Wednesday, February 26, 2014

शिव - शक्ति और शांति का उपासक बिल्व (बेल)

हमारी भारतीय संस्कृति में वनस्पति जगत के महत्व को स्वीकारा गया है, उनके गुणों का बखान भी कथाओं, वेद-पुराणों में हुआ  है और उनको धार्मिक विधियों में भी उचित स्थान प्राप्त हुआ है। तुलसी दल विष्णु को अर्पित किए बिना पूजा की पूर्तता नहीं होती। दुर्वा के बगैर गणेश पूजा सफल नहीं हो सकती। बिल्व-पत्र दल के सिवा शिवशंकर की पूजा-आराधना पूर्ण नहीं होती। ये सभी वनस्पतियां औषधी भी हैं। इस कारण इनके महत्व के बारे में सभीको ज्ञात हो यह उत्तम।

पौरुष के देवता एवं प्रकृति स्वरुप पार्वती के समन्वित रुप अर्धनारीश्वर की बिल्व पत्र से पूजा-अर्चा, आराधना कैसा सार्थक और सुंदर प्रतीक है। बेल वृक्ष के आस-पास महादेव का लिंग होता ही है, ऐसी प्रथा है। बेल के फूलों की सुगंध बहुत होती है। बेल ेपत्ते, फल, छिलके व जड प्रत्येक में उपयुक्त औषधी द्रव्य हैं। मनुष्य के जीवन का आनंद प्रदाता है यह बेल वृक्ष। इसीलिए आयुर्वेदाचार्यों ने इसका संशोधन कर इसके गुण गाए हैं। जिस स्थान पर यह वृक्ष होता है उसके आस-पास शरीर को हानि पहुंचानेवाले जीव-जंतु रह नहीं सकते। हवा शुद्ध हो मनुष्य आरोग्य संपन्न रहता है।

प्राचीनकाल में ऋषिगण योगाभ्यास और समाधिस्थ होने के लिए जिन वनस्पतियों का उपयोग करते थे उनमें बेल महत्पूर्ण है। बिल्व की खनिज संपदा में पारद के पाए जाने के कारण वह बिल्व के विविध गुणों को दिव्यता प्रदान करता है। पारद को शिव का वीर्य कहा गया है। अतः शक्ति की उपासना और प्रसन्नता के लिए बिल्व शिव के समान ही सेवनीय है। बेल के वृक्ष पर लगे सुखे पुराने फल भी वर्षाकाल के बाद पुनः हरे और ताजे हो जाते हैं। कच्चा फल अधिक औषधीय गुण रखता है। कच्चा फल कफ, वायुनाशक, अग्निदीपक, पाचकग्राही, लघु स्निग्ध कहा गया है। पका फल मधुर और भारी होता है। दोनो ही प्रकार के फल ग्रहणी दोष को नष्ट करनेवाले होते हैं। बेलफल आंतों की शिथिलता को दूर कर उनकी संकोच शक्ति को बढ़ाता है। जिससे मल निष्कासन की क्रिया में तेजी से सुधार होकर, आंव को बाहर कर आंतों को बलवान बनाता है। बेल का शरबत उदर रोगों में लाभकारी होकर मलशोधन कर रक्त में वृद्धि कर उत्साह प्रदान करता है। बेल का तेल गर्भाशय की शुद्धि कर वात व्याधि एवं कर्णविकार में उत्तम है।

इसके पत्र वृक्ष से टूटकर भी छः महिने तक सुरक्षित और ताजे बने रहते हैं, गुणहीन नहीं होते। फलों की अपेक्षा बिल्वपत्रों में पारद के योगिकाणुओं की और भी अधिक मात्रा पाई जाती है, जिसने बिल्व में अनेक गुणों के साथ मिलकर कई चमत्कारिक, असाधारण गुणों की सृष्टि की है। बिल्वपत्रों से शिवार्चना कर ऋषियों ने शिव के समान वीर्य से पूर्ण, शांतचित्त समाधि में समर्थ, विषों से अप्रभावी, स्वस्थ, निरोग और अनिश्वर काया बिल्व सेवन से प्राप्त की। बिल्व सेवित होने के कारण शिव विष पान कर नीलकंठेश्वर और विषधरों से अलंकृत होकर अर्धनारीश्वर के रुप में कैलाश पर्वत पर समाधि में लीन हैं।

बिल्व विषनाशक होने के कारण कीडे-मकोडों के काटने से उत्पन्न सूजन पर बेल के पत्तों का रस लगाने से शांति मिलती है। बेलपत्र और जड का रस पिलाने से सांप का विष उतरता है। यदि शरीर में कांटा रह जाए तोे बेलपत्र की पुल्टिस बांधने से कांटा अंदर ही अंदर गल जाता है। संखिया के विष पर बेल के पके फलों को यदि भरपेट खा लिया जाए तो यह नीलकंठेश्वर के समान समस्त विष को सोंखकर उसके मारक प्रभाव को नष्ट कर देता है। जो लोग नित्य बेलफल का सेवन करते हैं उन पर विषधर के विष का मारक प्रभाव नहीं पडता।

बेल का पत्ते जहां पूजा के काम आते हैं वहीं इसकी लकडी यज्ञ एवं प्रसूता के पलंग बनाने के काम में आती है। इसके फल, छाल, जड, बीज और फूल भी कई रोगों में उपयोगी होते हैं। यही नहीं बेल वृक्ष की छाया भी शीतल और आरोग्यकारी होती है। इसके पत्तों के धुंअॆ से कीडे-मकोडे, मच्छर, मकडी आदि नष्ट हो जाते हैं। बेल के छिलके भी अत्यंत प्रभावी औषधी हैं, चंदन के समान गुणों में श्रेष्ठ हैं।

आयर्वेद में बिल्व का बहुत विशद विवेचन मिलता है। चरक संहिताकार ने इसे बहुत पवित्र एवं अशुद्धि निवारक माना है। सुश्रुत ने इसे आयु की वृद्धि एवं अलक्ष्मी का नाश करनेवाला माना है और ऋगवेदोक्त श्रीसूक्त का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बिल्व की आहूति का विधान किया है। बिल्व मुख्य रुप से इन रोगों में बहुपयोगी है - 

सिरदर्द, कब्ज, बहुमूत्र रोग, पसीने की बदबू में, निर्बलता, अतिसार-उल्टी, हरे-पीले दस्त हो रहे हों तो, गठिया, बवासीर, ह्रदय रोग, मधुमेह, प्रमेह, प्रदर, अनिद्रा, स्वप्नदोष, वीर्यदोष, उपदंश, जलने पर, बच्चों के दांत निकलते समय, पीलिया, मुंह में छाले, मंदाग्नि, आदि।

आधुनिक चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने भी यह स्वीकार लिया है कि बिल्व फल के गूदे, पत्र और मूल यानी जड में जो रासायनिक तत्त्व पाए जाते हैं, उनका विशेष प्रभाव आंत और रक्तसंस्थान पर होता है। फलों के अंदर के लसदार पदार्थ से आंतों में स्निग्धता आती है, उसकी गतिशीलता नियमित होकर मलावरोध एवं रस धातु का शोषण होता है और मल बंधा हुआ आता है। इससे रक्त संपादन का कार्य अधिक होता है। बेल मृदु विरेचक और उदरशोधक है। शरबत उदारमय एवं अजीर्ण में लाभकारी। बिल्व रोगोत्तर काल में बहुत उपयोगी है। इस प्रकार यह बेल अमृत फल है।

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