ऐसे थे भालजी पेंढ़ारकर
आजकल निर्माता-निर्देशक संजयलीला भंसाली की निर्माणाधीन फिल्म बाजीराव मस्तानी किसी ना किसी कारण से बडी चर्चा में है। परंतु, सबसे पहले दादासाहेब फालके पुरस्कार प्राप्त भालचंद्र गोपाल ऊर्फ भालजी पेंढ़ारकर ने आज से 90 वर्षपूर्व सन् 1925 में इन ऐतिहासिक पात्रों बाजीराव-मस्तानी की अमर प्रेम कथा पर निर्मित एक फिल्म 'बाजीराव-मस्तानी" का निर्देशन किया था, जिसकी पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी। सिने जगत में उन्हें श्रद्धावश चित्र-तपस्वी कहा गया। चित्रपट सृष्टी खडी करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए। सूर्य, शारदा, फेमस अरुण, कोल्हापूर सिनेटोन जैसी चित्र संस्थाओं के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। इस कारण उन्हें चित्रपट विद्यापीठ कहा जाने लगा। भालजी ने 1932 से 1986 के बीच 45 सामाजिक और ऐतिहासिक चित्रपट दिए। हिंदी के पृथ्वीराज कपूर, दुर्गा खोटे, सुलोचना, ललिता पवार, दाद कोंडके, कृष्ण भूमिका के लिए विख्यात शाहू मोडक, रमेश देव, गजानन जहागीरदार जैसे अग्रणी कलाकारों ने भालजी के समर्थ दिग्दर्शन तले काम किया था।
राजकपूर जिन्हें भालजी से पहले ही दादा साहब फालके पुरस्कार मिला था। उन्हें फिल्म जगत में लानेवाले भालजी ही थे। उनकी फिल्म 'वाल्मिकी" में राजकपूर नारद बने थे और पिता पृथ्वीराज कपूर ने वाल्मिकी का रोल निभाया था। महारथी कर्ण (1944) चित्रपट में पृथ्वीराज और भालजी की जो वैचारिक जुगलबंदी थी वह भालजी के आत्मचरित्र 'साधा माणूस" में मूलतः ही पढ़ी जाए ऐसी है। मराठी चित्रपट जगत की तीन पीढ़ियां उनके दिग्दर्शन में तैयार हुई थी। जिसका उल्लेख वे कलाकार 'मैं भालजी की स्कूल का विद्यार्थी हूं" गर्व से कहकर करती रही। 1932 में बनी फिल्म 'श्याम सुंदर" भारत की पहली सिल्वर जुबली फिल्म थी। भालजी ने ही 1934 में पहली एनिमेशन फिल्म 'आकाशवाणी" बनाई थी। भालजी ने व्ही. शांताराम के लिए भी उदयकाल, रानी साहिबा, खूनी खंजर, जुल्म जैसी सफल फिल्में और गीत लिखे थे।
उनके आत्मचरित्र से ही ज्ञात होता है कि, पंडित मदनमोहन मालवीयजी के साथ भालजी काशी हिंदूविश्वविद्यालय के निर्माण में ठोस सहायता मिले के लिए छत्रपति राजाराम से मिले थे और उस जमाने में महाराज ने पं. मालवीयजी को एक लाख रुपये का दान दिया था। इसी प्रकार से भालजी डॉ. आंबेडकर के साथ महाराज से इतिहास प्रसिद्ध किला पन्हाला पर सैनिक शिक्षा के लिए एक भव्य अकादमी स्थापित की जाए के संदर्भ में मिलने पहुंचे। उस समय महाराज किसी से चर्चा कर रहे थे, बहुत देर हो जाने के कारण डॉ. आंबेडकर भालजी सहित महाराज से बिना मिले ही चले आए।
14 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता यात्रा की इस दौरान भगतसिंह के सहयोगी राजगुरु के संपर्क में आए और घनिष्ठ मित्र बन गए। वहां से लौटने के पश्चात 1917 में सेना में भर्ती हो गए और तीन वर्ष मराठा पलटन में रहे। उनकी हिंदुत्व पर अगाध निष्ठा थी। लोकमान्य तिलक और बाबाराव सावरकर (वीर सावरकर के बडे भाई) के सान्निध्य में वे रहे। तिलक, वीर सावरकर और शिवाजी उनके श्रद्धास्थान थे। युवावस्था में कुछ समय उन्होंने तिलक के समाचार पत्र 'केसरी" में काम किया था। जिससे उनकी राष्ट्रीय चेतना विकसित हुई। बाबाराव सावरकर के मार्गदर्शन में उन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए कार्य किया। स्वधर्म, स्वभाषा, स्वदेश पर उनकी अगाध श्रद्धा थी। 