहाद छेड रखा है के पन्नों में झांके तो वह भयावह मंजर स्पष्ट रुप से दिख भी पडेगा।
पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद (इस्लाम) धर्मत्याग का जो दावानल भडका था उसे कुचलने के बाद अरबभूमि में अब एकमेव इस्लाम का झंडा फहरा रहा था और खलीफा अबूबकर के नेतृत्व में सारे भूमिपुत्र यानी कि इस्लामधर्मबंधु (उम्मा) एकसंघ हो गए थे। परंतु, यही स्थिति आगे भी जारी रहेगी इसका कोई विश्वास नहीं था इसलिए अबूबकर ने अरबभूमि के बाहर रोमन और पर्शियन साम्राज्यों पर आक्रमण का निर्णय लिया। अब सवाल यह उठता है कि नगण्य सामर्थ्यवाला यह इस्लामी राष्ट्र अपनी तुलना में बलवान साम्राज्यों से कैसे लड सकता है तो इसके पीछे थी अबूबकर की दृढ़ श्रद्धा (जो कि सभी इस्लमाधर्मियों की रहती है) कि, अल्लाह अपने इस्लाम धर्म की सहायता करेगा और (बाहर की) भूमि और लोगों पर (मुस्लिमों को) विजय प्राप्त करना सुलभ करेगा।
ये दोनो ही साम्राज्य अत्यंत समृद्ध और वैभव के शिखर पर विराजमान थे। वहां की अधिकांश भूमि उपजाऊ थी, वर्षभर नदियां बहती रहती थी, फलों और बागबगीचों की अधिकता थी। इसी कारण से रेगिस्थान के भोजन-पानी के लिए भटकने वाले अरबों के लिए इन साम्राज्यों की भूमि नंदनवन ही थी। यही स्थिति आज निर्धन बांग्लादेशियों की है, रोजीरोटी और जनसंख्या विस्फोट के कारण भूमि की कमी से जूझ रहे बांग्लादेशियों को असम नंदनवन ही लग रहा है और वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए असम-बंगाल में घुसपैठ के साथ-साथ पूरे भारत में ही अवैध रुप से घुसे चले आ रहे हैं।
बहुत पूर्व से ही अरबभूमि से इन साम्राज्यों की ओर अरब स्थानांतरित होते रहे थे इस कारण अरबों की यहां पर्याप्त जनसंख्या थी। यहां स्पष्ट कर देना उचित होगा कि 'अरब" यह संज्ञा अनेक अर्थों में उपयोग में लाई जाती है। अरब यानी अरब वंश का, अरबी भाषा बोलनेवाला, अरब राष्ट्र वाला, रेगिस्थान में भटकनेवाला इतना ही नहीं तो आगे चलकर अरब यानी मुसलमान ऐसा अर्थ लिया जाने लगा संदर्भानुसार योग्य अर्थ चुनना पडता है।
ये यायावर लोग अपने यहां न घुसें इसकी उपाय योजना ये दोनो ही राज्य करते रहते थे। यह स्थानानंतरण कभी शांति से तो कभी वहां के लोगों पर टोली हमलों के रुप में आक्रमक ढ़ंग से होता रहता था और दोनो साम्राज्यों के लोग इन उपद्रवों से त्रस्त थे। फिर भी स्थानीय लोगों को पराजित कर वहां अरब स्थायी हो गए थे। यही स्थिति आज बांग्लादेश से लगे असम के जिलों की है। इस प्रकार से लंबे समय तक चली प्रक्रिया से इन दोनो ही साम्राज्यों में अरबभूमि से लगा अरबों का एक राष्ट्र ही तैयार हो गया था। उनमें से एक बायजंटाईन का मांडलिक राज्य घसान था तो दूसरा था पर्शिया का मांडलिक राज्य हिरा (लखमी लोगों का)। ये दोनो ही राज्यों के बहुसंख्य लोग वंश से 'अरब" तो धर्म से ईसाई थे। जबकि हमारे यहां बांग्लादेश से आ रहे लडाकू घुसपैठिये धर्म से मुस्लिम और राष्ट्र की दृष्टि से इस्लामिक राष्ट्र के नागरिक हैं। यहां यह उल्लेख करना उचित ही होगा कि धर्म का प्रभाव मनुष्य पर बहुत गहराई तक होता है इससे मनुष्य में बहुत भारी मात्रा में बदलाव भी आता है इस बात से महात्मा गांधी भी सहमत थे। वीर सावरकरजी का तो कथन ही है कि 'धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण होता है" साथ ही यह भी कि, बांग्लादेश अपनी बेतहाशा बढ़ती आबादी, निर्धनता, भूमि की कमी से त्रस्त है और वहां के कई बुद्धिजीवी इन समस्याओं काहल असम बांग्लादेश का हिस्सा बन जाए के रुप में देखते हैं। इस दृष्टि से भी घुसपैठ की जा रही है जिसे मौन समर्थन भी प्राप्त है।