1927 में जब वंदेमातरम् बोल देना भर भयंकर अपराध माना जाता था भालजी ने 'वंदेमातरम आश्रम" नामकी फिल्म जिसमें गुरुकुल पद्धति से शिक्षा का समर्थन था बनाई जिस पर ब्रिटिश सेंसर ने सात बार कैंची चलाई। विरोधस्वरुप भालजी ने यह फिल्म फिर प्रदर्शित ही नहीं की। भालजी ऐतिहासिक फिल्मों के प्रणेता थे। उन्होंने 'छत्रपति शिवाजी", मराठी तथा हिंदी में बनाई थी। ऐतिहासिक फिल्मों द्वारा उन्होंने राष्ट्र के स्वाभिमान को सशक्त स्वर दिया। सामाजिक जीवन को अभिव्यक्ति देने के लिए उन्होंने ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण भी अपनी फिल्मों में किया था।
शिवाजी पर उनकी कितनी श्रद्धा थी यह इस प्रसंग से मालूम पडता है। कोल्हापूर के मध्यवर्ती चौक में गव्हर्नर सर लेस्ली विल्सन का पुतला था। सन् 1942 के आंदोलनकारियों ने इस सफेद पुतले को काला पोतकर कोल्हापूर में हलचल मचा दी थी। बाद में इस पुतले को सुरक्षा बलों की उपस्थिति होने के बावजूद आंदोलनकारियों ने तोड डाला। शासन ने इस पुतले को वहां से हटाने का निर्णय लिया। भालजी ने वहां छत्रपति शिवाजी का पुतला लगाना तय किया। जनता का समर्थन हासिल करने के लिए एक मुहिम छेडी। शिवाजी महाराज का पुतला खडा करना यह कोल्हापूर की अस्मिता और स्वाभिमान का प्रश्न है यह भालजी का विचार लोगों को पसंद आया। समाचार पत्रों ने भी अपना समर्थन दिया। कोल्हापूर के हिंदू चीफ इंजीनिअर भी सहमत थे परंतु यह बात उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर की होने के कारण उनकी सलाह पर अंग्रेज रेसिडेंट कर्नल हेरिसन से भालजी मिले।
कर्नल हेरिसन ने कहा कि आपको क्यों लगता है कि ब्रिटिश सरकार आपके प्रस्ताव को स्वीकार लेगी। क्या इसीलिए आपने सर लेस्ली के पुतले को तोडा था। भालजी ने प्रतिवाद किया कि निराधार आरोप ना लगाएं। जिसने तोडा है उसे पकडें। कर्नल ने इस पर कहा कि हम दोबारा सर लेस्ली का पुतला वहां लगाएंगे। भालजी का उत्तर था अवश्य आप कर सकते हैं परंतु इस पुतले को फिर से तोडा नहीं जाएगा ऐसा आपको लगता है क्या? आगे उन्होंने कहा - मैं एक कलाकार हूं कला निर्मिती मेरा जीवन है किसी को मैं बदसूरत कर नहीं सकता। वे चित्रपट व्यवसायी हैं राजनीतिज्ञ नहीं वे यह कार्य केवल शिवाजी पर श्रद्धावश कर रहे हैं। कर्नल अनुकूल हो गया और शिवाजी महाराज का पुतला खडा कर दिया गया।
जब पंडित मदनमोहन मालवीय और डॉ. हेडगेवार के आधिपत्यतले हिंदू महासभा का आंदोलन आरंभ हुआ तब बाबाराव सावरकर की प्रेरणा के कारण वे हिंदू महासभा में शामिल हुए और दक्षिण हिंदुस्थान की हिंदू महासभा के प्रमुख के रुप में काम करने लगे। बाद में वे रा. स्व. से. संघ से आजीवन जुडे रहे। डॉ. हेडगेवारजी ने भालजी की फिल्म 'भगवा झंडा" का उद्घाटन भगवा ध्वज फहराकर किया था। इस फिल्म में शिवाजी महाराज की संगठन क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन था। अंग्रेज सरकार ने इस फिल्म को प्रतिबंधित कर दिया था।