इतिहासकारों ने अरबभूमि का जो विभाजन तीन भागों में किया है उसमें से दो भाग इन्हीं मांडलिक राज्यों के हैं और तीसरा भाग वह है जिसे पैगंबर और अबूबकर ने इस्लाममय बनाया था। और महत्वपूर्ण बात यह है कि अरब मुस्लिम इन दोनो ही राज्यों को अरबभूमि का ही भाग समझते थे, वहां के अरब लोगों के प्रति वे वांशिक निकटता का अनुभव करते थे तथा उन्हें लगता था कि उनकी सहायता से उनके मालिकों से युद्ध कर अरबभूमि का विस्तार कर इस्लामी राज्य का आधार विस्तृत कर सकते हैं। अबूबकर का अरबभूमि के बाहर आक्रमण का एक उद्देश्य यह उपर्युक्त भी था।
अबूबकर ने 'अल्लाह की तलवार" उपाधि प्राप्त मुस्लिम सेनापति खलिद के नेतृत्व में हिरा की ओर सेना भेजी। वहां का गवर्नर सेना सहित पर्शिया की राजधानी चला गया। अब शहर की रक्षा करनेवाले ईसाई अरब बचे थे। जिन्होंने शरणागति स्वीकारने से मना कर दिया। वैसे वे पर्शियन सेनापति द्वारा उन्हें बिल्कुल ही असहाय छोडकर चले जाने से नाराज थे। इन ईसाई अरबों के शिष्टमंडल के नेता अदी और खलिद के बीच हुआ संवाद बहुत प्रसिद्ध है -
खलिद ः ''तुम (रक्त से) कौन हो? ः अरब या पर्शियन?""
अदी ः ''हम शुद्ध अरब रक्त के हैं।""
खलिद ः ''अगर तुम कहते हो यह सच है तो तुमने हमें विरोध ही नहीं किया होता या हमारे कार्य से नफरत भी न की होती।""
अदी ः ''शुद्ध अरब रक्त का मनुष्य हमेशा सच ही बोलता है (इसलिए मैं जो बोल रहा हूं सच ही है)
खलिद ः ''हां, तुम सच ही बोल रहे हो। अतः अब तीन में से एक विकल्प चुनोः 1). इस्लाम का स्वीकार करो फिर तुम्हारे और हमारे अधिकार और कर्तव्य समान ही रहेंगे; 2). जजिया दो; अथवा 3). लडने के लिए तैयार रहो। सचमुच मैं तुम्हारे पास ऐसे लोगों को लेकर आया हूं कि जो, तुम जिस प्रकार अपने जीवन से प्रेम करते हो, मृत्यु पर अधिक प्रेम करते हैं।""
अदी ः ''नहीं। हम जजिया देना पसंद करेंगे। हमें हमारे अरब रक्त का गर्व है परंतु, हमारा ईसाईधर्म ही हमें प्रिय है। हम हमारा धर्म छोडकर तुम्हारा धर्म स्वीकार नहीं करेंगे।""
खलिद ः ''तुम दुर्भाग्यशाली हो! श्रद्धाहीनता का मार्ग रेगिस्थान है। वह विनाश का मार्ग है। वह अरब मूर्ख है जो (सत्य) मार्ग दिखाने आए हुए अरब को छोडकर परायों का मार्गदर्शन स्वीकारता है।""
इसी प्रकार से रोमन साम्राज्य पर आक्रमण के दौरान मुस्लिम सेनापति खलिद और रोमन सेनापति महन के बीच हुई चर्चा भी सबक सीखने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण है ः- चर्चा प्रारंभ करते हुए महन ने शिकायत की -
''हे अरब लोगों! हमने तुम्हारे साथ हमेशा ही (पहले से ही) मित्रता का व्यवहार किया है। तुम्हारे देशवासी हमारे देश में स्थानानंतरण करते रहे हैं और इस देश के वे रहवासी बन गए (हमने आपत्ति नहीं ली)। हमें लगा था कि, इस बारे में तुम हमारे कृतज्ञ रहोगे, परंतु अब तुम इस देश पर हमले कर रहे हो और हमें ही यहां से निकाल बाहर करने के लिए प्रयत्नशील हो ... तुमने यहां के लोगों के धर्मस्थलों पर हमले किए हैं; उनकी संपत्ति लूट ली है; उनकी स्त्रियों को भगा ले जाकर गुलाम बना लिया है .... तुम इस पृथ्वी पर सबसे अधिक अज्ञानी और जंगली लोग हो .... अगर तुम शांति से वापिस जानेवाले हो तो, हम तुम्हारे सेनापति को दस हजार, सभी अधिकारियों को हर एक को एक हजार और प्रत्येक सैनिक को सौ दीनार देंगे।""
इस पर खलिद ने उत्तर दिया ः ''तुमने हम पडौसी अरबों के साथ पहले जो उदारता का व्यवहार किया है उसका हमें भान है। परंतु, उसमें उपकार मानने जैसा कुछ भी नहीं है। क्योंकि, अपने धर्म का प्रसार करने के लिए तुम्हारे द्वारा योजित वह नीति थी और इसीके फल के रुप में (तुम्हारे देश में आकर) वे ईसाई हो गए और वे ही आज तुम्हारी ओर से हमारे विरुद्ध लडने खडे हो गए हैं .... तुम पर हमारे हमले का कारण तुम्हीं हो। अल्लाह एकमेव है और मुहम्मद उसके (अंतिम) पैगंबर हैं यह मान्य न करने का तुम्हारा दुराग्रह इसका कारण है ... (हम इधर इसलिए आए हैं कि) अल्लाह ने हमें उसका धर्म सारे संसार को प्रदान करने की आज्ञा दी है। जो यह धर्म स्वीकारता है वह हमारे बंधुसंघ (उम्मा) का भागीदार बनता है। जो इसे नकार देता है उसके द्वारा जजिया दिए जाने पर हम उसको संरक्षण प्रदान करते हैं। इन दोनो ही बातों को नकार देनेवाले के लिए विकल्प यह तलवार है!""
यदि उक्त घटनाक्रम को आज भारत के संदर्भ में देखें तो बदलाव इतना भर होगा कि, खलिद कहेगा हमारे लोगों को तुमने आश्रय दिया, मुस्लिम भी रहने दिया होगा परंतु उसमें तुम्हारे उपकार मानने जैसा कुछ भी नहीं है क्योंकि, यह तुमने उन्हें सत्य मार्ग यानी इस्लाम के मार्ग से विचलित करने के लिए किया है। और हमारे आक्रमण का कारण भी तुम्हीं हो क्योंकि, तुम एकमेव अल्लाह को मानने की बजाए शिर्क (अनेकेश्वरवाद) में मुब्तिला हो, शिर्क के अपराधी हो और इस्लामी मान्यता के अनुसार शिर्क सबसे बडा अपराध है।
यह ठीक है कि आज परिस्थितियां बदल गई हैं और उपर्युक्त प्रकार का आक्रमण संभव नहीं और बांग्लादेश द्वारा भारत पर आक्रमण असंभव सा ही है। परंतु, सारे विश्व को इस्लाममय बनाने की इसके लिए अल्लाह की सहायता प्राप्त होगी, इस्लाम सारी दुनिया पर अपना प्रभुत्व जमाकर रहेगा ही के अल्लाह द्वारा दिए हुए आश्वासन और इसके लिए 'अपने आसपास के काफिरों से लडे जाओ" की आज्ञा तो यथास्थान ही है ना। जिसे मुस्लिम सत्य भी मानते हैं। और इसके लिए रणनीति के रुप में अब संख्याबल का सहारा लिया जा रहा है। घुसपैठ कर किसी क्षेत्र विशेष में अपनी आबादी बढ़ाकर, दूसरों को दंगे कर, आतंकित कर खदेड दो की रणनीति अपनाई जा रही है। लेकिन खेद है कि हमारे नेतृत्वकर्ताओं तथाकथित उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, मानवतावादीयों और वोट बैंक की बढ़ौत्री चाहनेवालों को यह धोखा नजर ही आ नहीं रहा है।
बहुत सटीक लेख है जानकारी से भरपूर भारत को बचाना है तो इस्लाम का मुकाबला करना होगा युद्ध का बदला युद्ध मख्ताब और मदरसों को बंद करना होगा हिन्दुओ को संगठित होकर हिंदुत्व की रक्षा करना होगा.
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